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प्राचीन भारत का आंध्र-सातवाहन वंश Andhra-Satavahana dynasty of ancient India

इस वंश का संस्थापक 'सिमुक' था। उसने अंतिम कण्व शासक सुशर्मन की हत्या कर आंध्र-सातवाहन वंश की नींव डाली थी। इस वंश का शासन आंध्र, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र में था। आंध्र-सातवाहन वंश की राजधानी 'प्रतिष्ठान' (पैठान) थी। पुराणों में इन्हें 'आंध्रभृत्य' कहकर संबोधित किया गया है तथा विभिन्न स्थानों से प्राप्त अभिलेखों में इन्हें 'सातवाहन' कहा गया है। इन शासकों की राजकीय भाषा 'प्राकृत' और लिपि 'ब्राह्मी' थी। इस वंश के शासकों ने लगभग 3 शताब्दियों तक शासन किया। यह प्राचीन भारत में किसी एक वंश का सर्वाधिक कार्यकाल है। इस वंश की ऐतिहासिक जानकारी हमें मुख्य रूप से अभिलेख, स्मारक और सिक्कों से प्राप्त होती है।

The founder of this dynasty was 'Simuk'. He laid the foundation of the Andhra-Satavahana dynasty by killing the last Kanva ruler Susharman. This dynasty ruled in Andhra, Karnataka and Maharashtra. The capital of the Andhra-Satavahana dynasty was 'Pratishthan' (Paithan). In the Puranas, he is addressed as 'Andhra Bhabhi' and in records from various places he is referred to as 'Satavahana'. The official language of these rulers was 'Prakrit' and the script was 'Brahmi'. The rulers of this dynasty ruled for almost 3 centuries. This is the longest tenure of any one dynasty in ancient India. We mainly get historical information of this dynasty from inscriptions, memorials and coins.

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ये प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं-
1. गौतमीपुत्र शातकर्णी के नासिक से मिले दो गुहालेख
2. रानी नागनिका का नानाघाट अभिलेख (पुणे, महाराष्ट्र)
3. वशिष्ठीपुत्र पुलुमावी का नासिक गुहालेख
4. गौतमी बलश्री का नासिक गुहालेख
5. यज्ञश्री शातकर्णी का नासिक गुहालेख
6. वशिष्ठीपुत्र पुलुमावी का कार्ले गुहालेख

These are the major sources-
1. Gautamiputra Shatkarni's two inscriptions from Nashik.
2. Nanaghat inscription of Rani Naganika (Pune, Maharashtra).
3. Nasik cavity of Vasishtiputra Pulumavi.
4. Gautami Balashree's Nashik cavity.
5. Yajnashri Shatkarni's Nasik cavity.
6. Carle cavity of Vashishtiputra Pulumavi.

सातवाहन वंश के प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं-
1. शातकर्णी प्रथम
2. हाल
3. गौतमीपुत्र शातकर्णी
4. वशिष्ठीपुत्र पुलुमावी
5. यज्ञश्री शातकर्णी

The following are the main rulers of the Satavahana dynasty-
1. Shatkarni First
2. Hall
3. Gautamiputra Shatkarni
4. Vasishtiputra Pulumavi
5. Yajnashree Shatkarni

शातकर्णी प्रथम- यह एक यशस्वी सम्राट था। इसके विषय में हमें रानी नागनिका\नयनिका के नानाघाट अभिलेख से जानकारी प्राप्त होती है। अपने शासनकाल में इसने मालव शैली की गोल मुद्राएँ चलवाई थी। इसने अपनी पत्नी के नाम पर रजत मुद्राएँ उत्कीर्ण करवाईं थी। उसके सिक्कों पर 'श्रीसात' अर्थात् 'शातकर्णी का सूचक' का वर्णन मिलता है। इसने अपने समय में दो अश्वमेध यज्ञ तथा एक राजसूय यज्ञ किया था। शातकर्णी प्रथम ने 'दक्षिणापथपति' और 'अप्रतिहतचक्र' की उपाधि धारण की थी।

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Shatkarni I- It was a famous emperor. We get information about this from the Nanaghat inscription of Rani Naganika\Nayanika. During his reign, it introduced Malav-style round postures. He had silver coins engraved in his wife's name. A description of 'Srisat' ie 'Shatkarni Pointer' is found on his coins. In his time, he performed two Ashwamedha Yagna and one Rajasuya Yajna. Shatkarni I assumed the titles of 'Dakshinapathapati' and 'Apratihatchakra'.

हाल- यह इस वंश का महान शासक था। उसकी राज सभा में बहुत से कवि तथा विद्वान थे। वह स्वयं भी एक बहुत बड़ा कवि था। उसने प्राकृत भाषा में 'गाथासप्तशती' नामक मुक्तक काव्य की रचना की थी। हाल से आश्रय प्राप्त गुणाढ्य ने 'बृहत्कथा' की रचना की थी। यह पैशाची प्राकृत भाषा में रचित ग्रंथ है। इसके अतिरिक्त सर्ववर्मन ने 'कातंत्र' की रचना की थी। यह एक संस्कृत व्याकरण ग्रंथ है।

Hall- It was the great ruler of this dynasty. There were many poets and scholars in his Raj Sabha. He himself was also a great poet. He composed Muktak poetry in the Prakrit language called 'Gathasaptashati'. The recently sheltered Gunadhya composed the 'Brihatkatha'. This is a book written in the Paishachi Prakrit language. In addition, Sarvavarman composed 'Kantantra'. It is a Sanskrit grammar book.

गौतमीपुत्र शातकर्णी- सातवाहन वंश का यह सबसे महानतम सम्राट था। इतने 106 ईस्वी से 130 ईस्वी तक शासन किया। इसकी माता का नाम गौतमी बलश्री था। गौतमी बलश्री के नासिक अभिलेख से हमें उसके पुत्र गौतमीपुत्र शातकर्णी विजय अभियानों की जानकारी प्राप्त होती है। इस अभिलेख के अनुसार गौतमीपुत्र शातकर्णी अद्वितीय ब्राम्हण (एक ब्राम्हण) था। इस अभिलेख में कहा गया है कि "उसके घोड़ो ने तीनों समुद्रों का पानी पिया था।" उसका साम्राज्य उत्तर में मालवा से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक विस्तृत था। वह बहुत उदार शासक था। उसने बौद्ध संघ को 'अजकालकीय' और कार्ले के भिक्षु संघ को 'करजक' ग्राम दान में दिए थे। नासिक (जोगलथंबी) से गौतमीपुत्र शातकर्णी के लगभग 8000 चांदी के सिक्के प्राप्त हुए हैं। इन सिक्कों में एक ओर नेहपान तथा दूसरी ओर गौतमीपुत्र शातकर्णी लिखा हुआ था। उल्लेखनीय है कि गौतमीपुत्र शातकर्णी ने शक शासक ने नहपान पर विजय प्राप्त की थी। उसने 'वेणकटक स्वामी' नामक उपाधि धारण की थी। उसने 'वेणकटक' नामक नगर बसाया था। उसने 'राजाराज' तथा 'विंध्यनरेश' की भी उपाधि धारण की थीं।

Gautamiputra Shatakarni- It was the greatest emperor of the Satavahana dynasty. So ruled from 106 AD to 130 CE. His mother's name was Gautami Balashri. Gautami Balashri's Nasik inscription gives us information about his son Gautamiputra Shatkarni Vijay campaigns. According to this inscription Gautamiputra Shatakarni was the unique Brahman (a Brahmin). This inscription states that "his horses drank the waters of the three seas." His empire ranged from Malwa in the north to Karnataka in the south. Was extended to He was a very liberal ruler. He donated 'Ajkalakya' to the Buddhist Sangha and 'Karajak' gram to the monk Sangha of Carle. About 8000 silver coins of Gautamiputra Shatkarni have been received from Nashik (Joghalthambi). These coins contained Nehpan on one side and Gautamiputra Shatkarni on the other side. It is noteworthy that Gautamiputra Shatkarni had conquered Nahapan by the Saka ruler. He assumed the title 'Venkatak Swami'. He had established a city called 'Venkatak'. He also held the titles of 'Rajaraja' and 'Vindhyanaresh'.

वशिष्ठीपुत्र पुलुमावी- यह गौतमीपुत्र शातकर्णी का पुत्र था, जो अपने पिता के पश्चात शासक बना। इतने 130 ईस्वी से 154 ईस्वी तक शासन किया। इसने आंध्र प्रदेश पर विजय प्राप्त की थी। इस विजय के उपलक्ष्य में उसे 'प्रथम आंध्र सम्राट' कहकर संबोधित किया गया। इसने अपनी राजधानी प्रतिष्ठान या पैठान को बनाई। यह आंध्र प्रदेश के औरंगाबाद जिले में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। उसने शक शासक रुद्रदामन पर दो बार विजय प्राप्त की थी। उसने 'दक्षिणापथेश्वर' की उपाधि धारण की थी। पुराणों में इसे 'पुलोमा' कहा गया है। पुलुमावी के पश्चात शिवश्री शातकर्णी शासक बना। इसने 154 ईस्वी से 165 ईस्वी तक शासन किया। इसके बाद शिवस्कंद शातकर्णी शासक बना। इसने 165 ईस्वी से 174 ईस्वी तक शासन किया।

Vasishtiputra Pulumavi- This was the son of Gautamiputra Shatkarni, who became the ruler after his father. So ruled from 130 AD to 154 AD. It had conquered Andhra Pradesh. To commemorate this victory, he was addressed as 'First Andhra Emperor'. It made its capital Pratishthan or Paithan. It is located on the banks of the Godavari River in Aurangabad district of Andhra Pradesh. He had twice conquered the Saka ruler Rudradaman. He assumed the title of 'Dakshinapatheshwar'. In the Puranas it is called 'Puloma'. After Pulumavi, Shivshree Shatkarni became the ruler. It ruled from 154 AD to 165 AD. After this Shivaskand Shatkarni became the ruler. It ruled from 165 AD to 174 AD.

यज्ञश्री शातकर्णी- यह इस वंश का महत्वपूर्ण शासक था। इसने शकों द्वारा विजित क्षेत्रों पर पुनः अपना अधिकार कर लिया था। यज्ञश्री शातकर्णी के सिक्के महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात तथा मध्य प्रदेश से प्राप्त हुए हैं। इसके सिक्कों पर जहाज के चित्र बने हुए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि वह जलयात्रा तथा व्यापार का प्रेमी था। यज्ञश्री की मृत्यु होने के पश्चात विद्रोह तथा केंद्रीय शासन की दुर्बलता के कारण सातवाहनों का साम्राज्य विभाजित हो गया।

Yajnashri Shatkarni- He was the important ruler of this dynasty. It had regained the territories conquered by the Shakas. Coins from Yajnashri Shatkarni are sourced from Maharashtra, Andhra Pradesh, Gujarat and Madhya Pradesh. Its coins have pictures of the ship. This makes it clear that he was sailing and lover of business. After the death of Yajnashree, the kingdom of Satavahanas was divided due to rebellion and weakness of central rule.

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धन्यवाद।
RF Temre
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