पृथ्वी की संरचना (Earth Structure)
पृथ्वी के स्वरूप के निर्धारण (Shape of the Earth):-
पृथ्वी का आकार एक नारंगी के समान है, जो ध्रुवों पर चपटी है। कई करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी जलता हुआ आग का गोला थी। जिसकी उपरी सतह धीरे-धीरे ठण्डा होना प्रारंभ हुई और फिर ठण्डक से पृथ्वी सिकुड़ने लगी, जिससे पृथ्वी के बाह्य तल पर अनेक बदलाव दिखाई दिये, कहीं पठार, कहीं समतल मैदान तो कहीं घाटी, पर्वत बन गए और कालांतर में पृथ्वी की सतह के निचले भाग वर्षा एवं भूमिगत जल से झील, नदी, समुद्र और महासागरों में परिवर्तित हो गए। इस तरह धीरे धीरे हमारी पृथ्वी का स्वरूप निर्धारण हुआ था।
The size of the Earth is similar to an orange, flattened at the poles. Several million years ago, the Earth was a burning fireball. The upper surface of which gradually began to cool and then the earth started to shrink with cold, due to which many changes were seen on the outer surface of the earth, some plateaus, some flat plains, some places became valleys, mountains and in time the lower part of the earth's surface Parts were converted into lakes, rivers, seas and oceans by rain and ground water. In this way the shape of our earth was gradually determined.
पृथ्वी की गतियाँ (Movements of the Earth)-
इस बात से हम भलीभाँति परिचित हैं कि हमारी पृथ्वी स्थिर नहीं है, बल्कि लगातार ही गतिशील अवस्था में होती है। यह सूर्य के चारों और एक निश्चित पथ पर अपनी गति को पूरा करती है। पृथ्वी का पथ दीर्घ वृत्ताकार होता है, इसी पथ को पृथ्वी की कक्षा कहा जाता है।
We are well aware that our earth is not static, but is constantly in motion. It completes its motion on a fixed path around the Sun. Earth's path is long circular, this path is called Earth's orbit.
■■ पृथ्वी पर दिन और रात होने के कारण (Day and Night on Earth) :-घूर्णन के कारण पृथ्वी के विभिन्न हिस्से सूर्य के सामने आते-जाते रहते हैं, इसलिए पृथ्वी पर दिन और रात की प्रक्रिया होती रहती है। पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में लगभग 365 दिन 6 घंटे का समय लगता है। भारत के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने लगभग 1500 वर्ष पूर्व 5 वीं शताब्दी में इस बात से अवगत करा दिया था कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है, जिसके कारण दिन और रात की प्रक्रिया होती है।
Different parts of the earth move in front of the Sun due to rotation, hence the process of day and night on earth. It takes approximately 365 days to 6 hours for the Earth to revolve around the Sun. The famous astronomer of India Aryabhata had made it known that the earth rotates on its axis, in the 5th century, about 1500 years ago, due to the process of day and night. Is.
■■ मौसम परिवर्तन के कारण (Reason of Weather Change) :-
प्रसिद्ध खगोलशास्त्री आर्यभट, भास्कर और कॉपरनिकस आदि ने ये सिद्ध किया है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है। इसी कारण सूर्य की परिक्रमा करते-करते पृथ्वी तल पर सूर्य के अत्यधिक ताप का प्रभाव एक जैसा नहीं रहता है। पृथ्वी के जिस भाग पर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हों या फिर कम पड़ती हों वहाँ तापमान अत्यन्त कम होकर शून्य या शून्य से नीचे चला जाता है, जैसे कि उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव प्रदेश टुंड्रा, साइबेरिया का उत्तरी भाग आदि।
इसी तरह पृथ्वी के जिस हिस्से पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं वे हिस्से अत्यंत गर्म रहते हैं, जैसे कि भूमध्य रेखा के आसपास स्थित क्षेत्र इण्डोनेशिया, क्यूबा आदि। पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन, सूर्य से दूरी एवं झुकाव के कारण ही मौसम में बदलाव और ऋतुओं में परिवर्तन होते हैं।
Famous astronomers Aryabhata, Bhaskar and Copernicus etc. have proved that the Earth is tilted at its axis by 23.5 degrees. For this reason, while orbiting the Sun, the effect of excessive temperature of the Sun on the Earth plane does not remain the same. On the part of the Earth where the sun's rays are oblique or low, the temperature is very low and goes below zero or zero, such as North and South Pole region Tundra, Northern part of Siberia etc
Similarly, the parts of the earth on which the sun's rays fall straight are extremely hot, such as the region around the equator Indonesia, Cuba etc. Earth's rotation on its own axis, distance and inclination from the Sun only causes changes in weather and changes in seasons.
■■ पृथ्वी के प्रमुख आंतरिक हिस्से (Earth's Major Interior) :-
वैज्ञानिकों के द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भाग का मॉडल तैयार किया गया है जो कि एक सेवफल द्वारा प्रदशित किया जा सकता है। इसके अनुसार पृथ्वी के आंतरिक भाग को तीन प्रमुख परतों में विभाजित किया जा सकता है।
Scientists have designed a model of the interior of the Earth that can be represented by an apple. Accordingly, the interior of the earth can be divided into three major layers.
(1) भूपर्पटी (Earth's Crust)
(2) प्रावार (The Cavity)
(3) क्रोड (Core)
■■ भूपर्पटी (Earth's Crust) :-
यह सबसे बाहरी परत जो अन्य दो परतों की अपेक्षा बहुत पतली होती है। इसकी मोटाई लगभग 30 से 60 km तक होती है।पृथ्वी के महत्वपूर्ण पदार्थ (खनिज) विभिन्न रूपों में यहीं पर प्राप्त होते हैं। जैसे- पेट्रोलियम, कोयला, चूने का पत्थर, धातुएँ, लोहा, ताँबा, सोना एवं बहुमूल्य रत्न यहीं पर प्राप्त होते हैं।
This outermost layer is much thinner than the other two layers. Its thickness varies from about 30 to 60 km. Important substances (minerals) of the earth are found here in various forms. Such as petroleum, coal, limestone, metals, iron, copper, gold and precious gems are found here.
■■ प्रावार (The Cavity):-
यह सबसे मध्य का परत है। जो भूपर्पटी से लगभग 2900 km की गहराई तक है। यहाँ मुख्य रूप से मैग्नीशियम, सिलिकेट एवं लोहा प्राप्त होता है।
This is the middle layer. Which is about a depth of 2900 km from Bhuparpati. It mainly gets magnesium, silicate and iron.
■■ क्रोड (Core) :-
यह पृथ्वी का सबसे भीतरी परत है।और सबसे ज्यादा ऊष्मा इसी भाग में रहती है।अगर धातुओं की बात की जाय तो सबसे ज्यादा पिघला हुआ लोहा इसी भाग अर्थात क्रोड में पाया जाता है।
It is the innermost layer of the earth. And this part of the heat is in this part. If we talk about metals, then the most molten iron is the same part ie core .
■■ पृथ्वी पर जीवन के लिए गुरुत्वाकर्षण की आवश्यकता (Need of Gravity for Life on Earth) :-
प्रत्येक वस्तु को पृथ्वी अपनी ओर एक विशेष बल से खींचती है। इसे हम गुरूत्वाकर्षण बल कहते हैं। इसके अभाव के कारण हम न तो चल सकते हैं और न ही कोई अन्य कार्य कर सकते हैं। अतः इस पृथ्वी पर समस्त गतिविधियाँ इसी बल के कारण संभव होती हैं। महान वैज्ञानिक सर आइजेक न्यूटन ने इसकी खोज की। पृथ्वी का द्रव्यमान ही इस गुरूत्वाकर्षण बल का निर्धारण करता है।
Earth pulls everything with a special force towards it. We call it gravitational force. Due to its absence, we can neither walk nor do any other work. Therefore, all the activities on this earth are possible due to this force. The great scientist Sir Isaac Newton discovered it. The mass of the Earth determines this gravitational force .
RF competition
INFOSRF.COM
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com
Watch related information below
(संबंधित जानकारी नीचे देखें।)
Comments