
गद्य साहित्य की गौण (लघु) विधाएँ― जीवनी, आत्मकथा, आलोचना, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, यात्रा-साहित्य || secondary genres of prose literature
हिन्दी गद्य साहित्य के लघु (गौण या प्रकीर्ण) विधाएँ निम्नलिखित हैं ― जीवनी, आत्मकथा, आलोचना, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, यात्रा-साहित्य, पत्र-साहित्य, साक्षात्कार (इंटरव्यू-साहित्य), गद्य काव्य, डायरी, लघु कथा
जीवनी― जीवनी किसी व्यक्ति के जीवन का लिखित वर्णित वृतांत है। जीवनी में जन्म से लेकर मृत्यु तक की महत्वपूर्ण घटनाओं के माध्यम से जीवनी नायक का चित्रण किया जाता है। जीवनी लेखन पूर्वाग्रह से मुक्त तथस्ट भाव से लिखना आवश्यक है। जीवनी साहित्य की रचना किसी व्यक्ति अथवा महापुरुष को केंद्र में रखकर लिखी जाती है।
जीवनी साहित्य में प्रमुखता एक व्यक्ति को मिलती है जिसके जीवन की मार्मिक और सारपूर्ण घटनाओं का अंकन नहीं चित्रण होता है। इस दृष्टि से यह इतिहास और उपन्यास के बीच स्थित होती है। इसमें इतिहास का घटना क्रम तथा उपन्यास की रोचकता होती है। जीवनी में सर्वज्ञता की अपेक्षा, संवेदना और निष्पक्षता अधिक आवश्यक है। जीवनी में चरितनायक की वीर पूजा न होकर उसकी कमियाँ और विशेषताएँ भी बतायी जानी चाहिए।
विषय की दृष्टि से जीवनी के भेद निम्नलिखित हैं―
1. संत चरित्र
2. ऐतिहासिक चरित्र
3. राष्ट्रनेता
4. विदेशी चरित्र
5. साहित्यिक चरित्र
हिन्दी साहित्य के प्रमुख जीवनी लेखक एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं―
1. अमृतराय- प्रेमचंद की जीवनी 'कलम के सिपाही'
2. विष्णु प्रभाकर- आवारा मसीहा
3. शांति जोशी- पंत की जीवनी
4. सुशीला नायक- बाबू के कारावास की कहानी
5. गोपाल शर्मा- स्वामी दयानंद
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आत्मकथा― आत्मकथा व्यक्ति द्वारा स्वयं के जीवन प्रसंगों की व्याख्या होती है। आत्मकथा और जीवनी में पर्याप्त अंतर है। अपने जीवन की घटनाओं का स्वयं लिखा हुआ विवरण आत्मकथा है तो दूसरे के द्वारा लिखा हुआ विवरण जीवनी है।
आत्मकथा में व्यक्ति स्वयं अपने जीवन की कथा स्मृतियों के आधार पर लिखता है। आत्मकथा में निष्पक्षता आवश्यक है। गुण दोषों के तटस्थ विश्लेषण तथा काल्पनिक बातों-घटनाओं से बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रभाव और रोचकता भी आवश्यक है।
इस विधा में रचनाकार दृष्टा एवं भोक्ता दोनों बना रहता है। मानव जीवन में अटूट आस्था का होना, आत्मकथा का प्रमुख तत्व है। देशकाल और वातावरण का सही ज्ञान आत्मकथा में आवश्यक है। साथ ही मूल घटना का कोई पक्ष अस्पष्ट नहीं रहे क्योंकि घटना सूत्र कहीं तो प्रधान रूप धारण करता है और कहीं गौण रहता है। इस विधा में लेखक के कई अज्ञात और गोपन पहलू प्रकट होते हैं। इसमें घटनाओं के बदले व्यक्तित्व प्रकाशन एवं आत्मोद्घाटन पर बल दिया जाता है।
हिंदी साहित्य के प्रमुख आत्मकथा लेखक एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं―
1. हरिवंश राय बच्चन- क्या भूलूँ? क्या याद करूँ?
2. राहुल सांस्कृत्यायन- मेरी जीवन यात्रा
3. वियोगी हरि- मेरा जीवन प्रवाह
4. बाबू गुलाबराय- मेरी असफलताएँ
5. महात्मा गांधी- सत्य का प्रयोग
जीवनी और आत्मकथा में अंतर निम्नलिखित है―
1. जीवनी किसी महापुरुष के जीवन पर आधारित होती है जबकि आत्मकथा में लेखक अपनी कथा कहता है।
2. जीवनी सत्य घटनाओं पर आधारित होती है जबकि आत्मकथा काल्पनिक भी हो सकती है।
आलोचना― आलोचना का अर्थ है किसी भी साहित्यिक रचना को अच्छी तरह देखना या परखना, उसके गुण-दोषों का निर्णय करना। आलोचना को समालोचना भी कहते हैं। समीक्षा शब्द भी इसके लिए प्रयोग में लाया जाता है।
किसी विषय की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर उस पर विचार विमर्श करना, उसको स्पष्ट करना, उसके गुण-दोषों की विवेचना कर उस पर अपना मंतव्य प्रकट करना, आलोचना कहलाती है। यह एक विचार प्रधान गद्य रचना है।
आलोचना के भेद निम्नलिखित हैं―
1. सैध्दांतिक
2. प्रयोगात्मक
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हिंदी साहित्य के प्रमुख आलोचक एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. बालकृष्ण भट्ट- नील देवी, परीक्षा गुरु
2. जगन्नाथ प्रसाद 'भानु'- काव्य प्रभाकर, छंद सारावली
3. आचार्य रामचंद्र शुक्ल- कल्पना का आनंद
4. बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'- संयोगिता स्वयंबर
5. हजारी प्रसाद द्विवेदी- हिंदी साहित्य की भूमिका
संस्मरण― लेखक के स्मृति पटल पर अंकित किसी विशेष व्यक्ति के जीवन की कुछ घटनाओं का रोचक विवरण संस्मरण कहलाता है। संस्मरण आत्मकथा के ही क्षेत्र से निकली हुई विधा है, किंतु आत्मकथा और संस्मरण में अंतर है।
आत्मकथा का प्रमुख पात्र लेखक स्वयं होता है, किंतु संस्मरण के अंतर्गत लेखक जो कुछ देखता है, अनुभव करता है, उसे भावात्मक प्रणाली के द्वारा प्रकट करता है। ऐसे लेखन में संपूर्ण जीवन का चित्र ना होकर किसी एक या अधिक घटना का रोचक वर्णन रहता है।
संस्मरण का तात्पर्य है सम्यक् स्मरण अर्थात् "जब लेखक अनुभूत की गई घटनाओं का अथवा किसी व्यक्ति या वस्तु का मार्मिक वर्णन अपनी स्मृति के आधार पर करता है, तो वह संस्मरण कहलाता है।" संस्मरण कथा न होकर कथाभास है। संस्मरण में अतीत का परिवेश अनिवार्यतः होता है। यह आत्मकथा तथा निबंध के बीच की विधा है। इसमें लेखक के दृष्टिकोण की प्रधानता रहती है।
हिंदी साहित्य के प्रमुख संस्मरण लेखक एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. महादेवी वर्मा- पथ के साथी, अतीत के चलचित्र
2. कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'- दीप जले शंख बजे
3. शिवरानी देवी- प्रेमचंद घर में
4. उपेंद्रनाथ अश्क- मण्टोः मेरा दुश्मन
5. सेठ गोविंद दास- स्मृति कण
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रेखाचित्र― जिस विधा में क्रमबद्धता का ध्यान न रखकर किसी व्यक्ति की आकृति, उसकी चाल-ढाल या स्वभाव का, किन्हीं विशेषताओं का शब्दों द्वारा सजीव चित्रण किया जाता है, रेखाचित्र कहलाता है।
इसे अंग्रेजी में 'स्केच' कहा जाता है। रेखाचित्र मूल रूप से चित्रकला का शब्द है। रेखाओं के द्वारा बना हुआ चित्र, रेखाचित्र कहलाता है। चित्र में रेखाएँ जो काम करती हैं, वही काम साहित्य में शब्द करते हैं। जब लेखक शब्दों के द्वारा किसी व्यक्ति, वस्तु या दृश्य का इस प्रकार वर्णन करता है कि आंखों के आगे उस व्यक्ति, वस्तु या दृश्य का चित्र खिंचता चला जाए, तो इसे रेखाचित्र कहते हैं।
इसे शब्द चित्र भी कहते हैं। अतः "जब हम किसी घटना, व्यक्ति या वस्तु का शब्दों के माध्यम से ऐसा कलात्मक वर्णन करते हैं कि आंखों के सामने चित्र सा उपस्थित हो जाता है, उसे रेखाचित्र कहते हैं।"
रेखाचित्र, गद्य के नए रूप की प्रमुख विधा है। श्री राम बेनीपुरी ने शब्द चित्र को रेखाचित्र कहा है। चित्रात्मकता इसकी पहली शर्त है।
टीप- हिंदी साहित्य का पहला रेखाचित्र 'औरंगजेब' सन् 1912 में 'बनारसीदास चतुर्वेदी' ने लिखा था।
हिंदी साहित्य के प्रमुख रेखाचित्रकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं―
1. रामवृक्ष बेनीपुरी- माटी की मूरतें
2. महादेवी वर्मा- अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ
3. माखनलाल चतुर्वेदी- समय के पाँव
4. बनारसीदास चतुर्वेदी- औरंगजेब
5. कृष्णा सोबती- हम हशमत
संस्मरण और रेखाचित्र में अंतर निम्नलिखित है―
1. संस्मरण किसी विशेष व्यक्ति का ही होता है जबकि रेखाचित्र सामान्य से सामान्य व्यक्ति का हो सकता है।
2. संस्मरण यथार्थ प्रधान (वास्तविक) होता है जबकि रेखाचित्र चरित्र प्रधान होता है।
3. संस्मरण व्यक्ति परक होता है जबकि रेखाचित्र में लेखक पूर्णतः तटस्थ होता है।
4. संस्मरण का विषय कोई विशेष व्यक्ति या विशेष घटना ही होता है जबकि रेखाचित्र के विषय विविध हो सकते हैं।
5. संस्मरण विषयी प्रधान होता है जबकि रेखाचित्र विषय प्रधान होता है।
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रिपोर्ताज― यह गद्य की नई विधा है। रिपोर्ताज मूल रूप से फ्रेंच भाषा का शब्द है। रिपोर्ताज शब्द का अभिप्राय है― रोचक और भावात्मक चित्रण। 'रिपोर्ट' से इसका निकट का संबंध है। रिपोर्ट समाचार पत्र के लिए लिखी जाती है और उसमें साहित्यिक तत्व प्रायः नहीं होते। रिपोर्ट में कलात्मक और साहित्यिक तत्व प्रायः नहीं होते। रिपोर्ट के कलात्मक और साहित्यिक रूप को रिपोर्ताज कहते हैं। युद्ध की विभीषिका का अनुभव करवाने के लिए युद्ध का जो आँखों देखा हाल लिखा जाता था उसे रिपोर्ताज नाम दिया गया। रिपोर्ताज का संबंध वर्तमान से होता है। ये सूचनात्मक होते हैं।
रिपोर्ताज किसी घटना विशेष का मर्मस्पर्शी चित्रण है। सहजता के साथ इसमें घटना का साहित्यिक विवरण प्रस्तुत किया जाता है। इसमें लेखक अपने विषय में इतना अधिक सक्षम होता है कि वह पढ़ने वालों को ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक ने उस घटना को स्वयं अपनी आँखों से निहारा हो।
रिपोर्ताज की प्रमुख विशेषताएँ निम्न लिखित हैं―
1. इसमें किसी घटना का वास्तविक एवं सजीव अंकन होता है।
2. इसमें घटना का विवेचन एवं विश्लेषण किया जाता है।
3. भाषा सरलता, रोचकता एवं प्रभावपूर्ण गुणों से ओत-प्रोत होती है।
हिंदी साहित्य के प्रमुख रिपोर्ताज लेखक एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. डॉ. भगवती शरण उपाध्याय- खून के छींटे
2. श्रीकांत वर्मा- मुक्ति फौज
3. डॉ. रांगेय राघव- तूफानों के बीच
4. धर्मवीर भारती- युद्ध यात्रा
5. कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'- कण बोले क्षण मुस्कुराएँ
यात्रा-साहित्य- यात्रा-वृत्त संस्मरण और रेखाचित्र से मिलती-जुलती विधा है। इसमें लेखक अपनी किसी यात्रा का रोचक वर्णन करता है, जिससे जिस स्थान की यात्रा का रोचक वर्णन करता है, जिससे जिस स्थान की यात्रा की गई है, उसकी ऐतिहासिक, भौगोलिक तथा सांस्कृतिक विशेषताओं से पाठक परिचित होते हैं।
यात्रा साहित्य में व्यक्तियों या समस्याओं के अंकन के स्थान पर प्रदेश-विशेष का आंचलिक इतिवृत्त होता है। यात्रा-साहित्य के लेखक को यात्रा स्थल के प्रति सजग, सहानुभूति, वहाँ के सांस्कृतिक रीति-रिवाजों तथा इतिहास का ज्ञान भी होना चाहिए। कुछ यात्राओं तथा मनोरंजन के साथ-साथ युगीन समस्याओं को भी उठाया गया है। कहीं-कहीं इनमें साहित्यिकता कम भौगोलिकता एवं धर्म प्रधानता अधिक है। यात्रा साहित्य में लेखक को तटस्थ रहना आवश्यक है।
हिंदी साहित्य के प्रमुख यात्रा वृतांत लेखक एवं उनकी रचनाएँ निम्न लिखित हैं-
1. राहुल सांकृत्यायन- घुमक्कड़ शास्त्र
2. रामधारी सिंह दिनकर- देश-विदेश
3. अज्ञेय- अरे यायावर रहेगा याद
4. अमृतराय- सुबह के रंग
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पत्र-साहित्य― कलात्मक पत्र ऐसी साहित्यिक विधा है जिसके द्वारा लेखक की भिन्न-भिन्न साहित्यिक तथा सांसारिक भाव दशाओं, उनकी रुचियों-अरूचियों, उसके सामाजिक और वैयक्तिक संबंधों आदि का आश्चर्यजनक परिज्ञान होता है। संक्षिप्तता और एकतथ्यता के कारण वे स्वयंपूर्ण होते हैं और इनमें कलाकार के निजी रहस्यों का उद्घाटन आत्म चरित से अधिक होता है।
किसी भी व्यक्ति/साहित्यकार द्वारा लिखे गए पत्रों में उसकी सहजता एवं उसके व्यक्तित्व का स्वाभाविक रूप उभरकर सामने आता है। क्योंकि यह एक व्यक्ति/साहित्यकार द्वारा दूसरे व्यक्ति को लिखा गया होता है। उद्देश्य संभवतः छपवाने का नहीं हो पर कभी-कभी ऐसे पत्र साहित्यिक दृष्टि से मूल्यवान तथा समाज के लिए एक धरोहर बन जाते हैं।
पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी के अनुसार, "जीवन में पत्रों का बड़ा महत्व है। शरीर में रक्त-मांस का जो स्थान है, वही स्थान चरित्रों में छोटे-छोटे किस्से-कहानियों तथा पत्रों का है।"
पत्र-साहित्य को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है-
1. व्यक्तिगत पत्रों के स्वतंत्र संतुलन।
2. विधिक विषयक ग्रंथों में परिशिष्ट आदि के अंतर्गत संकलित पत्र।
3. पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित पत्र।
हिंदी साहित्य के प्रमुख पत्र-साहित्य लेखक एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा- यूरोप के पत्र
2. सत्यभक्त स्वामी- अनमोल पत्र
3. जीवन प्रकाश जोशी- बच्चन पत्रों में
4. भदंत आनंद कौसल्यायन- भिक्षु
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7. अंग्रेजी वर्णमाला की सूक्ष्म जानकारी
साक्षात्कार (इंटरव्यू-साहित्य)- साक्षात्कार भी एक आधुनिक गद्य विधा है। इसमें भेंटवार्ता भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसके लिए 'इंटरव्यू' शब्द का प्रयोग होता है। यह विधा मूल रूप से पत्रकारिता की देन है।
किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से पूर्व में ही निर्धारित किसी विशिष्ट विषय पर कुछ प्रश्न किए जाते हैं और प्राप्त उत्तरों को लिपिबद्ध रूप में प्रस्तुत करना ही भेंटवार्ता कहलाता है।
यह प्रश्नोत्तर शैली में लिखी जाती है। नाटकीयता इसका आवश्यक अंग है। जिस व्यक्ति से भेंट की जाती है उससे संबंधित व्यक्तिगत जानकारियों व संबंधित प्रसंगों का उल्लेख कर भेंटवार्ता को रोचक बनाया जा सकता है। हिंदी में वास्तविक और काल्पनिक दोनों प्रकार की भेंटवार्ताएँ लिखी जाती हैं।
हिंदी साहित्य के प्रमुख भेंटवार्ता लेखक एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' और विष्णु दिगंबर 'पुलस्कर'- संगीत की धुन
2. बनारसी दास चतुर्वेदी और रत्नाकर- रत्नाकर से बातचीत
3. बनारसीदास चतुर्वेदी और प्रेमचंद- दो दिन
4. श्रीकांत वर्मा और संकलित- अंधेरे में
5. पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश' और रणवीर रांगा
6. राजेंद्र यादव और लक्ष्मीचंद जैन
गद्य काव्य- गद्य काव्य, गद्य और पद्य के बीच की विधा है। इसमें गद्य के माध्यम से किसी भावपूर्ण विषय की काव्यात्मक अभिव्यक्ति होती है। इसका गद्य सामान्य गद्य से अधिक सरस, भावात्मक एवं अलंकृत होता है। यह संवेदना की अभिव्यक्ति इस प्रकार करता है कि पाठक उसे पढ़कर रसमय हो जाता है। इसमें विचारों की अपेक्षा भावों की प्रधानता होती है। यह निबंध की अपेक्षा संक्षिप्त तथा वैयक्तिक होता है। इसमें केवल एक ही केंद्रीय भाव की प्रधानता होती है। इसकी शैली चमत्कारपूर्ण एवं कवित्वपूर्ण होती है। इसमें विचारों का समावेश भावों के रूप में ही होता है। गद्य काव्य में प्रेम, करुणा आदि भावनाएँ छोटे-छोटे कल्पना चित्रों के माध्यम से व्यक्त की जाती है।
हिंदी साहित्य के प्रमुख गद्य काव्य लेखक एवं उनकी रचनाएँ निम्न लिखित हैं-
1. राय कृष्ण दास- छायापथ, पगला, प्रवाल
2. वियोगी हरि- भावना, प्रार्थना, तरंगिणी
3. डॉ. रघुवीर सिंह- शेष स्मृतियाँ
4. माखनलाल चतुर्वेदी- साहित्य देवता
लघुकथा― आज से कुछ दशक पूर्व तक लघुकथा विधा स्थापित नहीं थी पर अब यह विधा न उपेक्षित है न ही अनजानी। क्योंकि आधुनिक कहानी के संदर्भ में 'लघुकथा' का अपना स्वतंत्र महत्व एवं अस्तित्व है। लघुकथाएँ वस्तुतः दृष्टांत के रूप में विकसित हुई हैं। ऐसे दृष्टांत मुख्यतया नैतिक और धार्मिक क्षेत्रों से प्राप्त हैं। इस प्रकार नैतिक दृष्टांतों के स्तर से नैतिक लघु कथाएँ सर्वत्र मिलती हैं।
लघु कथा अपने आप में एक स्वतंत्र सशक्त विधा है। सतसैया के दोहे इसकी शक्ति के पीछे सामाजिक परिवर्तन की पूरी प्रक्रिया है। इसलिए लघुकथा में व्यंग्य का पुट पाया जाता है, क्योंकि रचना की दृष्टि से लघुकथा में भावनाओं का उतना महत्व नहीं है, जितना किसी सत्य का, किसी विचार का, विशेषकर उसके सारांश का महत्व है। 'हरिशंकर परसाई' हिंदी साहित्य के प्रमुख लघुकथाकार हैं।
हिंदी साहित्य के प्रमुख लघुकथाकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. श्री शिवपूजन सहाय- एक अद्भुत कवि (1924)
2. कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'- सुदर्शन, रावी
3. प्रेमचंद्र
4. अज्ञेय
5. जैनेन्द्र
6. जयशंकर प्रसाद
डायरी- डायरी पत्र से भी अधिक निजी रहस्यों का उद्घाटन करती है। डायरी में लेखक अपनी शक्ति और दुर्बलता, क्रिया-प्रतिक्रिया, संपर्क-संबंध, शत्रुता-मित्रता आदि का लेखा-जोखा यथा विश्लेषण भी करता है। यह लेखक की निजी वस्तु होती है। इसमें लेखक तिथि विशेष में घटित घटनाक्रम को यथा तथ्य अपनी संक्षिप्त प्रतिक्रिया या टिप्पणी के साथ प्रस्तुत करता है। इसका आकार कुछ पंक्तियों तक सीमित हो सकता है और कई पृष्ठों तक विस्तृत भी हो सकता है। यह स्वतंत्र रूप में भी लिखी जा सकती है और कहानी, उपन्यास अथवा यात्रा वृत्त के अंग रूप में भी।
हिंदी साहित्य के प्रमुख डायरी लेखक एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा- मेरी कॉलेज डायरी
2. रामधारी सिंह दिनकर
3. शमशेर बहादुर सिंह
4. इलाचंद्र जोशी
5. सुंदरलाल त्रिपाठी
6. मोहन राकेश
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