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व्यक्तित्व और उसका मापन | व्यक्तित्व की परिभाषाएं इसके अंग, निर्धारक तत्व, अंतर्मुखी एवं बहिर्मुखी व्यक्तित्व, संतुलित व्यक्तित्व | Personality and its measurement introvert and extrovert personality

व्यक्तित्व— व्यकित्व शब्द का अर्थ ऐसे संगठन से है जिसमें बहुत से मानवीय गुण अंतरनिहित और संगठित होते हैं। व्यक्तित्व शब्द अंग्रेजी भाषा के personality (पर्सनालिटी) शब्द से लिया गया है। यह शब्द यूनानी भाषा के person से उत्पन्न हुआ है। जिसका अर्थ है "मुखौटा"

व्यक्तित्व की परिभाषाएं

(1) वैलेंटाइन के अनुसार— "व्यक्तित्व दुसरे के समझने का दृष्टिकोण है।"
(2) वारेन के अनुसार—"व्यक्तित्व व्यक्ति का संपूर्ण मानसिक संगठन है जो उसके विकास की किसी अवस्था में होता है।"
(3) विगहन्ट के अनुसार— "व्यक्तित्व एक व्यक्ति के संपूर्ण व्यवहार, प्रतिमान और विशेषताओं के योग को अभिव्यक्त करता है।"
(4) मन के अनुसार— "व्यक्तित्व एक व्यक्ति के गठन व्यवहार के ढंग, रुचियों, दृष्टिकोणो, सम्मानों, क्षमताओं का विशिष्ट संगठन है।"
(5) रेक्स रॉक के अनुसार—"व्यक्तित्व समाज द्वारा मान्य तथा अमान्य गुणों का संतुलन है।"
(6) आलपोर्ट के अनुसार—"व्यक्तित्व व्यक्ति में उन मनोशारीरिक अवस्थाओं का गतिशील संगठन है, जो उसके वातावरण के साथ उसका अद्भुत व्यवस्थापन निर्धारित करता है।"
(7) वारेन के अनुसार— "व्यक्तित्व व्यक्ति का संपूर्ण व्यवहार, मानसिक संगठन है जो उसके विकास की किसी अवस्था में होता है।"

व्यक्तित्व के अंग

(1) क्रियात्मक पहलू— इसका व्यक्ति के विभिन्न क्रिया कलापों से है इसके द्वारा व्यक्ति अपनी शांतिप्रियता और मानसिक श्रेष्ठता का प्रदर्शन करता है।
(2) सामाजिक पहलू— इस पहलु का सम्बध व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्तियों पर डाले गए प्रभाव से होता है।
(3) कारण संबंधी पहलू— इसका संबंध व्यक्ति के सामाजिक या सामाजिक कार्यों के कारणो तथा उनसे संबंधित सामाजिक प्रतिक्रियाओं से होता है।

व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारक

(i) वंशानुक्रम
(ⅱ) शारीरिक रचना
(iii) भौतिक वातावरण का प्रभाव
(iv) जैविक कारणो का प्रभाव—बालिका विहीन ग्रंथियां, शारिरिक रसायन और अन्तःस्थावी ग्रंथियो आदि ऐसे जैविक कारक हैं जिनसे व्यक्तित्व के विकास की सीमा का निर्धारण होता है।
(v) सामाजिक वातावराण का प्रभाव
(vi) सांस्कृतिक वातावरण का प्रभाव—लारेंस के अनुसार "संस्कृति वह आधारभूमि है जिसमें व्यक्तित्व विकसित होता है।"
(vii) परिवार का प्रभाव
(viii) संवेग

व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कारक

(ⅰ) विद्यालय का वातावरण
(ii) शिक्षक के व्यक्तित्व का प्रभाव
(iii) नैतिक शिक्षा का प्रभाव
(iv) शारीरिक तत्व
(v) मानसिक तत्व
(vi) संवेगिक तत्व
(vii) लिंग
(viii) वंशानुक्रम
(ix) वातावरण
(x) सामाजिक वातावरण
(xi) सास्कृतिक वातावरण

व्यक्तित्व के प्रकार

(1) शरीर रचना के आधार पर— (i) लम्बकाय (ⅱ) सुडौल काय (iii) गोलकाय (iv) मिश्रित व्यक्तित्व
(2) समाजशास्त्र के आधार पर— (ⅰ) सैद्धांतिक (ii) आर्थिक (iii) धार्मिक (iv) राजनैतिक (v) सामाजिक (vi) कलात्मक
(3) मनोवैज्ञानिक आधार पर— (i) अंतर्मुखी (ii) बहिर्मुखी (iii) उभय मुखी

अंतर्मुखी व्यक्तित्व की विशेषताएं

कम बोलना, लज्जाशील, एकान्तप्रिय, शीघ्र घबरा जाना, संकोची, चिन्तनशील, सीमित विचार रखना, संदेही, चिन्ताग्रस्त, सावधान, सोचविचार कर करना, कर्तव्यनिष्ठ, लेखक परन्तु वक्ता नहीं, अध्ययनशील, वैज्ञानिक, दार्शनिक, अन्वेशक एवं हँसो मजाक या बेकार की बातों में आनंद नहीं लेना ने गुण होते हैं।

बहिर्मुखी व्यक्तित्व की विशेषताएँ

वातावरण एवं समाज में सामजस्यशीलता, आशावादी, व्यवहारिक जीवन में कुशल, अवसरवादी, प्रकृति तथा समाज में लोकप्रिय, नेता, खिलाड़ी होने के गुण, दुसरों पर प्रभाव डालना, चिन्तामुक्त व प्रसन्न, स्वाभिमानी, प्रमुख दोष अनियंत्रित होना, आत्मप्रदर्शनवादी ये गुण होते हैं।

उभय मुखी— उभयमुखी उपर्युक्त गुणों का मिला जुला गुण होता है।

अन्तर्मुखी बालकों का शिक्षण—

(ⅰ) बोलने का पूर्ण अवसर देना।
(ii) संगोष्ठी एवं विचार विमर्श के अवसर देना
(iii) विचार प्रकट करने की स्वतं‌त्रता
(iv) निबंध, कविता लेखन का आयोजन
(ⅴ) मनोरंजन की ओर रुझान करना।

भारतीय आयुर्वेद शास्त्र के आधार पर व्यक्तित्व के तीन प्रकार है—(i) कफ प्रधान (ii) वात प्रधान (iii) पित्त प्रधान

मनोवैज्ञानिक कैनन के अनुसार व्यक्तित्व के प्रकार

(1) थायराइड ग्रंथि वाला— जिन व्यक्तियों में इस ग्रंथि का विकास नहीं होता वे दुर्बल व बौने कद के होते हैं। वे लोग चिन्तित, सुस्त, उदास एवं आलसी प्रवृत्ति के होते हैं।

(2) पिट्यूटरी ग्रन्थि वाला— इस ग्रन्थि से अधिक स्त्राव होने से शरीर लम्बा होता है तथा कम स्त्राव होने से शरीर का विकास रूक जाता है। इस ग्रन्धि के ठीक कार्य करने से व्यक्ति प्रसन्नचित, धैर्यवान, शांत स्वभाव तथा शारीरिक मानसिक कष्ट सहन करने वाला होता है।

(3) एड्रिनल ग्रंधि— इस ग्रन्थि का अधिक विकास होने पर व्यक्ति लड़ाकु, झग‌डा़लु किंतु परिश्रमी होता है।
अतः बालाक के समुचित विकास में इन ग्रन्थियों का विशेष महत्व होता है।

व्यक्तित्व के निर्धारक तत्व

(1) वंशानुक्रम— वंशानुक्रम का व्यक्तित्व के विकास पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता वास्तव में वंशानुक्रम व्यक्तित्व को प्रभावित नहीं करता वरन वंशानुक्रम के जैविकीय कारक व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं। यह जैविकीय तत्व तीन है (i) नलिका विहीन ग्रंथियां (ii) शारीरिक रचना या बनावट (iii)स्नानुविक रचना।

(1) नलिका विहीन ग्रंथियां (Ductless glands)— मुख्य नलिका विभिन्न ग्रंथियां निम्न है।
(i)Thyroid Glands (गल ग्रंथियां) (ii) (adremal Gland (अधिवृक्क ग्रंथियां) (iii)Pituitary Gland (पीयूष ग्रंथि) (iv) gonda or Sex Glands(जनन ग्रंथियां) (v) Pancreas (सर्व लिंगी ग्रंथि)
(2)Physical Structure (शरीरिक बनावट)
(3)Nervous Structure (स्नानुविक संरचना)— जिस व्यक्ति का स्नायु संस्थान जितना अधिक विकसित होता है, उसका व्यक्तित्व भी उतना ही विकसित होता है। व्यक्ति की समस्त क्रियाए संस्थान से संबधित होती है।

(2) वातावरण (Environment)—(i) भौतिक वातावरण (ii) सामाजिक वातावरण—परिवार, समुदाय,विद्यालय (iii) सांस्कृतिक वातावरण

व्यक्तित्व की विशेषताए(Characteristics of Personality)

(1) एकता— व्यक्तित्व शारीरिक, मानसिक सामाजिक, संवेगात्मक क्रियाओं का एक रूप या गत्यात्मक संगठन है। व्यक्तित्व में समस्त पक्ष निहित होते हैं।
(2) सामाजिकता
(3) आत्मचेतना— व्यक्ति आत्मचेतना के कारण ही दुसरो की प्रशंसा तथा अपनी प्रशंसा, सफलता या विफलता से प्रभावित होता है। गुण दोषो का विश्लेषण आत्म चेतना के कारण व्यक्ति कर सकता है।
(4) वातावरण के साथ समायोजन
(5) अपने ध्येय या लक्ष्य की ओर अग्रसर

संतुलित व्यक्तित्व— शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं दृढ़ विचार संवेगिक रूप से स्थिर चित्त अनुतेजित भावुक और भावुकता में स्थायित्व सामाजिक रूप से लोकप्रिय आदि गुणों का समावेश एक आदर्श व्यक्तित्व की परिकल्पना है।" जिसे हम संतुलित व्यक्तित्व कह सकते हैं।

संतुलित व्यक्तित्व की विशेषताएँ

(i) आत्म चेतना
(ii) सामाजिकता
(iii) सामजस्यशीलता
(iv) निर्देशित लक्ष्य की प्राप्ति
(v) दृढ इच्छा शक्ति
(vi) शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ
(vii) व्यक्तित्व के तत्व (शारीरिक, मानसिक, नैतिक, सामाजिक एवं संवेगात्मक) का एकीकरण
(viii) विकास की निरन्तरता
(ix) सुन्दर स्वास्थय
(x) संवेगो का स्थायित्व
(xi) विषम परिस्थितियों में धैर्य
(xii) शालीनता तथा अनुशासन प्रियता
(xiii) परिवर्तन शील वातावरण में अनुकुलित होने की क्षमता
(xiv) सहयोग की भावना
(xv) तर्कशक्ति, विचार शक्ति तथा सामान्य बुद्धि का होना।
(xvi) उदारता।

व्यक्तित्व मापन की विधियाँ

(1) व्यक्तिगत विधि (Subjective Method
(2) वस्तुनिष्ट विधि (Objective Method)
(3) प्रक्षेपीय विधि ( projective Method)

(1) व्यक्तिगत विधि— इस विधि में व्यक्ति से ही या उससे सम्बंधित व्यक्ति से ही सूचनाएँ प्राप्त कर व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्धारण करते है। इसकी प्रविद्धियाँ हैं—
(1) जीवन कथा या स्वयं का इतिहास की विधि
(2) व्यक्तिगत इतिहास विधि
(3) साक्षात्कार विधि
(4) अभिज्ञापान प्रश्नावली विधि

(1) जीवन कथा या स्वयं का इतिहास विधि— इस विधि में मनोवैज्ञानिकों द्वारा किसी व्यक्ति के जीवन के भागों को कुछ हिस्सों में बताकर उसे अपना स्वयं का इतिहास लिखने को कहा जाता है यह विधि व्यक्तित्व मापन हेतु खरी नहीं उतरती क्योंकि व्यक्ति अपनी अचेतन मन में छिपी कुछ बातों को भूल जाता है।

(2) व्यक्तिगत इतिहास विधि— किसी व्यक्ति की मानसिक संरचना को समझने के लिए हम उसके परिवार के इतिहास, रीति रिवाज, संस्कार, धरना एवं वंशानुगत तत्वों के आधार पर समझकर व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं।

(3) साक्षात्कार विधि— साक्षात्कार विधि में मनोवैज्ञानिक या प्रशिक्षित अध्यापक किसी व्यक्ति से सम्बंधित सूचनाओं को पहले लिख देता है। व्यक्ति में वह आत्मविश्वास भरता है एवं व्यक्ति की समस्त समस्याओं को समझ कर सहयोग प्रकट करता है एवं इस प्रकार से उससे सूचनाएं पाकर व्यक्तित्व का निर्धारण किया जाता है।

(4) अभिज्ञापन प्रश्नावली विधि— इस विधि में सम्बंधित व्यक्ति जिसके व्यक्तित्व का मापन करना होता है उस‌से संबंधित प्रश्नावली तैयार करवाते हैं एवं व्यक्ति को हां या ना में उत्तर देने को कहा जाता है।

टीप:— वुडवर्थ की साइकोन्यूरेटिक इन्वेंटरी में व्यक्ति के जीवन से संबंधित 115 प्रश्न तथा अनुभव हैं।
जैसे—क्या आप चिन्ता करते हैं?(अक्सर, कभी कभी, कदाचित) क्या आप रात को अक्सर जागते है ? (हा/नहीं)

व्यक्तिगत विधि के दोष

(i) इस विधि में व्यक्ति तथ्यों को छिपा सकता है।
(ⅱ) व्यक्ति के विचार हर पल बदलते रहते हैं।
(ⅲ) प्रत्येक व्यक्ति उन उत्तरों को अक्सर ही देता है। जो सामाजिक रूप से मान्य होते हैं अतः व्यक्ति असत्य उत्तर भी दे सकता है।
(iv) इस विधि में चेतन मन के बारे में कोई सूचना नहीं मिल पाती।

वस्तुनिष्ठ विधि— वस्तुनिष्ठ विधि किसी व्यक्ति या बालक के बाहय व्यवहार पर आधारित होती है यह विधि वैज्ञानिक होती है यह विधि 4 रूपों में प्रयोग में लाई जाती है।

(1) नियंत्रण परीक्षण— यह विधि मनोवैज्ञानिक द्वारा प्रयोग शाला में व्यक्तित्व के बहारों व्यवहारों का अध्यापन करके किया जाता है। इस विधि को विश्वस्वीय नही माना जा सकता इसमें दोष पाये गये हैं।

(2) निर्धारण मापनी (Rating Scale)— इस विधि में व्यक्तित्व के गुणों या विशेषताओं का पता लगाया जाता है। मापनी में हां या ना में उत्तर देने होते हैं। जैसे क्या आप पढ़‌ना पसंद करते है ? (हां/ना)

गुण— वयक्ति के गुणों का भलीभांति मापन किया जा सकता है। निष्पक्ष व ईष्यारहित निर्धारक प्राप्त होता है।
दोष— परीक्षणकर्ता अपने ही व्यक्तित्व के आधार पर दुसरे का व्यक्तित्व देखता है। परीक्षण कर्ता में पक्षपात व ईष्याअतिम निर्णय पर प्रभाव डालती है।

(3) शारीरिक परिवर्तन का व्यक्तित्व के संकेत के रूप में मापन— व्याक्तित्व के कुछ गुण शारीरिक परिवर्तन के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं—श्वसन परिवर्तन, व्यक्तित्व परिवर्तन रक्तचाप आदि संवेग को व्यक्त करते हैं। इन परिवर्तनो के आधार पर संवेग से संबंधित सही तथ्य प्राप्त हो जाते हैं।

(4) मैखिक व्यवहार द्वारा व्यक्तित्व मापन— बहुत सी व्यक्तित्व परीक्षाएं मौखिक व्यवहारों पर आधारित है इसमें मुख्य परीक्षा (व्यक्तित्व परीक्षाओं) जैसे-साहचर्य विधि ज्ञान परीक्षाएं आदि है। सहचार्य परीक्षा में उत्तेजक शब्द दिए जाते हैं और व्यक्ति प्रति उत्तर देता है अन्य साहचार्य परीक्षाओं का प्रयोग मनोविश्लेषक किसी अन्य भावना का पता लगाने के लिए करते हैं सहचार्य परीक्षाओं में व्यक्ति की सवेगात्मक प्रवृत्तियां का पता लगाया जा सकता है जैसे-व्यक्ति की रुचि मानसिक कुसमायोजन तथा अपराध प्रवृति आदि।

प्रक्षेपीय प्राविधि— प्रक्षेपीय प्राविधि में अचेतन मन द्वारा उत्पन्न गुण संवेग, विश्वास, रूचि तया इच्छाए आदि का अध्ययन किया जा सकता है।
इस विधि में व्यक्ति अपनी दबी हुई इच्छाओं को जो किसी परिस्थिति का सामना करने में असफसता के कारन अचेतन मन में संकलित हो जाती हैं, किसी नई वस्तु की ओर परिवर्तित करके प्रकट करता है।

प्रक्षेपण विधि का प्रयोग कैसे करे?—
इस विधि के अन्तर्गत हम उन व्यक्ति को स्याही (Ink) के धब्बों को देखकर उसका अर्थ या कहानी लिखने को कहा जाता है। इस प्रकार उसके आन्तरिक आत्मा का प्रतिचित्रण विचारों के रूप में बाहर आ जाता है। व्यक्ति स्वतंत्र रूप से न विचारों को व्यक्त करता है।

विशेषताएँ— (ⅰ) मनोवैज्ञानिकता पर जोर देते हैं।
(ⅱ) अनजान या अपरिचित वस्तु के बारे में विचार प्रकट करने को कहा जाता है।
(iii) इस विधि में व्यक्ति के अचेतन मन में छिपी उत्तेजनाओं का मापन कर व्यक्तित्व का मापन करते हैं।

प्रक्षेपीय विधि के प्रकार

(i) रोर्शाक परीक्षा— यह परीक्षण हरमैन रोर्शाक द्वारा प्रतिपादित पद्धति है। यह किसी पन्ने पर स्याही के धब्बे गिराकर उनसे बनी आकृति के बारे में व्यक्ति से प्रश्न करके उसके उत्तरों के अनुसार उसे व्यक्तित्व मापन करते हैं। (ii) थेमेटिक एपर सेक्शन परीक्षा (iⅱ) शब्द साहचर्य परीक्षा (iv) प्ले- टेक्निक परीक्षा (ⅴ) अभिनय प्रदर्शन परीक्षा (vi) चित्र साहचर्य परीक्षा।

व्यक्तित्व मापन की प्रामाणिक परीक्षाएं

(ⅰ) प्रेसी की क्रॉस आउट परीक्षा— यह परीक्षा व्यक्ति की संवेगात्मक विशेषताओं के मापन के लिए है।
(ⅱ) आलपोर्ट परीक्षा— यह आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एव कलपनात्मक क्षेत्रों हेतु उपयुक्त है।
(iii)मिनेसोटा मल्टी फेजक पर्सनेलिटरी इन्वेन्टरी परीक्षा— इस परीक्षा में कार्डों पर 500 प्रश्न लिये होते हैं। परीक्षार्थी उनको पढकर, सोचकर उत्तर देता है।
(iv) बुडवर्थ की साइको-न्यूरोटिक इन्वेंटरी परीक्ष‌ा— इस परीक्षा में 100 प्रश्न होते हैं जिनका उत्तर हां ना में देना होता है।
(v) रोयर्ड व मेरिस्टोन की परीक्षा— यह व्यक्तित्व के अन्तर्मुखी व बहिर्मुखी गुणों का मापन करती है।

वैयक्तिक भिन्नताएँ

टायलर के भनुसार— " शरीर के आकार और स्वरूप, शारीरिक कार्यों गति सम्बंधी क्षमताओं, बुद्धि उपलब्धि, ज्ञान, रुचियों अभिवृतियों और व्यक्तित्व के लक्षणों में माप की जा सकने वाली भिन्नताओं की उपस्थिति सिद्ध की जा चुकी है।"

(ii) स्किनर के अनुसार— "आज हमारा यह विचार है कि व्यक्तिगत ‌भिन्नता में सम्पूर्ण व्यक्तित्व का कोई भी ऐसा पहलू सम्मिलित हो सकता है जिनका माप किया जा सकता है।"

व्यक्तिक भिन्नताओं के प्रकार

(i) शारीरिक विकास में भिन्नता।
(ii) लिंग विभिन्नता के कारण व्यक्तिक भिन्नता।
(iii) प्रवृत्ति यां झुकाव में भिन्नता।
(iv) संवेगात्मक भिन्नता।
(v) रुचियो में भिन्नता।
(vi) विचारों एवं मतों में भिन्नता।
(vii) अधिगम या सीखने में भिन्नता।
(viii) गत्यात्मक योग्यताओं में भिन्नता।
(ix) चरित्र में विभिन्नता।
(x) विशिष्ट योग्यता में विभिन्नता।
(xi) ज्ञानोत्तपार्जन में विभिन्नता।
(xii) सामाजिक विभिन्नता।
(xiii)जाति या राष्ट्रीयता में विभिन्नता।

वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर शिक्षण

डाल्टन प्रणाली— इस प्रणाली के अन्तर्गत विधालय में घर का वातावरण तैयार किया जाता है तथा कक्षाएं प्रयोगशाला का रूप ले लेती हैं। बलकों के इस विधि के अन्तर्गत स्वयं सीखने का तथा उनकी योग्यतानुसार सीखने का सुअवसर मिलता है। इस पद्धति में बालकों को कुछ कार्य (Assignment) दिये जाते हैं जो उन्हें निश्चित अवधि में पूर्ण करने होते हैं।

(2) प्रोजेक्ट प्रणाली— यह प्रणाली प्रतिभाशाली छात्रों के लिए स्वयं करके सीखने की विधि पर आधारित है। कई बालक (एक बुद्धिलब्धि वर्ग के) मिलकर एक प्रोजेक्ट पर कार्य करते हैं। तथा स्वयं करके सिद्धांत का प्रयोग कर नये निष्कर्ष निकाल‌ते हैं। हम इन प्रोजेक्ट्स को 4 रूपों में विभक्त करते हैं आवश्यकताअनुरूप इन पर कार्य कराते हैं। ये इस प्रकार है।
(ⅰ) समस्या प्रोजेक्ट या प्रयोजना (ⅱ) उत्पादक प्रोजेक्ट (iⅱ) अभ्यास प्रोजेक्ट (iv) उपभोक्ता प्रोजेक्ट

व्यक्तिक भिन्नताओं के कारण

(ⅰ) वंशानुक्रम
(ⅱ) वातावरण
(iii) जाति प्रजाति व देश
(iv) आयु व बुद्धि
(v) शिक्षा व आर्थिक दशा
(vi) लिंग भेद

व्यक्तिक भिन्नताओं का शिक्षा में लाभ उठाना

(ⅰ) छात्र वर्गीकरण की नवीन विधि।
(iⅱ) वैयक्तिक शिक्षण की व्यवस्था।
(iv) कक्षा का सीमित आकार।
(v) शिक्षण पद्धतियों में परिवर्तन।
(ⅴi) गृहकार्य की नवीन धारणा।
(vii) बालकों में विशेष रुचियों का विकास।
(viii) शारीरिक दोषों के प्रति ध्यान।
(ix) लिंग भेद के अनुसार शिक्षा ।
(x) आर्थिक व सामाजिक दशाओं के अनुसार शिक्षा।
(xi) पाठ्‌यक्रम का विभिन्नीकरण।

बालकों में वैयक्तिक विभिननाताओं का शिक्षा में अति महत्वपूर्ण स्थान है। इसलिए 'स्किनर' के यह मत व्यक्त किया है—" यदि अध्यापक उस शिक्षा में सुधार करना चाहता है, जिसे सब बालक अपनी योग्यता का ध्यान किये बिना प्राप्त करते हैं उसके लिए वैयक्तिक भेदों के स्वरूप का ज्ञान अनिवार्य है।"

वैकल्पिक प्रश्नोत्तरी

(1) "व्यक्तित्व दुसरे के समझने का दृष्टिकोण है" यह मत है—
(i) वैलेनटाइन का
(ⅱ) वारेन का
(iⅱ) विगहन्ट का
(iv) किसी का नहीं।

(2) निम्न में से व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाला कारक नहीं है।
(ⅰ) विद्यालय का वातावरण
(ii) बालक का वंशानुकम
(iii) बालक के संवेग।
(iv) उपरोक्त में कोई नहीं।

(3) मनोवैज्ञानिक आधार पर व्यक्ति का प्रकार है।
(i) लम्बकाय
(ii) धार्मिक
(ⅲ) अन्तर्मुखी
(iv) कोई नहीं।

(4) अंतर्मुखी बालकों के शिक्षण में—
(i) बोलने का अवसर प्रदान करना चाहिए।
(ⅱ) उन्हें शांत बैठे रहने देना चाहिए।
(ⅱi) केवल लेखन कार्य कराकर अभिव्यक्ति के अवसर देना चाहिए।
(iv) उपरोक्त में से कोई नहीं।

(5) व्यक्तिगत भेद का अर्थ है। (i) बालक की प्रकृति
(ⅱ) मानव का स्वभाव
(iii) मानव परिवेश
(iv) उपरोक्त में कोई नहीं।

(6) भारतीय आयुर्वेद के आधार पर व्यक्तित्व भेद का प्रकार नहीं है।—
(i) कफ प्रधान
(ii) वातप्रधान
(ⅱi) पित्त प्रधान
(iv) कोई नही।

(7) संतुलित व्यक्तित्व की विशेषता है—
(ⅰ) आम चेतना का होना
(ii) सामंजस्यशीलता का होना।
(iii) संवेगों का स्थायित्व
(iv) उपरोक्त सभी।

(8) व्यक्तित्व मापन की व्यक्तिगत विधि का प्रकार है।
(i) जीवन कथा या स्वयं का इतिहास विधि
(ii) नियंत्रण परीक्षण
(iii) निर्धारण मापनी
(iv) उपरोक्त सभी।

(9) व्यक्तित्व मापन की साक्षात्कार क्षात्कार विधि में—
(i) लिखित रूप से प्रश्नों के उत्तर प्राप्त किये जाते हैं।
(ⅱ) मौखिक प्रश्न पुछे जाते हैं।
(iii) उत्तर हेतु विकल्प दिये जाते हैं।
(iv) सभी।

(10) व्यक्तिगत मापन की प्रक्षेपीय विधि आधारित है—
(i) मनोविज्ञान पर
(ⅱ) वास्तविक घटनाओं पर
(ⅱi) काल्पनिकता पर
(iv) उपरोक्त सभी पर।

(11) व्यक्तित्व मापन की प्रक्षेपीय विधि में—
(i) किसी दाग धब्बों आदि के बारे में व्यक्ति के विचार व्यक्त करने को कहा जाता है।
(ii) व्यक्ति का किसी चित्र के बारे में उसकी विशेषताएँ बताने को कहा जाता है।
(iii) व्यक्ति को किसी व्यक्ति या वस्तु का चित्र बनाने को कहा जाता है।
(iv) उपरोक्त कधनों में सभी असत्य हैं।

(12) एक शिक्षक व्यक्तित्व की भिन्नताओं का लाभ उठा सकता है।
(ⅰ) बच्चों को लिंग के अनुसार शिक्षा प्रदान करना।
(ⅱ) बच्चों का वर्गीकरण कर शिक्षा प्रदान करना।
(iii) शिक्षण पद्धतियों के सुधार करने में।
(iv) उपरोक्त सभी।

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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इस लेख में शिक्षक चयन परीक्षाओं की तैयारी हेतु बालविकास एवं शिक्षाशास्त्र के अंतर्गत बहुआयामी बुद्धि क्या होती है इसके बारे में विस्तार के साथ जानकारी दी गई है।

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सौन्दर्य विकास (aesthetic development) क्या है? | सौन्दर्य विकास के सिद्धांत, लक्ष्य, विषय क्षेत्र, पाठ्यचर्या एवं गतिविधियाँ | सौन्दर्य विकास को प्रभावित करने वाले कारक

इस लेख में सौन्दर्य विकास (aesthetic development) क्या है? सौन्दर्य विकास के सिद्धांत, लक्ष्य, विषय क्षेत्र, पाठ्यचर्या एवं गतिविधियाँ और सौन्दर्य विकास को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में जानकारी दी गई है।

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