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जैन धर्म के 24 तीर्थंकर || महावीर स्वामी की पारीवारिक जानकारी || 24 Tirthankaras of Jainism || Family information of Mahavir Swami

जैन धर्म और इसकी स्थापना (Jainism and its Establishment) जैन शब्द संस्कृत भाषा के शब्द 'जिन' से उत्पन्न हुआ है। इसका शाब्दिक अर्थ 'विजेता' होता है। अर्थात् जैन वह व्यक्ति होता है, जिसने अपनी मन, वाणी तथा काया पर विजय प्राप्त कर ली हो। जैन अनुश्रुतियों तथा परंपराओं के अनुसार जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए थे। इनमें से पहले 22 तीर्थंकरो की ऐतिहासिकता के बारे में जानकारी संदिग्ध है। जैन धर्म की स्थापना जैनियों के प्रथम तीर्थंकर 'ऋषभदेव' (आदिनाथ) ने की थी। इन्होंने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जन आंदोलन चलाया था। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव तथा 22वें तीर्थंकर 'अरिष्ठनेमि' का उल्लेख ऋग्वेद से प्राप्त होता है। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर 'पार्श्वनाथ' थे। ये काशी के इक्ष्वाकु वंश के राजा अश्वसेन के पुत्र थे। इनके अनुयायियों को 'निर्ग्रंथ' के नाम से जाना जाता था। इनका काल वर्धमान महावीर से 250 ईसा पूर्व है। पार्श्वनाथ द्वारा दिए गए चार महाव्रत सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह (धन संचय का त्याग) एवं अस्तेय (चोरी न करना) है। इन्होंने स्त्रियों को भी जैन धर्म में प्रवेश करने की अनुमति प्रदान की। जैन संघ में स्त्री संघ की अध्यक्षा 'पुष्पचूला' नामक स्त्री थी। पार्श्वनाथ को वर्तमान झारखंड के गिरिडीह जिले में 'सम्मेद पर्वत' पर निर्वाण की प्राप्ति हुई।

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The word Jain originates from the Sanskrit word 'Jin' . It literally means 'winner' . That is, a Jain is a person who has conquered his mind, speech and body. According to Jain rituals and traditions, there were a total of 24 Tirthankaras in Jainism. Information about the historicity of the first 22 Tirthankaras is doubtful. Jainism was founded by 'Rishabhdev' (Adinath) , the first Tirthankara of the Jains. He started a mass movement in the sixth century BC. The first Tirthankara Rishabhdev and the 22nd Tirthankara 'Arishthanemi' are mentioned in the Rigveda. The 23rd Tirthankara of Jainism was 'Parshvanath' . He was the son of King Ashwasen of the Ikshvaku dynasty of Kashi. His followers were known as 'Nirgranth' . His period is 250 BCE from Vardhaman Mahavira. The four Mahavratas given by Parshvanath are truth, non-violence, aparigraha (renunciation of wealth accumulation) and astaya (not stealing) . They also allowed women to enter Jainism. In the Jain sangha, the president of the women's sangha was a woman named 'Pushpachula' . Parshwanath attained nirvana on 'Sammed Parvat' in Giridih district of present-day Jharkhand.

जैन धर्म के तीर्थंकर (Tirthankaras of Jainism) जैन धर्म के 24 तीर्थंकर हुए थे। ये सभी तीर्थंकर तथा उनके प्रतीक निम्नलिखित हैं -
1. ऋषभदेव (आदिनाथ) - वृषभ
2. अजितनाथ - गज
3. संभवनाथ - अश्व
4. अभिनंदन नाथ - कपि
5. सुमतिनाथ - क्रौंच
6. पद्मप्रभु - पद्म
7. सुपार्श्वनाथ - स्वास्तिक
8. चंद्रप्रभु - चंद्र
9. सुविधिनाथ - मकर
10. शीतलनाथ - श्रीवत्स
11. श्रेयांसनाथ - गैंडा
12. वसुपूज्य - महिष
13. विमलनाथ - वराह
14. अनंतनाथ - श्येन
15. धर्मनाथ - वजृ
16. शांतिनाथ - मृग
17. कुंथुनाथ - अज
18. अरनाथ - मीन
19. मल्लिनाथ - कलश
20. मुनिसुव्रत - कूर्म
21. नेमिनाथ - नीलोत्पल
22. अरिष्टनेमि - शंख
23. पार्श्वनाथ - सर्पफण
24. वर्धमान महावीर - सिंह

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There were 24 Tirthankaras of Jainism. Following are all these Tirthankaras and their symbols -
1. Rishabhdev (Adinath) - Taurus
2. Ajitnath - Gaja
3. Sambhavnath - Horse
4. Abhinandan Nath - Kapi
5. Sumatinath - Crouch
6. Padmaprabhu - Padma
7. Suparshwanath - Swastik
8. Chandraprabhu - Chandra
9. Suvidhanath - Capricorn
10. Shitalnath - Srivatsa
11. Shreyansnath - Rhinoceros
12. Vasupujya - Mahish
13. Vimalnath - Varaha
14. Anantnath - Shyne
15. Dharmanath - Vajra
16. Shantinath - Deer
17. Kunthunath - Aj
18. Arnath - Pisces
19. Mallinath - Kalash
20. Munisuvrat - Koram
21. Neminath - Nilotpal
22. Arishtanemi - Shankh
23. Parshwanath - Serpentage
24. Vardhman Mahaveer - Singh

जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक (The true founder of Jainism) जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक 'वर्धमान महावीर' थे। ये जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर थे। उन्होंने अपने जीवन काल में एक संघ की स्थापना की। इसमें 11 अनुयायी शामिल थे। इन्हें 'गणधर' कहा जाता था। जैन धर्म पुनर्जन्म एवं कर्मवाद मे विश्वास करता था। इस धर्म के अनुसार कर्मफल ही हमारे जन्म तथा मृत्यु के कारण होते हैं। जैन धर्म में सम्मिलित होने के पश्चात युद्ध तथा कृषि दोनों ही वर्जित थे। क्योंकि इन दोनों ही कार्यों में जीवों की हिंसा होती थी। धर्म के प्रारंभिक समय में मूर्ति पूजा का प्रचलन नहीं था, किंतु बाद में मूर्ति पूजा आरंभ हो गई। वर्धमान महावीर तथा अन्य तीर्थंकरो की मूर्ति की पूजा की जाती थी।

The real founder of Jainism was 'Vardhaman Mahavir' . He was the 24th and last Tirthankara of Jainism. He established a union during his lifetime. It consisted of 11 followers. These were called 'Ganadhar' . Jainism believed in rebirth and karmism. According to this religion, only the results of our births and deaths occur. After joining Jainism, both war and agriculture were forbidden. Because in both these acts there was violence of the living beings. Idol worship was not practiced in the early times of religion, but later idol worship started. The idol of Vardhman Mahavir and other Tirthankaras was worshiped..

महावीर स्वामी का जीवन परिचय (Biography of Mahavir Swami)
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1. जन्म (Birth) - वर्धमान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व अथवा 540 ईसा पूर्व में हुआ था। इनका जन्म बिहार के कुंडग्राम (वैशाली) प्रांत में हुआ था।
Vardhman Mahavira was born in 599 BCE or 540 BCE. He was born in Kundagram (Vaishali) province of Bihar.

2. पिता (Father) इनके पिता का नाम 'सिद्धार्थ' था। यह वज्जि संघ के ज्ञातृक कुल के प्रधान थे।
His father's name was 'Siddharth' . He was the head of the known clan of the Vajji Sangh.

3. माता (Mother)- महावीर स्वामी की माता का नाम त्रिशला था। यह लिच्छवी के शासक चेटक की बहन थी।
Mahavir Swami's mother's name was Trishala . It was the sister of Chetak , the ruler of Lichhavi.

4. पत्नी (Wife)- महावीर स्वामी का विवाह कुंडिंय गोत्र की कन्या यशोदा के साथ हुआ था।
Mahavir Swami was married to Kundinya Gotra's daughter Yashoda .

5. पुत्री (Daughter)- इनकी पुत्री का नाम प्रियदर्शना था। इसके अतिरिक्त उसे अणोज्जा के नाम से भी जाना जाता था।
His daughter's name was Priyadarshana . Apart from this, he was also known as Anoja .

6. दामाद (Son in law) - इनकी पुत्री का विवाह जमालि के साथ हुआ था।

His daughter was married to Jamali .

7. गृह त्याग (House renunciation) - इन्होंने अपने बड़े भाई नांदिवर्धन से आज्ञा प्राप्त कर केवल 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग दिया था।
He left home only at the age of 30 after receiving orders from his elder brother Nandivardhan .

8. शिष्य (Disciple)- महावीर के शिष्य मक्खलिपुत्रगोशाल थे। उन्होंने आजीवक संप्रदाय की स्थापना की थी।

Mahavir's disciples were Makkhaliputragoshl . He founded the Aajeevak sect.

9. कैवल्य (ज्ञान प्राप्ति) Kaivalya (attaining enlightenment)- महावीर ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की। इसके पश्चात उन्हें 42 वर्ष की आयु में जृम्भिक ग्राम में ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था।
Mahavira practiced rigorous penance for 12 years. He was then enlightened at the age of 42 under the Sal tree on the banks of the Rijupalika river in the Jrimbhik village.

10. निर्वाण मृत्यु (Nirvana Death) - 527 ईसा पूर्व अथवा 468 ईसा पूर्व में वर्धमान महावीर की मृत्यु हो गई। उनका निधन वर्तमान राजगीर के समीप स्थित पावापुरी में मल्ल के राजा सुस्तपाल के यहाँ हुआ था।

Vardhaman Mahavira died in 527 BCE or 468 BCE. He died at the Pavapuri king of Malla Dullapal , located near the present Rajgir .

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Comments

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    Virender kumar Jain

    Posted on October 26, 2021 07:10PM

    I want to know details about 20 vitamin jain trithankar

    Reply

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