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हड़प्पा सभ्यता | Harappan Civilization | History Class- 6

आदिमानव हमेशा वही बसता था, जहाँ उसे पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए भरपूर भोजन और निवास के लिए सुरक्षित स्थान आसानी से उपलब्ध थे। नदियों के किनारे इन तीनों आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से होने के कारण विश्व की प्राचीनतम सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही विकसित हुई। इसलिए इन सभ्यताओं को नदी घाटी सभ्यता कहलाती हैं।

इनमें अफ्रीका के उत्तरी उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित मिस्र की सभ्यता सबसे पुरानी है। यह नील नदी की घाटी में विकसित हुई। दूसरी है मेसोपोटामिया की सभ्यता।

मेसोपोटामिया का अर्थ है दो नदियों के बीच का भू भाग। यह दो नदियाँ हैं- दजला एवं फरात। इन नदियों के मध्य विकसित हुई सभ्यता मेसोपोटामिया सभ्यता कहलाती है। यह सभ्यता 5000 से 500 साल ई.पू. तक विद्यमान थी। वर्तमान इराक और ईरान का कुछ क्षेत्र भी इसमें सम्मिलित था। तीसरी है चीन की सभ्यता। इसका उदय ह्वांगहो नदी के तट पर (1750 ई. पू. से 220 ई.) हुआ। चौथी है सिंधु घाटी की सभ्यता जिसका विकास आज से लगभग 4500 वर्ष पूर्व उतरी पश्चिम प्रायद्वीप में हुआ जिसका कुछ हिस्सा अब पाकिस्तान में है।

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नदी घाटी में मानव सभ्यता के विकास के कारण

लाखों वर्ष तक मानव शिकारी और भोजन संग्राहक का जीवन जीता रहा। धीरे-धीरे उसने पशु पालन करना सीखा। कोई 10,000 वर्ष पूर्व उसने खेती करना प्रारंभ किया। उसने अपने सैकड़ों वर्षों के अनुभव से यह सीख लिया था कि मिट्टी में बीज डालने और सींचने से पौधा उगता है।

नदियों के किनारे की मिट्टी उपजाऊ होती है। यहाँ पानी आसानी से मिल जाता है। नदी से नाव या लट्ठे की सहायता से आवागमन की सुविधा रहती है। जानवरों के लिए घास तथा जल आसानी से मिल जाता है। इन सब कारणों से आदि मानव ने नदी की घाटियों में बसना प्रारंभ किया। तब भी मानव पाषाण उपकरणों का प्रयोग करता था।

लगभग 7000 वर्ष पूर्व ताँबे की खोज ने मानव के जीवन में परिवर्तन कर दिया। ताँबा कठोर पत्थर की तुलना में अधिक प्रभावकारी था। टिन के मिश्रण से निर्मित ताँबा पत्थर से भी अधिक मजबूत था। ताँबे के प्रयोग के कारण मानव पाषाण काल से निकलकर ताम्राश्मकाल (ताँबे व पाषाण) में प्रवेश कर गया।

ताम्राश्मकाल में नदी घाटी सभ्यता का विकास एक लंबे-चौड़े भाग में हुआ। भारत में इस काल की सबसे पुरानी बस्तियाँ दक्षिण पूर्वी राजस्थान (आहार) मध्यप्रदेश में मालवा में (कायथा एवं एरण) पश्चिमी महाराष्ट्र में (जोखा ,नेवासा ,दैमाबाद) में मिली है। नर्मदा नदी के तट पर नवदा टोली स्थान पर भी ताम्र पाषाणिक अवशेष है।

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सिंधु घाटी सभ्यता की खोज

सन् 1921 के पूर्व तक भारत की प्राचीनतम सभ्यता वैदिक सभ्यता ही मानी जाती। सबसे पहले श्री दयाराम साहनी ने 1921 ई. में हड़प्पा में आरम्भ कर वहाँ एक नगर के भग्नावशेष प्राप्त किये, तत्पश्चात श्री राखलदास बैनर्जी ने सन् 1922 ई. में सिंध प्रांत के लरकाना जिले में बौद्ध-स्तूपों की खोज करते हुए कुछ टीलों को खुदवाया ,तो वहां भूगर्भ में पक्की नालियाँ और कमरे मिले। इसके बाद तो इस क्षेत्र में 10 वर्षों तक उत्खनन चला तथा अनेक जानकारियाँ प्रकाश में आयीं।

इसी बीच रायबहादुर दयाराम साहनी और माधव स्वरूप वत्स ने हिमालय के तलहटी क्षेत्रों में मानव सभ्यता के प्रमाण खोजे जिसके आधार पर उत्खनन कार्य प्रारंभ हुआ। खुदाई का कार्य हड़प्पा में शुरू हुआ। इस कारण इसे हड़प्पा सभ्यता कहा गया। इसे ‛सिंधु घाटी सभ्यता’ भी कहा जाता है।

धीरे-धीरे इस सभ्यता की खोज विभिन्न स्थलों पर हुई। इसके विस्तार को देखकर पता चलता है कि भैगोलिक दृष्टि से यह विश्व की सबसे बड़ी सभ्यता थी। इसका क्षेत्र मिस्र की सभ्यता के क्षेत्र से 20 गुना अधिक था। इस सभ्यता का विकास भारत और पाकिस्तान के उत्तरी और पश्चिमी भाग में सिंधु नदी की घाटी में हुआ। सिंधु घाटी के कारण इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से पुकारा गया। इस सभ्यता का पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र राज्य तक है।

इस सभ्यता के कुछ प्रमुख स्थल ये हैं- मोहनजोदड़ो ,हड़प्पा तथा चन्हुदड़ो (पाकिस्तान), रोपड़ (पंजाब), रंगपुर (सौराष्ट्र), लोथल सुतकोटडा (गुजरात), कालीबंगा (राजस्थान), धौलाबीरा (गुजरात), बणावली, राखीगढ़ी (हरियाणा), मांडा (जम्मू कश्मीर), दैमाबाद (महाराष्ट्र), आलमगीरपुर, हुलास (उत्तर प्रदेश) इत्यादि।

नगरीय जीवन

हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता उसकी नगर योजना प्रणाली थी। यहाँ उच्च वर्ग का परिवार रहता होगा। नगर के निचले भाग में मध्यम व निम्न वर्ग का विकास था। इन नगरों में सड़कें पूरी सीधी थीं व एक-दूसरे को लम्बवत काटती थीं। नगर अनेक खंडों में विभक्त होता था जैसा कि आजकल के नगर होते हैं। हड़प्पा सभ्यता के नगरों में कोठार (अनाज भरने के गोदाम) का महत्वपूर्ण स्थान था। हड़प्पा तथा कालीबंगा में भी इनके के प्रमाण मिले हैं।

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मोहनजोदड़ो का महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है। यह 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। इसके दोनों सिरों पर तल तक सीढ़ियाँ बनी हैं। बगल में कपड़े बदलने के कक्ष हैं। स्नानागार का फर्श पक्की ईटों का बना है। पास के एक कमरे में बड़ा सा कुआँ बना है। संभवतः यह स्नानागार किसी धार्मिक अनुष्ठान संबंधी स्नान के लिए बना होगा।

इसके अलावा भी हर छोटे-बड़े मकान में आँगन (प्रांगण) और स्नानागार होता था। पर्यावरण की दृष्टि से जल निकास प्रणाली अद्भुत थी। घरों का पानी बहकर सड़कों तक आता था। यहाँ यह पानी मुख्य नाली से मिलता जो ईटों व पत्थर की पट्टियों से ढँकी होती थी। सड़कों की मुख्य नालियों में सफाई की दृष्टि से नरमोखे (मेनहोल) भी बने थे। उनके द्वारा नालियों की समय-समय पर सफाई की जाती थी। ताम्राश्म युगीन सभ्यता में हड़प्पा की जल निकास प्रणाली अद्वितीय थी। विश्व की किसी अन्य सभ्यता में सफाई को इतना महत्व नहीं दिया जाता था जितना कि हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने दिया। इस प्रकार हम देखते हैं कि हड़प्पा सभ्यता में पर्यावरण शुद्धि की ओर अधिक ध्यान दिया जाता था।

1. हड़प्पा सभ्यता में भवनों के लिए पक्की ईटों का प्रयोग विशेष बात थीं। समकालीन मिस्र की सभ्यता व मेसोपोटामिया की सभ्यता नहीं था।
2. हड़प्पा निवासी विश्व के प्रथम लोग थे जिन्होंने विस्तृत सड़कों और नालियों से युक्त सुनियोजित नगर का निर्माण किया।

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कृषि व पशुपालन-

हड़प्पा सभ्यता की जीवन दायिनी नदी सिंधु थी। यह नदी अपने साथ भारी मात्रा में उपजाऊ मिट्टी लाती थी। हड़प्पा सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, सरसों, कपास, मटर तथा तिल की फसलें उगाते थे। संभवतः किसानों से राजस्व के रूप में अनाज लिया जाता था। हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों में मिले कोठार (अनाज गोदाम) इसके प्रमाण है।

कालीबंगा में पाए गए जुताई के मैदान से प्रतीत होता है कि उनका खेती का तरीका आज की तरह ही था।
हड़प्पा निवासी कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते थे। ये बैल-गाय, बकरी, भेड़, सूअर, भैंस, कुत्ता, ऊँट तथा हाथी-घोड़े पालते थे। ये सिंह, गेंडा, हंस, बतख, बंदर, खरगोश, मोर, हिरण, मुर्गा, तोता, उल्लू आदि जानवरों से परिचित है। इनमें से कुछ जानवरों की स्वतंत्र आकृतियाँ व कुछ का अंकन मिट्टी में मुहरों पर मिला है।

हड़प्पा निवासी विश्व के प्रथम लोग थे जिन्होंने कपास उत्पादन सबसे पहले सिंधु क्षेत्र में किया। मोहनजोदड़ो में बने हुए सूती कपड़े का एक टुकड़ा मिला है, और कई वस्तुओं पर कपड़े के छापे भी मिले हैं। कताई के लिए तत्कालियों का इस्तेमाल होता था।
गुजरात के हड़प्पा सभ्यता के लोग चावल उपजाते थे और हाथी पालते थे। ये दोनों बातें मेसोपोटामिया के निवासियों को ज्ञात न थी।

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शिल्प तथा तकनीकी ज्ञान-

हड़प्पा सभ्यता ताम्राश्म काल की है। यह कांस्य युग भी कहलाता है। ताँबे में जिंक या टिन मिलाकर काँसा बनाया जाता था।काँसा ताँबे की तुलना में अधिक मजबूत होता है। खुदाई से प्राप्त सामग्री के आधार पर ज्ञात होता है कि इस सभ्यता के लोगों ने धातुओं को गलाने, ढालने और सम्मिश्रण की कला में विशेष उन्नति की थी। मिट्टी के बर्तन बनाने, खिलौने बनाने, मुहरे निर्माण करने में यहाँ के कलाकार सिद्धहस्त थे। प्रतिमाओं को पकाया भी जाता था। इसके अलावा स्वर्णकार चाँदी, सोना और रत्नों के आभूषण और विभिन्न रंगों के मनके भी बनाते थे। काँसे की नर्तकी उनकी मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है।

धार्मिक मान्यताएँ-

हड़प्पा सभ्यता में किसी भी देवालय के प्रमाण नहीं मिले हैं। पकी हुई मिट्टी की स्त्री प्रतिमाएँ भारी संख्या में मिली हैं। इससे अनुमान होता है कि देवी उपासना प्रचलित थी। एक मुहर पर तीन सींग युक्त ध्यान करते हुए देवता का अंकन है। यह पद्मासन में बैठा है। इसके आसपास एक हाथी, एक बाघ, एक गेंडा, एक भैसा व दो हिरण का अंकन है। कुछ पुरातत्वविदों ने इस देवता की पहचान पशुपति (शिव) के रूप में की है।

हड़प्पा में पकी मिट्टी व पत्थर पर बनें लिंग और योनि के अनेक प्रतीक मिले हैं। इसके अलावा कमण्डल, यज्ञवेदी, स्वास्तिक आदि के अवशेष हड़प्पा सभ्यता के लोग के धार्मिक विचारों व क्रिया-कलापों की जानकारी प्रदान करते हैं।

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मध्य प्रदेश के काथया (जिला उज्जैन) की खुदाई से हड़प्पा सभ्यता के सामान में एक मुहर, सेल खेड़ी के मनके, मिट्टी की मूर्तियाँ तथा मिट्टी के बर्तन मिले हैं।

कूबड़ वाले सांड की मृणमूर्ति तथा अंकन कई मुहरों पर मिलता है। उत्खनन में ताबीज बड़ी तादाद में मिले हैं। शायद हड़प्पावासी भूत-प्रेतों में विश्वास कर उनसे रक्षा के लिए ताबीज पहनते थे। हड़प्पा सभ्यता में पीपल के वृक्ष की पूजा के मृणमुहरों प्रमाण तथा पात्रों पर मिलते हैं। इस वृक्ष की उपासना आज तक जारी है। भारतीय पीपल को पवित्र वृक्ष मानते हैं। वैज्ञानिक भी इस वृक्ष को पर्यावरण शुद्धि की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हैं। पात्रों पर किए कई चित्रण धार्मिक विचारों की जानकारी प्रदान करती हैं। कुछ पात्रों पर मोर का अंकन मिलता है। आज भी भारत के निधन अंचलों में कुम्हार लोग अपने द्वारा निर्मित पात्रों में मोर का अंकल करते हैं।

हड़प्पा सभ्यता के लोगों के विभिन्न धार्मिक विश्वास भले ही रहे हों परंतु वे योग विद्या के प्रारंभिक जनक भी थे।मृणमुहरों पर प्राप्त चित्रांकन से इस बात की पुष्टि होती है कि हड़प्पावासी योग क्रियाओं के जानकार थे।

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लिपि-

हड़प्पावासियों को लेखन कला का भी ज्ञान था। संभवतः उनकी लिपि चित्र लिपि थी। इन्हें चित्र या अक्षर के रूप में लिखा जाता था। लेकिन इस लिपि को आज तक का सुनिश्चित रूप से पढ़ा नहीं जा सका है।

माप-तौल-

हड़प्पावासी माप-तौल के तरीकों से परिचित थे। माप हेतु ये ‘बाट’ और ‘दंड’ का प्रयोग करते थे। खुदाई से बाट व काँसे का माप उपकरण (पैमाना) प्राप्त हुआ है।

मुहरें-

हड़प्पावासियों की सर्वोत्तम कलाकृतियों उनकी मृणमुद्राएँ है। अब तक खुदाई से लगभग 5000 मुद्राएँ प्राप्त हो चुकी है। इन पर जानवरों की आकृतियाँ तथा लघु लेख अंकित हैं।

हड़प्पा सभ्यता का पतन-

इस सभ्यता के इतने बड़े नगर जमीन में दबकर कैसे नष्ट हो गये, इस संबंध में अब तक इतिहासकार पूरी तरह से संतुष्ट नहीं है। अब तक प्राप्त प्रमाणों के अनुसार ऐसा अनुमान है कि इतनी विशाल सभ्यता के पतन में निम्नलिखित कारक उत्तरदायी रहें होंगे-
1. भूकंप आने के कारण संभवत: सिंधु नदी का मार्ग बदल गया होगा और ये नगर भूस्खलन में जमीन से दब गया होगा।
2. इस क्षेत्र में वर्षा की कमी व बढ़ते हुए रेगिस्तान से इस क्षेत्र में खेती तथा पशुपालन पर बुरा असर पड़ा होगा और इस सभ्यता का पतन हो गया।
3. कुछ लोगों का अनुमान है कि सिंधु नदी में बाढ़ आई होगी और सभ्यता का अंत हो गया होगा।

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अभ्यास प्रश्न

प्रश्न-1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए-
(अ) हड़प्पा सभ्यता में किस पेड़ की पूजा के प्रमाण मिले हैं?
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता में पीपल के वृक्ष की पूजा के प्रमाण मिले हैं।

(ब) हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख चार स्थलों के नाम लिखिए।
उत्तर- 1.मोहनजोदड़ो
2. हड़प्पा
3. रोपड़
4.लोथल।

(स) नदी घाटी सभ्यता नदियों के किनारे ही क्यों विकसित हुई?
उत्तर- आदिमानव हमेशा वहीं बसते थे जहाँ पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए भरपूर भोजन और निवास के लिए सुरक्षित स्थान आसानी से उपलब्ध हों। नदियों के किनारे इन तीनों आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से होने के कारण विश्व की प्राचीनत सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही विकसित हुईं।

(द) हड़प्पा सभ्यता के शिल्प व तकनीकी ज्ञान के बारे में लिखिए।
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता कांस्य युग की सभ्यता थी। हड़प्पा सभ्यता के लोग काँसा बनाना जानते थे। खुदाई से प्राप्त वस्तुओं के आधार पर पता चलता कि इस सभ्यता के लोगों ने धातुओं को गलाने, ढालने और सम्मिश्रण की कला में विशेष उन्नति की थी। बर्तन बनाने, खिलौने बनाने और मोहरों के निर्माण में ये लोग पारंगत थे। खुदाई में मिली काँसे की नर्तकी उनकी मूर्तिकला का सुंदर नमूना है। स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग शिल्प व तकनीकी ज्ञान में बहुत आगे थे।

(य) हड़प्पा सभ्यता में कौन-कौन सी फसलें उगाई जाती थी?
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता में गेहूँ, जौ, सरसों, कपास, मटर, तिल की फसलें उगाई जाती थी।

(र) सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ क्या है?
उत्तर- सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
(i) सिंधु घाटी की सभ्यता एक शहरी सभ्यता थी।
(ii) इस सभ्यता की प्रमुख विशेषता उसकी नगर योजना प्रणाली थी।
(iii) सिंधु घाटी की जल निकास प्रणाली अद्वितीय थी।
(iv) मोहनजोदड़ो में सार्वजनिक विशाल स्नानागार था जो उस सभ्यता का महत्वपूर्ण निर्माण माना जाता है।
(v) इस सभ्यता के लोग गेहूँ ,जौ ,सरसों ,कपास व तिल आदि की फसलें उगाते थे।
(vi) इस सभ्यता में धातुओं के गलाने, ढालने और सम्मिश्रण की कला उन्नत थी।

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प्रश्न-2 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए-
(अ) हड़प्पावासियों की नगर रचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता उसकी नगर योजना प्रणाली थी। नगर अधिकतर दो अथवा तीन भागों में बँटे थे। सबसे सुरक्षित स्थान किला या दुर्ग कहलाता था। यहाँ उच्च वर्ग का परिवार रहता होगा। मध्यम व निचले भाग में मध्यम वर्ग व निम्न वर्ग का निवास था। इन नगरों में सड़कें पूरी सीधी थीं एक-दूसरे को लंबवत् काटती थीं।
हड़प्पा सभ्यता के नगरों में कोठार (अनाज भरने के गोदाम) का महत्वपूर्ण स्थान था। मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है। यह 11.88 मीटर लंबा, 7.1 मी चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। इसके दोनों सिरों पर तल तक बनी हैं। पास में कपड़े बदलने के कक्ष हैं। स्नानागार का फर्श पक्की ईंटों का बना है। पास के एक कमरे में बड़ा-सा कुआँ बना है। संभवतः स्नानागार किसी धार्मिक अनुष्ठान संबंधी स्नान के लिए बना होगा। इसके अलावा भी हर छोटे-बड़े मकान में आँगन (प्रांगण) और स्नानागार होता था।

(ब) हड़प्पावासियों के धार्मिक विश्वासों के बारे में आप क्या जानते हैं? लिखिए।
उत्तर- हड़प्पावासी देवी उपासना करते थे। कुछ पुराविदों ने पशुपति (शिव) की उपासना करने की बात भी कही थी। हड़प्पा में पक्की मिट्टी व पत्थर पर बने लिंङ्ग और योनि के अनेक का प्रतीक मिले हैं। इसके अलावा कमंडल, यज्ञवेदी, स्वास्तिक आदि के अवशेष हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक विचारों व क्रिया-कलापों की जानकारी प्रदान करते हैं। कूबड़ वाले साँड़ की मृणमूर्ति तथा अंकन कई मुहरों पर मिलता है। उत्खनन में ताबीज बड़ी संख्या में मिले हैं। शायद हड़प्पावासी भूत-प्रेतों में विश्वास कर उनसे रक्षा के लिए ताबीज पहनते थे। हड़प्पा सभ्यता में पीपल के वृक्ष की पूजा के प्रमाण मृणमुहरों तथा पात्रों पर मिलते हैं।

(स) हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों को लिखिए।
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण निम्नलिखित हैं-
(i) भूकंप आने के कारण संभवतः सिंधु नदी का मार्ग बदल गया होगा और हड़प्पा सभ्यता के नगर भूस्खलन से जमीन में दब गए होंगे।
(ii) संभवतया आर्यों के आक्रमण ने इस सभ्यता को नष्ट कर दिया होगा।
(iii) बढ़ते हुए रेगिस्तान के कारण इस सभ्यता का पतन हो गया होगा।
(iv) सिंधु नदी की बाढ़ से इस सभ्यता का अंत हो गया होगा।

प्रश्न-3 रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(अ) मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है। (गोदान/स्नानागार)
(ब) हड़प्पा सभ्यता नगरीय सभ्यता है। (नगरीय/ग्रामीण)
(स) काँसे की नर्तकी हड़प्पा सभ्यता की मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है। (मूर्तिकला/वास्तुकला)
(द) कूबड़ वाले साँड का अंकन कई मुहरों पर मिलता है। (भवनों/मुहरों)
(य) हड़प्पावासियों की लिपि चित्र लिपि थी। (देवनागरी/चित्र)
(र) हड़प्पा सभ्यता में साफ-सफाई व पर्यावरण शुद्धि पर अधिक ध्यान दिया गया था। (गंदगी/साफ-सफाई)

प्रश्न-4 नदी घाटी और उसमें विकसित सभ्यताओं की सही जोड़ी मिलाओ-
.....‘क’ ........................................‘ख’
नील नदी घाटी..................मोहनजोदड़ो और
.....................................हड़प्पा सभ्यता
दजला-फरात नदी घाटी ..... मिश्र की सभ्यता
सिंधु घाटी ....................... चीन की सभ्यता
ह्वांग्हो नदी घाटी ........ मोसोपोटामिया की सभ्यता।

उतर- ..... ‘क’.....................................‘ख’
नील नदी घाटी ............ मिश्र की सभ्यता
दजला-फरात ...............मोसोपोटामिया की
नदी घाटी.....................सभ्यता
सिंधु घाटी.....................मोहनजोदड़ो और
................................ हड़प्पा सभ्यता
ह्वांग्हो नदी घाटी .......... चीन की सभ्यता

प्रश्न-5 सही विकल्प चुनिए-
1. हड़प्पा सभ्यता में कौन सी विशेषता नहीं पाई गई?
(i) सुनियोजित नगरीय व्यवस्था
(ii) धातु गलाने व ढालने की कला
(iii) पेड़ों व गुफाओं में रहना
(iv)पशुपालन व कृषि
उत्तर- पेड़ों व गुफाओं में रहना
2. हड़प्पावासी कौन-सी धातु का उपयोग अधिक करते थे?
(i)लोहा
(ii)ताँबा
(iii)सोना
(iv)चाँदी
उत्तर- ताँबा
3. हड़प्पा सभ्यता के पतन के संभावित कारणों में से नहीं था-
(i) आग लगना
(ii)आर्यों का आक्रमण
(iii)मुगलों का आक्रमण
(iv) तेज वर्षा
उत्तर- मुगलों का आक्रमण

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आशा है, उपरोक्त अध्याय विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक एवं परीक्षापयोगी होगी।
धन्यवाद।
RF Temre
infosrf.com

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com


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