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'अ' और 'आ' वर्णों से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य एवं इनकी विशेषताएँ

स्वर वर्ण - अ एवं ये दोनों हिन्दी वर्णमाला के प्रारंभ के दो क्रमशः हृस्व एवं दीर्घ स्वर वर्ण हैं। हृस्व इसलिए कि को बोलने (उच्चारित) करने का समय कम एवं दीर्घ इसलिए कि को बोलने (उच्चारित) करने का समय अधिक होता है। उच्चारण करने के इसी समय को मात्रा काल कहते हैं। जब हम का उच्चारण करते हैं तो उच्चारण में लगने वाले समय को एक मात्रा काल कहा जाता है जबकि के उच्चारण में लगने वाले समय को दो मात्रा काल कहते हैं।

(i) 'अ' — यह वह वर्ण है जो स्वतंत्र रूप से उच्चारित होता है और प्रत्येक व्यंजन वर्ण में मिलकर उसे ध्वनि प्रदान करने में सहायक होता है। इसके अलावा वर्णमाला में प्रत्येक वर्ण को स्वतंत्र रूप से उच्चारित करने में सहायता प्रदान करता है। बिना वर्ण के किसी भी व्यंजन वर्ण का उच्चारण संभव नहीं है। इस स्वर वर्ण की कोई मात्रा नहीं होती है। जब यह किसी व्यंजन वर्ण में संयोजित होता है तब उस व्यंजन वर्ण से नीचे लगा हलन्त हट जाता है।
जैसे– क्, ख्, ग्, घ्, ..... आदि व्यंजन वर्णों का उच्चारण संभव नहीं है। किंतु इनमें स्वर के शामिल हो जाने पर इन्हें क, ख, ग, घ, ..... लिखते हैं और इनका उच्चारण करना सहज हो जाता है। यदि इन व्यंजनों को तोड़ा जाये तो ये
क = क्+अ
ख = ख्+अ
ग = ग्+अ
घ = घ्+अ
के रूप में लिखे जायेंगे। इस तरह हमनें देखा की सभी व्यंजनों में समाहित रहता है।

(ii) स्वर वर्ण आ — यह स्वर वर्ण स्वतंत्र रूप से उच्चारित होता है और किसी व्यंजन में मात्रा (ा) के रूप में समाहित होकर उस व्यंजन को उच्चारण प्रदान करता है। जैसे — क+ा = का, म+ा = मा।
इस स्वर से गायकों के द्वारा आलाप भरा जाता है।

उच्चारण स्थान— इन दोनों स्वर वर्णों का उच्चारण स्थान कण्ठ है अर्थात ये दोनों वर्ण कण्ठ्य वर्ण हैं। कण्ठ वह स्थान है जहाँ से गला या ग्रसनी प्रारंभ होती है। इन दोनों वर्णों के उच्चारण में मुख के कोई भी अवयव एक-दूसरे को स्पर्श नहीं करते। इनके उच्चारण में वायु बिना अवरोध (अबाध गति) के मुख द्वार के बाहर निकल जाती है। इसके अलावा ये वर्ण (ध्वनियाँ) विवृत स्वर कहलाते हैं क्योंकि इनके उच्चारण में मुँह पूरा खुला रहता है। इसी प्रकार इन्हें अवृत्ताकार स्वर वर्ण भी कहते हैं क्योंकि इनके उच्चारण में ओठों की स्थिति वृत के समान नहीं बनती है। जबकि के उच्चारण में ओठों की स्थिति वृत के समान होती है। वर्ण को अग्र स्वर एवं को पश्च स्वर कहते हैं।

उच्चारण समय― उच्चारण करके देखा जाये तो इन दोनों स्वर वर्णों के उच्चारण में क्रमशः एक व दो मात्रा काल का समय लगता है। इसके अलावा या उच्चारण करने पर गलविल बंद होकर खुलते हैं।

मुख स्थिति― इन दोनों स्वर वर्णों के उच्चारण में मुख की स्थिति में थोड़ा अन्तर पाया जाता है। के उच्चारण में ओठ कम खुलते हैं जबकि के उच्चारण करने पर ओठ ज्यादा खुलते हैं। निम्न स्वर जबकि आ उच्च स्वर होता है। इनके उच्चारण में ज्यादा प्रयास करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

उच्चारण का तरीका― इन वर्णों को स्वतंत्र रूप में पढ़ने में झटके के साथ नहीं पढ़ना चाहिए। प्रायः विद्यार्थियों को वर्णमाला सिखाते समय शिक्षकवृन्द को झटके के साथ उच्चारित करते हैं और को स्वर ऊँचा कर उच्चारित करते हैं। वर्णमाला पढ़ते या पढ़ाते समय इनका उच्चारण उसी प्रकार कर करना चाहिए जिस प्रकार किसी शब्द में आने पर करते हैं। जैसे– अमरनाथ, अर्थ, आवाज, आगम आदि शब्दों में जिस तरह का उच्चारण हो रहा है वैसे ही स्वतंत्र वर्ण होने पर इनका उच्चारण करना चाहिए। यदि झटके के साथ या कुछ अलग तरीके से उच्चारण करने पर विद्यार्थी भ्रमित हो जाते हैं एवं सही उच्चारण नहीं कर पाते।

वर्तमान एवं प्राचीन वर्णों का स्वरूप एवं लिपि ― हिन्दी वर्णमाला की लिपि देवनागरी है। इन्हें वर्तमान में और लिखा जाता है किन्तु प्राचीन काल में इन्हें कुछ अलग तरीके से लिखा जाता था।

अ और आ के प्रयोग― अ का प्रयोग उपसर्ग के रूप में अधिकांशतः किया जाता है। किसी शब्द के प्रारंभ में उपसर्ग के रूप में प्रयोग करने पर उस शब्द का विपरीत अर्थ स्पष्ट होने लगता है। जैसे– नीति, ज्ञान, आदर, परिचित आदि के प्रारंभ में अ लगाने पर सीधा विपरीत अर्थ हो जाता है।
नीति ― अनीति
ज्ञान ― अज्ञान
सत्य ― असत्य
परिचित ― अपरिचित

को भी उपसर्ग के रूप में प्रयोग किया जाता है। किंतु यह विपरीत अर्थ नहीं देता। जैसे― कंठ, पूर्ति, मद, गमन, जन्म, क्रमण आदि में आ उपसर्ग की भाँति प्रयोग करने पर विशिष्ट अर्थ देते हैं—
कंठ — आकंठ
पूर्ति — आपूर्ति
मद — आमद
गमन — आगमन
जन्म — आजन्म
क्रमण — आक्रमण

का प्रयोग शब्द की भाँति भी किया जाता है। जैसे― मंजू इधर । यहाँ एक शब्द के रूप में प्रयुक्त हुआ है जिसका अर्थ आने से है।

ये दोनों हैं मूल ध्वनियाॅं — अ और दोनों स्वर वर्ण मूल ध्वनियाॅं हैं क्योंकि इनके खण्ड नहीं किये जा सकते। यदि हम एक शब्द बोले 'अमरूद' या 'आवागमन' तो इन दोनों शब्दों में और केवल मूल ध्वनियां हैं शेष मूल ध्वनियां नहीं है क्योंकि ये संयुक्त होकर बने हैं। उदाहरण —
अमरूद = अ+म्+अ+र्+ऊ+द्+अ
आवागमन = आ+व्+आ+ग्+अ+म्+न्+अ

उक्त में हम देखते हैं कि अ और आ को केवल नहीं तोड़ा जा सकता बाकी सभी को तोड़ा जा सकता है।
म = म्+अ
र = र्+ऊ
द = द्+अ
व = व्+आ
ग = ग्+अ
म = म्+न्
न = न्+अ
उक्त में तोड़ने के पश्चात र्, ऊ, द्, व्, ग्, म्, न् मूल ध्वनियाँ हैं क्योंकि इन्हें अब आगे नहीं तोड़ा जा सकता।

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1. व्याकरण क्या है
2. वर्ण क्या हैं वर्णोंकी संख्या
3. वर्ण और अक्षर में अन्तर
4. स्वर के प्रकार
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1. लिपियों की जानकारी
2. शब्द क्या है
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5. छंद के प्रकार– मात्रिक छंद, वर्णिक छंद
6. विराम चिह्न और उनके उपयोग
7. अलंकार और इसके प्रकार

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2. देशज, विदेशी एवं संकर शब्द
3. रूढ़, योगरूढ़ एवं यौगिक शब्द
4. लाक्षणिक एवं व्यंग्यार्थक शब्द
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6. अनेकार्थी शब्द क्या होते हैं उनकी सूची
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8. पर्यायवाची शब्द सूक्ष्म अन्तर एवं सूची
9. शब्द– तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी, रुढ़, यौगिक, योगरूढ़, अनेकार्थी, शब्द समूह के लिए एक शब्द
10. हिन्दी शब्द- पूर्ण पुनरुक्त शब्द, अपूर्ण पुनरुक्त शब्द, प्रतिध्वन्यात्मक शब्द, भिन्नार्थक शब्द
11. द्विरुक्ति शब्द क्या हैं? द्विरुक्ति शब्दों के प्रकार

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. 'ज' का अर्थ, द्विज का अर्थ
2. भिज्ञ और अभिज्ञ में अन्तर
3. किन्तु और परन्तु में अन्तर
4. आरंभ और प्रारंभ में अन्तर
5. सन्सार, सन्मेलन जैसे शब्द शुद्ध नहीं हैं क्यों
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7. 'र' के विभिन्न रूप- रकार, ऋकार, रेफ
8. सर्वनाम और उसके प्रकार

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1. समास के प्रकार, समास और संधि में अन्तर
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4. योजक चिह्न- योजक चिह्न का प्रयोग कहाँ-कहाँ, कब और कैसे होता है?
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6. कर्त्ता क्रिया की अन्विति संबंधी वाक्यगत अशुद्धियाँ

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1. विराम चिन्हों का महत्व
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3. लोकोक्ति और मुहावरे में अंतर भाषा में इनकी उपयोगिता
4. प्रेरणार्थक / प्रेरणात्मक क्रिया क्या है ? इनका वाक्य में प्रयोग
5. पुनरुक्त शब्द एवं इसके प्रकार | पुनरुक्त और द्विरुक्ति शब्दों में अन्तर

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1. गज़ल- एक साहित्य विधा
2. शब्द शक्ति- अभिधा शब्द शक्ति, लक्षणा शब्द शक्ति एवं व्यंजना शब्द शक्ति
3. रस क्या है? शांत रस एवं वात्सल्य रस के उदाहरण
4. रस के चार अवयव (अंग) – स्थायीभाव, संचारी भाव, विभाव और अनुभाव
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1. घनाक्षरी छंद और इसके उदाहरण
2. काव्य का 'प्रसाद गुण' क्या होता है?
3. अपहनुति अलंकार किसे कहते हैं? एवं विरोधाभास अलंकार
4. भ्रान्तिमान अलंकार, सन्देह अलंकार, पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार
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1. प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्य क्या होते हैं?
2. कुण्डलियाँ छंद क्या है? इसकी पहचान एवं उदाहरण
3. हिन्दी में मिश्र वाक्य के प्रकार (रचना के आधार पर)
4. मुहावरे और लोकोक्ति का प्रयोग कब और क्यों किया जाता है?
5. राष्ट्रभाषा क्या है और कोई भाषा राष्ट्रभाषा कैसे बनती है?

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1.अर्थ के आधार पर वाक्य के प्रकार
2. पुनरुक्त शब्दों को चार श्रेणियाँ
3. भाषा के विविध स्तर- बोली, विभाषा, मातृभाषा
4. अपठित गद्यांश कैसे हल करें?
5. वाच्य के भेद - कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य, भाववाच्य

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1. भाव-विस्तार (भाव-पल्लवन) क्या है और कैसे किया जाता है?
2. राज भाषा क्या होती है, राष्ट्रभाषा और राजभाषा में क्या अंतर है?
3. छंद किसे कहते हैं? मात्रिक - छप्पय एवं वार्णिक छंद - कवित्त, सवैया
4. काव्य गुण - ओज-गुण, प्रसाद-गुण, माधुर्य-गुण
5. अलंकार – ब्याज-स्तुति, ब्याज-निन्दा, विशेषोक्ति, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण, यमक, श्लेष

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1. रस के अंग – स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव, संचारी भाव
2. रसों का वर्णन - वीर, भयानक, अद्भुत, शांत, करुण
3. काव्य के भेद- श्रव्य काव्य, दृश्य काव्य, प्रबंध काव्य, मुक्तक काव्य, पाठ्य मुक्तक, गेय मुक्तक, नाटक, एकांकी
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5. योजक चिह्न (-) का प्रयोग क्यों और कहाँ होता है?
6. 'पर्याय' और 'वाची' शब्दों का अर्थ एवं पर्यायवाची और समानार्थी शब्दों में अंतर
7. 'हैं' व 'हें' तथा 'है' व 'हे' के प्रयोग तथा अन्तर || 'हैं' और 'है' में अंतर || 'हैं' एकवचन कर्ता के साथ भी प्रयुक्त होता है
8. अनुनासिक और निरनुनासिक में अंतर
9. हिन्दी की क्रियाओं के अन्त में 'ना' क्यों जुड़ा होता है? मूल धातु एवं यौगिक धातु
10. अनुस्वार युक्त वर्णों का उच्चारण कैसे करें?

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)
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