
अर्थ के आधार पर -वाचक, लाक्षणिक,वयंग्यार्थक शब्द || Types of words - Hindi Vyakaran
(i) वाचक (वाच्यार्थक) या अभिधार्थ शब्द
(ii) लाक्षणिक या लक्ष्यार्थक शब्द।
(iii) व्यंजक या वयंग्यार्थक शब्द।
'खंड 2' में अर्थ के आधार पर शब्दों के कई वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। जैसे-
(i) एकार्थी शब्द
(ii) अनेकार्थी शब्द (बहुअर्थी)
(iii) विलोमार्थी (विपरीतार्थक)
(iv) पर्यायवाची
(v) समानार्थी
(vi) युग्म शब्द
(vii) ध्वनि बोधक शब्द इत्यादि।
इनका अध्ययन खंडानुसार नीचे किया गया है।
(i) वाचक (वाच्यार्थक) या अभिधार्थ शब्द - वे शब्द जो प्रचलित अर्थ को प्रकट करते हैं। अपने साधारण या किसी वस्तु स्थान या स्थिति की पहचान को निर्धारित करने का अर्थ प्रदान करते हैं। उन्हें वाचक शब्द कहा जाता है।
उदाहरण - कंघी, गंगा, गधा, क्यों, किंतु, गाय, पक्षी, काला, कौवा, चाबी, कपोत इत्यादि। उपरोक्त शब्दों का वाक्यों में प्रयोग करने पर वाच्यार्थक अर्थ प्रकट करेंगे।
जैसे — (१) धोबी के पास चार गधे हैं।
(२) हमारे घर में एक गाय है।
(३) यह चाबी इस ताले की नहीं है।
उपरोक्त रेखांकित शब्द इन वाक्यों में वाचक अर्थ अर्थात एक वस्तु का अर्थ प्रकट करने हेतु प्रयुक्त हुए हैं।
टीप – उपरोक्त वाक्य में प्रयुक्त रेखांकित शब्दों का प्रयोग यदि अलग तरह से वाक्यों में किया जाएगा तो गधा, गाय, चाबी शब्दों के अर्थ कुछ अन्य अर्थ देने लगते हैं। हम लाक्षणिक शब्दों के रूप में निम्नानुसार देखेंगे।
(ii) लाक्षणिक या लक्ष्यार्थक शब्द– जब वाक्य में किसी शब्द का प्रयोग परम्परा या किसी विशेष प्रयोजन के लिए मुख्य अर्थ से संबंधित अन्य अर्थ को प्रकट करने के लिए किया जाता है तब वह शब्द लाक्षणिक शब्द कहलाता है। हम वाचक शब्दों का प्रयोग लाक्षणिक शब्द के रूप में उस शब्द अर्थात वस्तु, व्यक्ति, स्थान का प्रयोग उसके लक्षण गुण या अर्थ के अनुसार करते हैं तो वे वाचक शब्द लाक्षणिक शब्दों की श्रेणी में आ जाते हैं।
उदाहरण – (१) रामलाल की बहू एकदम गाय है।
(२) तू एकदम गधा है।
(३) ज्ञान प्रत्येक द्वार की चाबी है।
(४) उसके बेटे शेर हैं।
उपरोक्त वाक्यों में ऊपर से 3 वाक्य में प्रयुक्त रेखांकित शब्द गाय, गधा व चाबी पूर्व में वाच्यार्थक रूप में प्रयुक्त हो चुके हैं। किंतु यहाँ सीधी-सादी, मूर्ख एवं युक्ति के अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं। अतः ये शब्द तीन वाक्य में लाक्षणिक शब्द कहलाएंगे।
टीप- अर्थ की दृष्टि से स्वतन्त्र रूप में किसी शब्द को वाचक या लाक्षणिक शब्द के रूप में चिन्हित नहीं किया जा सकता। शब्द का प्रकार उसी समय बताया जा सकता है, जब वह वाक्य में प्रयुक्त हुआ हो। जैसा कि उपरोक्त दोनों प्रकारों के उदाहरणों में बताया गया है।
(iii) व्यंजक या वयंग्यार्थक शब्द— जब शब्दों का प्रयोग वाक्य में व्यंग्यात्मक बोध लेते हुए करते हैं, उन्हें व्यंजक या व्यंग्यार्थक शब्द कहा जाता है। व्यंजक शब्दों का न तो वाचक (मुख्य) अर्थ लिया जाता है और न हि लाक्षणिक अर्थ, बल्कि इनसे कोई गूढ़ या सांकेतिक अर्थ प्राप्त होता है।
उदाहरण — (१) क्यों भाई! क्या टाइम हो गया?
(२) पत्ता तक नहीं मिल रहा है।
(३) पेट का पानी तक नहीं डुलेगा।
(४) गर्दन पर नंगी तलवार लटकी हुई है।
उपरोक्त वाक्यों में देखें तो प्रथम वाक्य बोला जा सकता — जब कुछ लड़के काफी समय से बैठे हुए हो, तो हम कहते हैं – 'क्यों भाई क्या टाइम हो गया।' वास्तव में हमारा आशय समय पूछना नहीं, अपितु ताना या व्यंगय कस कर यह बताने की कोशिश करना है कि तुम बहुत समय से बैठे हुए हो, अब तुम्हें यहाँ से चले जाना चाहिए।
इसी तरह 'पत्ता तक नहीं मिल रहा है' का अर्थ बिल्कुल शांति छाई हुई है, से लगाते हैं। व्यंजक शब्दों का प्रयोग भाषा में प्रभाव पैदा करने के लिए किया जाता है।
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R. F. Tembhre
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