भूगोल– स्थलमण्डल- स्थल एवं स्थलाकृतियाँ || Sthal Mandal – Sthal and Sthalakritiyan 8th Social Science
आज से लगभग 400 करोड़ वर्ष पूर्ण पृथ्वी की उत्पत्ति मानी गई है। तब से आज तक इसमें अनेक परिवर्तन होते रहे हैं। पृथ्वी का लगभग 29% भाग स्थलमंडल द्वारा तथा 71% भाग जलमंडल द्वारा घिरा हुआ है। ये दोनों वायु के आवरण से घिरे हुए हैं। इस प्रकार हमारी पृथ्वी पर तीन प्रमुख मंडल हैं, जिन्हें स्थलमंडल, जलमंडल एवं वायुमंडल कहा जाता है। स्थलमंडल पृथ्वी का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं, वह सभी जगह एक समान नहीं है। यहाँ पर बड़े-बड़े ऊँचे पर्वत शिखर, बड़ी-बड़ी नदियाँ और घाटियाँ पाई जाती हैं। कहीं-कहीं विशाल पठार और विस्तृत मैदान पाए जाते हैं। पृथ्वी की सबसे बाहरी परत, जिस पर मानव आदि रहते हैं,को स्थलमंडल कहते हैं। पृथ्वी के धरातल पर परिवर्तन होते रहते हैं। धरातल पर दो प्रकार के परिवर्तन दिखाई देते हैं-
(1) आकस्मिक परिवर्तन
(2) धीमी गति वाले परिवर्तन।
उपयुक्त दोनों प्रकार के परिवर्तन आंतरिक एवं बाह्य प्राकृतिक शक्तियों तथा प्रक्रियाओं द्वारा होते हैं। आंतरिक शक्तियों में ज्वालामुखी एवं भूकंप के प्रमुख है तो बाह्य शक्तियों में, बहता जल, पवन, हिमानी और समुद्री लहरें ये धीमी गति से धरातल में परिवर्तन करती रहती हैं।
कक्षा - 8 के इन 👇सामाजिक विज्ञान के अध्यायों को भी पढ़ें।
1. भारत में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना और विस्तार - अध्याय- 1
2. अध्याय 2 'ब्रिटिश प्रशासन नीतियाँ और प्रभाव'
पृथ्वी की संरचना
पृथ्वी की आंतरिक संरचना का रहस्य मानव के लिये सदैव से कौतुहल का विषय रहा है। भू-गर्भ के संबंध में हमारा ज्ञान आज भी सीमित है। इधर वैज्ञानिकों ने खदानों की खुदाई, ज्वालामुखी उद्भेदन, भूकंप तरंगों के आधार पर भूगर्भ की संरचना के संबंध में जानने के प्रयास किए हैं। पृथ्वी की संरचना के बारे में कई वैज्ञानिकों तथा विद्वान भूगोलवेत्ताओं ने अपने तर्क, कल्पना एवं विचारधाराएँ प्रस्तुत की हैं। वैज्ञानिकों के मतानुसार पृथ्वी की संरचना को 3 भागों में बाँट सकते हैं-
(1) भू-पर्पटी या बाहरी परत
(2) मैंटल
(3) नीफे या क्रोड।
पृथ्वी की सबसे बाहरी व ऊपरी पर्त को भू-पर्पटी या स्थलमंडल कहते हैं। इसी पर प्राणी एवं जैव-जगत पाया जाता हैं। महाद्वीप, महासागरों के पेंदे स्थलमंडल के ही अंग हैं। यह मंडल हल्की जलज शैलों से बना हुआ है।इसकी मोटाई लगभग 10 से 70 किलोमीटर है। महाद्वीपों की रचना इसी से हुई है। स्थलमंडल की ऊपरी परत को सियाल (sial) भी कहते हैं। इसमें सिलिका तथा एल्युमिनियम दो धातुओं की प्रधानता होती है। इसका औसत घनत्व 2.7 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। सियाल के नीचे की परत को सीमा (sima) कहते हैं। इसमें सिलिका और मैग्नीशियम धातुओं की प्रधानता है। वो भू-पर्पटी (बाहरी परत) के नीचे मैंटल है। इसकी गहराई 70 से 2900 किलोमीटर है। इसमें ओलिवाइन और पाइराॅक्सिन खनिजों की प्रधानता है। इसका का औसत घनत्व 2.9 से 4.7 है। इसके नीचे पृथ्वी क्रोड है जिसे ‘नीफे’ (Nife) कहते हैं। इसे धात्विक क्रोड भी कहते हैं। इसमें फेरियम तथा निकिल की प्रधानता होती है। इसका भार एवं घनत्व सर्वाधिक है। इसका औसत घनत्व 13.0 है। यह भाग 2900 किलोमीटर गहराई से 6400 किलोमीटर अर्थात पृथ्वी के भीतरी केंद्र तक फैला हुआ है। गहराई के साथ पृथ्वी के आंतरिक भाग का तापमान बढ़ता जाता है। पृथ्वी के अंदर प्रति 32 मीटर की गहराई पर 1° सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है। पृथ्वी के आंतरिक भाग में तापमान की अधिकता के बावजूद आन्तरिक शैलें तथा धातुएँ पिघलती नहीं, ठोस रहती हैं, इसका मुख्य कारण उन पर बाहरी परतों का दबाव बना रहता है।
इन 👇 इतिहास के प्रकरणों के बारे में भी जानें।
1. इतिहास जानने के स्रोत कक्षा 6 इतिहास
2. आदिमानव का इतिहास कक्षा 6 अध्याय 2
3. हड़प्पा सभ्यता कक्षा 6 सामाजिक विज्ञान
शैल या चट्टान
धरातल की रचना करने वाले सभी पदार्थ शैल कहलाते हैं।अर्थात जिन पदार्थों से भूपृष्ठ का निर्माण हुआ है, उन्हें शैल या चट्टान कहते हैं। इनमें ग्रेनाइट की तरह कठोर तथा मिट्टी की तरह मुलायम तथा सभी प्रकार के तत्व सम्मिलित हैं। ये शैलें एक या अनेक खनिजों के मिश्रण से बनी हैं। निर्माण के आधार पर शैलों के तीन प्रकार हैं:- 1.आग्नेय शैलें- ये शैलें भूपृष्ठ की प्रारंभिक शैलें हैं। इन्हें प्राथमिक शैलें भी कहते हैं। ये शैलें पृथ्वी के आंतरिक भाग में पिघले पदार्थों के ठंडे होने से बनी है। भूपृष्ठ के नीचे अति गर्म पिघला पदार्थ भू-पर्पटी में अथवा उसके ऊपर ठंडा होगा कठोर हो जाता है, उसे आग्नेय शैल कहते हैं। यही गर्म पिघला पदार्थ भूपर्पटी के नीचे धीरे-धीरे ठंडा होता है तो उसे ग्रेनाइट नामक आग्नेय शैल का निर्माण होता है। ग्रेनाइट का उपयोग इमारती पत्थर के रूप में होता है। कभी-कभी गर्म पिघला पदार्थ किसी छिद्र या दरार से बाहर निकलकर भूपृष्ठ पर फैलाता है तो वह बहुत जल्दी ठंडा होकर कठोर हो जाता है। इस प्रकार बनी आग्नेय शैल को बेसाल्ट कहते हैं।;यह शैल गहरे काले रंग की, कठोर तथा भारी होती है। सड़क बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। 2. अवसादी शैलें- जल, वायु एवं हिम द्वारा बहाकर लाये ग्रे कंकड़, पत्थरों के छोटे-छोटे कणों, जीवाश्म आदि भू-भाग या समुद्रतल में परतों के रूप में जमा होते जाते हैं।इस प्रकार जमे हुए पदार्थ को ‘अवसाद’ कहा जाता है। यही अवसाद की परतें गर्मी तथा दबाव के कारण कठोर हो जाती हैं तो उन्हें अवसादी या परतदार शैल कहा जाता है। इसके निर्माण में जल की प्रमुख भूमिका होने से इसे जलज चट्टान भी कहते हैं। बलुआ पत्थर, चूने का पत्थर, चिकनी मिट्टी, कोयला आदि इसके उदाहरण हैं। इनमें जीव जंतुओं और वनस्पतियों के अवशेष भी पाए जाते हैं। पृथ्वी के ऊपरी धरातल का लगभग 80% भाग अवसादी चट्टानों से ढ़का है।
(1) आग्नेय शैल
(2) अवसादी शैल
(3) कायान्तरित शैल।
3.कायान्तरित शैलें- जब आग्नेय तथा अवसादी शैलों के रूप, रंग और गुण में आंतरिक ताप अथवा दबाव के कारण पूर्ण रूप से परिवर्तन हो जाता है तो उन्हें कायांतरित या परिवर्तन शैलें कहा जाता है। चूने के पत्थर से संगमरमर, बुलावा पत्थर से क्विर्ट्जाइट, चिकनी मिट्टी से स्लेट तथा कोयले से ग्रेफाइट और हीरा बनते हैं। ये शैलें अधिक कठोर तथा रवेदार होती हैं।
ब्रह्माण्ड एवं खगोल विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें।
1. ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति
2. खगोलीय पिण्ड
3. तारों का जन्म एवं मृत्यु
4. सौरमंडल की संरचना
5. सौरमंडल के पिण्ड
6. सौर मंडल के ग्रह एवं उपग्रह की विशेषताएँ
स्थलाकृतियों के प्रकार
पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं। पृथ्वी का धरातल सब जगह एक समान नहीं है। स्थलाकृतियों के आकार तथा बनावट की भिन्नता पाई जाती है। समय-समय पर इनमें परिवर्तन भी होते रहते हैं। निर्माण प्रक्रिया तथा विशिष्ट लक्षणों के आधार पर स्थलाकृतियों को तीनों मुख्य में रखा जाता है- 1. पर्वत- धरातल का वह भाग जो अपने आसपास के भाग से अत्यधिक ऊँचा हो अर्थात समुद्रतल से 1000 मीटर या इससे अधिक ऊँचा हो, ‘पर्वत’ कहलाता है। पर्वत का शीर्ष भाग कम चौड़ा, चोटीनुमा तथा इसका ढाल तीव्र होता है।पृथ्वी के संपूर्ण स्थलीय भाग में लगभग 20% भाग पर पर्वतों का विस्तार पाया जाता है। पर्वतों के कई प्रकार होते हैं, जैसे– ब्लॉक पर्वत, ज्वालामुखी पर्वत, वलित पर्वत आदि। पर्वतों से हमें कई लाभ होते हैं। ये नदियों के उद्गम स्थल होते हैं। जलवायु पर प्रभाव डालते हैं तथा इनसे खनिज पदार्थ भी प्राप्त होते हैं। 2. पठार- धरातल का वह भाग जो ऊँचा, विस्तृत एवं ऊपर से मेज की भांति सपाट हो तथा जो समुद्र तल से 600 मीटर या इससे अधिक ऊँचा हो, ‘पठार’ कहलाता है। पठार भी कई प्रकार के होते हैं। जैसे– पर्वतीय पठार, महाद्वीप पठार, तटीय पठार आदि। पठारों से हमें खनिज पदार्थ प्राप्त होते हैं। कई पठार बहुत उपजाऊ होते हैं। 3. मैदान- धरातल का समतल,चौरस, कम ऊँचाई वाला भाग मैदान कहलाता है। इनकी ऊँचाई समुद्रतल से अधिकतम 350 मीटर होती है। मैदान भी कई प्रकार के होते हैं। मैदान मानव निवास के लिए सबसे उपयुक्त स्थल है। क्योंकि मैदान ही उसकी भोजन, वस्त्र, मकान और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, इसलिए विश्व की लगभग सभी सभ्यताओं का जन्म मैदानी भू-भाग में हुआ है। मैदानों की ‘सभ्यता का पालना’ कहा जाता है। पृथ्वी के ये सबसे विकसित भाग हैं। पृथ्वी की संरचना एवं इस पर होने वाली हलचलों से संबंधित इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें। हम जान चुके हैं कि पृथ्वी का धारातल सर्वत्र एक समान नहीं है। कहीं पर समतल मैदान हैं तो कहीं पर्वत या पठार। इनकी रचना परिवर्तनकारी शक्तियों द्वारा होती हैं। पृथ्वी के आंतरिक तथा बाह्य भाग में कार्यरत शक्तियाँ लगातार धरातल में परिवर्तन करती रहती हैं। इन्हे ही भू- संचालन की क्रियाएँ कहा जाता है। आन्तरिक अर्थात् भूगर्भिक शक्तियों से दो प्रकार की गतियाँ उत्पन्न होती है- क्षैतिज तथा लम्बवत्। इन्हें दो वर्गों में रखा जा सकता है। 1. दीर्घकालिक भू-संचलन - यह अत्यंत मंदगति से होता है। इसमें महाद्वीपीय एवं पर्वत निर्माणकारी भू- संचलन गतियाँ सम्मिलित हैं। महाद्वीपीय निर्माणकारी भू- संचलन विशाल भाग पर देखा जाता है। ये गतियाँ लंबवत दिशा में कार्यरत होती है। जिससे भू-पटल के ऊपर उठने तथा नीचे धँसने की क्रियाएँ होती है। इससे पृथ्वी पर महाद्वीप, पठार तथा मैदानों की रचना होती है।इसके विपरीत पर्वत निर्माणकारी संचलन में क्षैतिज शक्ति कार्यरत होती है। इससे धरातल में तनाव या दबाव उत्पन्न होता है और शैलों के मुड़ने या टूटने की क्रियाएँ होती रहती हैं। इनका प्रभाव सीमित क्षेत्रों में होता है। पर्वतों का निर्माण इसी क्रिया से होता है। पर्वत का निर्माण क. वलन - पृथ्वी के अंदर क्षैतिज भू-संचलन द्वारा शैलों में लहरनुमा (आड़े-तिरछे) मोड़ पड़ जाते हैं। इस तरह के मोड़ों को ‘वलन’ कहते हैं। इसमें शैल स्तरों के कुछ भाग मुड़कर ऊपर उठ जाते हैं तो कुछ नीचे की ओर धँस जाते हैं। 2. आकस्मिक भू-संचलन- कभी-कभी अन्तर्जात बलों के कारण भूपटल पर आकस्मात धरातलीय परिवर्तन के साथ-साथ विनाशकारी घटनाएँ भी हो जाती हैं। ये घटनाएँ आकस्मिक भू-संचलन कहलाती हैं। ये प्रक्रियाएँ दो प्रकार की है - ऋतुओं एवं जलवायु से संबंधित इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें। क. ज्वालामुखी- पृथ्वी तल पर होने वाली आकस्मिक प्राकृतिक घटनाओं में ज्वालामुखी प्रमुख है। ज्वालामुखी भूपटल पर एक गोल छिद्र या दरार वाला खुला भाग होता है। इससे होकर पृथ्वी के अत्यंत तप्त भूगर्भ से गैसें, तरल मैग्मा, ऊष्ण जल, चट्टानों के टुकड़े, राख, धुआँ निकलता है। जिस छिद्र से उपर्युक्त पदार्थ निकलते हैं उसे ‘ज्वालामुखी’ या ‘क्रेटर’ कहते हैं और सारी प्रक्रिया को ज्वालामुखी कहा जाता है। पृथ्वी का आंतरिक भाग गर्म है। इस गर्मी के तीन कारण बताए जाते हैं। भारत की प्रमुख नदियों के अपवाह तंत्र से संबंधित इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें। ज्वालामुखी का उद्भेदन नियमित रूप से नहीं होता। कभी होता है, कभी नहीं होता। इसलिए इसे तीन भागों में विभाजित किया जाता है। भौगोलिक जानकारी से संबंधित इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें। क. ज्वालामुखी- ज्वालामुखी से विभिन्न स्थलाकृतियों की रचना होती है, जैसे मैदान, पठार, पर्वत आदि। इनसे हमें बहुमूल्य खनिज पदार्थों की प्राप्ति होती है। ज्वालामुखी से निकला लावा चारों ओर फैलकर कालान्तर में उपजाऊ मिट्टी का निर्माण कराता है। शांत ज्वालामुखी के मुख में वर्षा का जल भरने से झीलों का निर्माण होता है। ज्वालामुखी से कई लाभ के साथ-साथ हानियाँ भी होती हैं। ज्वालामुखी उद्गार से मानव, जीवजंतु, वनस्पति, कृषि क्षेत्र माना आवास एवं बड़े-बड़े नगर, गाँव जलकर नष्ट हो जाते हैं अथवा दबकर ध्वस्त हो जाते हैं। ख. भूकंप
भूकंप शब्द दो शब्दों से बना है-भू तथा कम्प, जिसका सामान्य अर्थ ‘पृथ्वी का कंपन’ है। जिस तरह किसी शांत जल में पत्थर का टुकड़ा फेंकने पर गोलाकार लहरें केंद्र से चारों और प्रवाहित होती है, उसी तरह भूगर्भ उद्गम केंद्र (गड़बड़ी वाले स्थान) से भूकंप लहरें चारों ओर फैलती हैं। भूकंप की उत्पत्ति जिस स्थान पर होती है, उसे ‘भूकंप केंद्र' (फोकस) कहते हैं। भूकंप केंद्र के ठीक ऊपर जहाँ भूकंप की लहरों का अनुभव सर्वप्रथम किया जाता है, उसे ‘भूकंप अधिकेंद्र’ कहते हैं। विभिन्न संसाधनों से संबंधित इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें। पृथ्वी के अंदर कभी-कभी अचानक हलचल होती है तो भूकंप आते हैं। ज्वालामुखी उद्भेदन के कारण भी भूकंप आते हैं।कभी-कभी भूगर्भ के अंदर बनने वाली गैसे एवं जलवाष्प कमजोर भूपटल को तोड़कर ऊपर निकलती है यह ऊपर निकलने की कोशिश करती है जिससे से भूकंप आते हैं। 1. इससे कभी-कभी उपजाऊ भूमि उभर आती है। 1. इससे जन-धन की हानि होती है। मनुष्य, पशु मर जाते हैं। इमारतें गिर जाती है। रेलें, सड़कें टूट जाती हैं, कारखाने नष्ट हो जाते हैं। भौगोलिक जानकारी से संबंधित इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें। निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प चुनकर लिखिए- रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए- भारतीय धरातल से संबंधित इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें। अति लघु उत्तरीय प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न– (2) अवसादी शैलों का निर्माण कैसे होता है? (3) ज्वालामुखी किसे कहते हैं? उदभेदन के दो कारण दीजिए। (4) भूकंप से लाभ तथा हानियाँ लिखिए। एशिया महाद्वीप से संबंधित इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न–
(1) शैल किसे कहते हैं? शैलों के विभिन्न प्रकार बताइए। (2) पृथ्वी की संरचना को रेखाचित्र द्वारा समझाइए। अफ्रीका महाद्वीप से संबंधित इन 👇इन प्रकरणों को भी पढ़ें। (3) ज्वालामुखी के मानव जीवन पर होने वाले प्रभाव बताइए। (4) भूकंप किसे कहते हैं? भूकंप आने के कारण लिखिए उत्तरी अमेरिका महाद्वीप से संबंधित इन 👇इन प्रकरणों को भी पढ़ें। निम्नलिखित शैलों को दिए गये शैलों के प्रारूप में अंकित कीजिए- उत्तरी अमेरिका महाद्वीप से संबंधित इन 👇इन प्रकरणों को भी पढ़ें। आशा है, उपरोक्त जानकारी परीक्षार्थियों / विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक एवं परीक्षापयोगी होगी। I hope the above information will be useful and important. Watch related information below
(1) पर्वत
(2)पठार
(3) मैदान।
1. पृथ्वी की संरचना
2. पृथ्वी की गतियाँ
3. अक्षांश एवं देशांतर रेखाएँ
4. भूकंप एवं भूकम्पीय तरंगे
5. सुनामी और ज्वालामुखी क्या है
6. पृथ्वी पर ज्वार भाटा
7. ग्रहण, ऋतु परिवर्तन विषुव एवं सुपरमून भू- संचलन की क्रियाएँ
(1) दीर्घकालिक या मंद भू-संचलन
(2) आकस्मिक या तीव्र भू-संचलन।
(क) वलन तथा
(ख) भ्रंशन दो रूपों में होता है।
ख. भ्रंशन- क्षैतिज भू- संचलन से उत्पन्न दबाव तथा तनाव के कारण शैलों के टूटकर अलग होने की प्रक्रिया को भ्रंशन कहते हैं। इसमें भू-पृष्ठ का कुछ भाग ऊपर उठ जाता है तथा कुछ भाग नीचे की ओर धँस जाता है। भ्रंश घाटी या खंड पर्वत इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
क. ज्वालामुखी
ख. भूकंप
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(1) पृथ्वी के बनाने के समय से ही आंतरिक भाग गर्म है।
(2) पृथ्वी के अंदर रेडियोधर्मी खनिज पदार्थों के टूटते रहने के कारण गर्मी बढ़ती रहती है।
(3) पृथ्वी की बाहरी परतों के दबाव के कारण भी आंतरिक भाग गर्म है।
वैज्ञानिकों के अनुसार भू-पर्पटी अनेक टुकड़ों में विभाजित है। इन टुकड़ों को प्लेट कहते हैं। आंतरिक गर्मी के कारण ये प्लेटें खिसकती रहती है।पृथ्वी पर ज्वालामुखी एवं भूकंप होने का कारण इन प्लेटों का खिसकना है। प्लेटों के खिसकने से भू-पटल कमजोर हो जाता है और पृथ्वी के अंदर से मैग्मा, चट्टानों के टुकड़े राख आदि पदार्थ ऊपर आ जाते हैं। इन्हें हम ज्वालामुखी उद्गार कहते हैं।
1. सिंधु नदी का अपवाह तंत्र
2. गंगा नदी का अपवाह तंत्र
3. हिमालय की प्रमुख नदियों से संबंधित परियोजनाएँ
4. प्रायद्वीपीय भारत की प्रमुख नदियों का अपवाह तंत्र
5. भारत की प्रमुख झीलेंज्वालामुखी के प्रकार
1. सक्रिय ज्वालामुखी- जिन ज्वालामुखियों उसे एक बार उद्भेदन होने के बाद निरंतर समय-समय पर उद्भेदन होते रहते हैं, उन्हें सक्रिय ज्वालामुखी कहते हैं। इटली से एटना तथा स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी इसके उदाहरण हैं।
2. अर्ध्दसक्रिय या प्रसुप्त ज्वालामुखी- ये वे ज्वालामुखी हैं जिनसे कई बार उद्भेदन के बाद उद्भेदन की समस्त क्रियाएँ कुछ समय के लिए बंद हो जाती हैं। किंतु अकस्मात् पुनः उद्भेदन हो जाता है। इन्हें ‘अर्ध्दसक्रिय’ या ‘प्रसुप्त ज्वालामुखी’ कहते हैं। इटली का विसूवियस ज्वालामुखी इसका उदाहरण है।
3. विसुप्त या शान्त ज्वालामुखी- जिन ज्वालामुखियों में एक बार उद्भेदन होने के बाद लंबे समय तक उद्भेदन नहीं होता तथा पुनः उद्भेदन की संभावना भी नहीं होती, ऐसे ज्वालामुखी विसुप्त या शांत ज्वालामुखी कहलाते हैं। अफ्रीका का किलिमंजारो पर्वत का उदाहरण है।
सर्वाधिक ज्वालामुखी प्रशांत महासागर के चारों ओर तटीय भागों तथा महाद्विपीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं। इसलिए इस पेटी को ‘अग्निवलय’ कहा जाता है।
1. पृथ्वी की स्थलाकृतियाँ
2. मृदा- एक सामान्य परिचय
3. मृदा अपरदन के कारण एवं बचाव के उपाय
4. 8 जनवरी- 'पृथ्वी घूर्णन दिवस' सामान्य ज्ञान
5. विश्व की प्रमुख जल संधियाँ
6. विश्व की प्रमुख जल संधियाँ मुख्य बिन्दु सहितज्वालामुखी का मानव जीवन पर प्रभाव
1. भारत में जल संसाधन
2. भारत में जल परियोजनाएँ
3. ऊर्जा के पारंपरिक और गैर-पारंपरिक स्रोत
4. भारत के भूआकृतिक प्रदेश
5. भारत में हिमालय पर्वत का महत्व
6. हिमालय पर्वत की उत्पत्ति- भू-सन्नति एवं विवर्तनिकी का सिद्धांतभूकंप आने के कारण
ज्वालामुखियों के समान ही भूकंप भी प्रशांत महासागर के तटीय भागों में अधिक मात्रा में आते हैं। जापान में भूकंप बहुत आते हैं। भारत में हिमालय का पर्वतीय प्रदेश भूकंप का मुख्य क्षेत्र है।भूकंप से हमें कई लाभ होते हैं
2. नवीन भू-आकारों का निर्माण होता है।
3. इनसे बहुमूल्य खनिज पदार्थ धारातल पर आ जाते हैं।
4. इनसे नीचे हो जाने वाले भू-भाग पर झीलों का निर्माण होता है।भूकंप से कई हानियाँ होती हैं
2. नदियों के मार्ग अवरुद्ध होने से भयंकर बाढ़ आ जाती है। समुद्र में बहुत ऊँची विनाशकारी लहरें उठती हैं।
3. भूखण्डों में दरारें पड़ जाती हैं तथा कुछ भाग नीचे धँस जाता है।
1. भारत में खनिज उत्पादक राज्य
2. भारत में खनिज उत्पाद
3. भारत में परिवहन
4. भारत के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र
5. भारत के उद्योग- स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले व बाद में
6. भारत में रसायन उद्योग
7. भारत में प्रमुख लौह इस्पात उद्योग
8. भारत में वस्त्र उद्योग
9. भारत में टेक्नोलॉजी आधारित उद्योगअभ्यास प्रश्न
1. पृथ्वी का लगभग कितने प्रतिशत भाग जल मंडल से घिरा हुआ है।
क. 61 प्रतिशत
ख. 71 प्रतिशत
ग. 81 प्रतिशत
घ. 51 प्रतिशत
उत्तर- 71 प्रतिशत
2. किस देश में सबसे अधिक भूकंप आते हैं।
क. भारत
ख. फ्रांस
ग. जापान
घ. श्रीलंका
उत्तर- जापान
1. पृथ्वी का लगभग 29 प्रतिशत भाग स्थल द्वारा घिरा हुआ है।
2. पृथ्वी की सबसे बाहरी पर्त को भूपर्पटी या बाहरी परत कहते हैं।
3. सियाल में सिलिका तथा एल्युमिनियम धातुओं की प्रधानता होती है।
4. प्रति 32 मीटर गहराई पर 1° सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है।
1. भारत का आकार विस्तार एवं नामकरण- सामान्य जानकारी
2. हिमालय भारतीय भू आकृतिक संरचना
3. उत्तर भारत का विशाल मैदान
4. भारतीय मरुस्थल
5. भारतीय प्रायद्वीपीय पठार
6. भारत के तटीय मैदान
7. भारत के द्वीप समूह
1. भू-पटल की प्राथमिक शैलें कौन-सी हैं?
उत्तर- आग्नेय शैलें भू-पटल की प्राथमिक शैलें हैं।
2. धरातल की तीन प्रमुख स्थलाकृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर- (1) पर्वत (2) पठार (3) मैदान धरातल की तीन प्रमुख स्थलाकृतियाँ हैं।
3. शैलों में जब लहरनुमा मोड़ पड़ जाते हैं तो उन्हें क्या कहते हैं।
उत्तर- शैलों में जब लहरनुमा मोड़ पड़ जाते हैं तो उन्हें ‘वलन’ कहते हैं।
4. संसार में सबसे अधिक ज्वालामुखी कहाँ है?
उत्तर- संसार में सबसे अधिक ज्वालामुखी प्रशांत महासागर के चारों ओर तटीय भागों का महादीपय क्षेत्रों में है।
(1) वलन तथा भ्रंशन में क्या अंतर है?
उत्तर- पृथ्वी के अंदर क्षैतिज भू-संचलन द्वारा जब शैंलों में लहरनुमा मोड़ पड़ जाते हैं तो इन्हें ‘वलन’ कहते हैं जबकि क्षैतिज भू-संचलन से उत्पन्न दबाव तथा तनाव के कारण शैलों के टूटकर अलग होने की प्रक्रिया को ‘भ्रंशन’ कहते हैं।
उत्तर- जल, वायु एवं हिम द्वारा बहाकर लाये कंकड़, पत्थरों के छोटे-छोटे कण, जीवाश्म आदि (अवसाद) भू-भाग या समुद्र तल में परतों के रूप में जमा हो जाते हैं और ये अवसाद की परतें गर्मी तथा दबाव के कारण कठोर हो जाती है। यही कठोर पदार्थ अवसादी शैल कहलाते हैं।
उत्तर- ‘ज्वालामुखी’ भू-पटल पर एक गोल छेद या दरार वाला खुला भाग होता है। इससे होकर पृथ्वी के अत्यंत तप्त भू-गर्भ से गैस, तरल लावा, ऊष्ण जल, चट्टानों के टुकड़े, राख व धुआँ आदि निकलता है। प्लेटो को खिसकना व भूकंप ज्वालामुखी उद्भेदन के दो प्रमुख कारण हैं।
उत्तर- भूकंप के लाभ-
1. इससे कभी-कभी उपजाऊ भूमि उभर आती है।
2. नवीन भू-आकारों का निर्माण होता है।
3. इनसे बहुमूल्य खनिज पदार्थ का धरातल पर आ जाते हैं।
4. इनसे नीचे हो जाने वाले भू-भाग पर झीलों का निर्माण होता है।
भूकंप से हानियाँ-
1. इससे जन-धन की हानि होती है। मनुष्य, पशु आदि मर जाते हैं। इमारतें गिर जाती हैं। रेलें, सड़कें टूट जाती हैं, कारखाने नष्ट हो जाते हैं।
2. नदियों के मार्ग रुकने से भयंकर बाढ़ आ जाती है। समुद्र में बहुत ऊँची विनाशकारी लहरें उठती है।
3. भूखंडों में दरारें पड़ जाती है तथा कुछ भाग नीचे धँस जाता है।
1. एशिया महाद्वीप का विस्तार एवं संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
2. एशिया महाद्वीप की प्रमुख जल संधियां
3. एशिया महाद्वीप की प्रमुख नदियाँ
4. एशिया महाद्वीप के प्रमुख मरुस्थल एवं मैदान
5. एशिया महाद्वीप की प्रमुख झीलें
6. एशिया महाद्वीप की जलवायु, वनस्पति, प्राकृतिक संसाधन तथा कृषि
7. एशिया महाद्वीप के प्रमुख देश
उत्तर- धरातल की रचना करने वाले सभी पदार्थ शैल कहलाते हैं। अर्थात् जिन पदार्थों से भूपृष्ठ का निर्माण हुआ है, उन्हें शैल कहते हैं। शैलों के तीन प्रकार हैं-
1.आग्नेय शैलें- यह शैले भूपृष्ठ की प्रारंभिक शैलें हैं। इन्हें प्राथमिक शैलें भी कहते हैं। ये शैलें पृथ्वी के आंतरिक भाग में पिघले पदार्थों के ठंडे होने से बनी हैं। भूपृष्ठ के नीचे आती गर्म पिघला पदार्थ भू-पर्पटी में अथवा उसके ऊपर ठंडा होकर कठोर हो जाता है, उसे आग्नेय शैल कहते हैं ।
2. अवसादी शैल- जल, वायु एवं हिम द्वारा बहाकर लाये गये कंकड़, पत्थरों के छोटे-छोटे कण, जीवाश्म आदि भू-भाग या समुद्र तल में परतों के रूप में जमा होते जाते हैं। इस प्रकार जमे हुए पदार्थ को ‘अवसाद’ कहते हैं। यही अवसाद पर्तें गर्मी तथा दबाव के कारण कठोर हो जाती हैं तो उन्हें अवसादी या परतदार शैल कहा जाता है।
3. कायान्तरित शैलें- जब आग्नेय तथा अवसादी शैलों के रूप, रंग और गुण में आंतरिक ताप तथा दबाव के कारण पूर्ण रूप से परिवर्तन हो जाता है तो उन्हें कायान्तरित या परिवर्तित शैल कहा जाता है।
उत्तर- पृथ्वी की सबसे बाहरी व ऊपरी पर्त को भू-पर्पटी या स्थलमंडल कहते हैं। इसी पर प्राणी जगत निवास करता है। यह मंडल हल्की जलज शैलों से बना हुआ है और इसकी मोटाई लगभग 10 से 70 किलोमीटर है। स्थलमंडल की ऊपरी परत को सियाल (Sial) भी कहते हैं। इसमें सिलिका तथा ऐल्युमीनियम दो धातुओं की प्रधानता है। सियाल के नीचे की परत को सीमा (Sima) कहते हैं। इसमें सिलिका और मैग्नीशियम धातुओं की प्रधानता है। इसके नीचे मैंटल है। इसमें ओलिवाइन और पाइरॉक्सिन खनिजों की प्रधानता है। इसके नीचे पृथ्वी का क्रोड है जिसे ‘नीफे’ (Nife) कहते हैं।
1. अफ्रीका महाद्वीप की सामान्य जानकारी
2. अफ्रीका महाद्वीप की पर्वत एवं पठार
3. अफ्रीका महाद्वीप के प्रमुख देश
4. अफ्रीका महाद्वीप के देश एवं उनकी राजधानियाँ
5. अफ्रीका महाद्वीप से संलग्न सागर, महासागर एवं खाड़ियाँ
6. अफ्रीका महाद्वीप की प्रमुख झीलें
7. अफ्रीका महाद्वीप के प्रमुख मरुस्थल
8. अफ्रीका महाद्वीप- नैरोबी, बाब-अल-मंदेब जलसंधि, डरबन, फ़ूटा जालौन पठार, कोको त्रिभुज, साहेल क्षेत्र
उत्तर- ज्वालामुखी के मानव जीवन पर होने वाले प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं -
ज्वालामुखी से विभिन्न स्थलाकृतियों की रचना होती है,जैसे मैदान, पठार, पर्वत आदि। इनसे हमें बहुमूल्य खनिज पदार्थों की प्राप्ति होती है। ज्वालामुखी से निकला लावा चारों ओर फैलकर कालान्तर में उपजाऊ मिट्टी का निर्माण करता है।शांत ज्वालामुखी के मुख में वर्षा का जल भरने से झीलों का निर्माण होता है। ज्वालामुखी से कई लाभ के साथ-साथ हानियाँ भी होती है। ज्वालामुखी उदगार से मानव, जीव-जंतु ,वनस्पति, कृषि क्षेत्र, मानव आवास एवं बड़े-बड़े नगर, गाँव जलकर नष्ट हो जाते हैं अथवा दबकर ध्वस्त हो जाते हैं।
उत्तर- भूकंप-भूकंप शब्द दो शब्दों से बना है -भू तथा कम्प, जिसका सामान्य अर्थ ‘पृथ्वी का कंपन’ है। जिस तरह किसी शांत जल में पत्थर का टुकड़ा फेंकने पर गोलाकार लहरें, केंद्र से चारों ओर प्रवाहित होती हैं उसी तरह भूगर्भ उद्गम केंद्र (गड़बड़ी वाले स्थान) से भूकंप लहरें चारों ओर फैलती है। भूकंप की उत्पत्ति जिस स्थान पर होती है, उसे ‘भूकंप केंद्र' (फोकस) कहते हैं।
भूकंप आने के कारण -
1. भूगर्भ के यदाकदा अचानक हलचल हो जाने के कारण पृथ्वी की सतह पर भूकंप आ जाते हैं ।
2. तीव्र ज्वालामुखी उदभेदन होने पर भी भूकंप आते हैं।
3. कभी-कभी भूगर्भ में बनने वाली गैसों एवं जलवाष्प भी कमजोर भू-पटल हो को हिला देती है जिससे भूकंप आते हैं।
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(1) संगमरमर (2) कोयला (3) ग्रेनाइट (4) चूने का पत्थर (5) बेसाल्ट (6) हीरा।
उत्तर- शैलों का प्रारूप
आग्नेय
1. ग्रेनाइट
2. बेसाल्ट
अवसादी
1. कोयला
2. चूने का पत्थर
कायान्तरित
1. संगमरमर
2. हीरा
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धन्यवाद।
RF Temre
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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(संबंधित जानकारी नीचे देखें।)
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