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गणित की मानसिक, व्यवहारिक, साँस्कृतिक एवं व्यावसायिक उपयोगिता | गणित का सौन्दर्य तथा सत्य | गणित अध्यापन के उद्देश्य

गणित की मानसिक (अनुशासनात्मक) उपयोगिता— गणित के अध्ययन से छात्रों में सोचने, समझने, तर्क करने, निर्णय लेने, क्रमबद्ध तरीके से कार्य करने, गणितीय तथ्यों की सत्यता परखने जैसे गुणों का विकास होता है। गणितीय समस्याओं को हल करने में सतत् परिश्रम तथा लगन से कार्य करने की आदत विकसित होती है। जो मानसिक एवं अनुशासनात्मक उपयोगिता को सिद्ध करती है।

गणित की व्यवहारिक उपयोगिता— आज जीवन के हर क्षेत्र में हर नई-नई खोज, तकनीकि ज्ञान तथा बदला हुआ औदयोगिक क्षेत्र गणितीय ज्ञान के बिना पंगु है। गणित का सेवक के रूप में जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने तथा जीवन के सही ढंग निर्धारित करने में विशेष भूमिका निभा रहा है। गणित के अन्य विषयों से सम्बंध ही उन विषयों की व्यवहारिक उपयोगिता निरूपित करती है। गणित के बिना भौतिकी, रसायनशास्त्र, जीवविज्ञान, वनस्पति- शास्त्र, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, भूगोल, फाइन आर्ट, मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र, इंजीनियरिंग आदि का अध्ययन कर पाना सम्भव नहीं है।

गणित के बारे में जैन गणितज्ञ श्री महावीराचार्य जी ने अपनी पुस्तक गणित "सार संग्रह" में लिखा है कि "लौकिक, वैदिक तथा सामाजिक जो व्यापार है उन सबमें गणित का उपयोग है।"

गणित की साँस्कृतिक उपयोगिता— समाज की अपनी संस्कृति और सभ्यता के निर्माण एवं विकास में गणित ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है इसके अध्ययन मात्र से व्यक्ति को समानता, समरूपता, क्रमबधता, ईमानदारी, निष्पक्षता आदि सामाजिक मूल्यों का बोध होता है। उन्हें अपने व्यवहार में निहित करता है।

गणित की व्यावसायिक उपयोगिता— समाज की व्यवसायिक प्रगति का आधार ही गणित है। गणित के बिना कोई भी व्यक्ति समाज, राष्ट्र व्यावसायिक क्षेत्र में उन्नति नहीं कर सकता। अर्थमिति (इकोनामैटिक्स) गणित है अथवा अर्थशास्त्र, यह कौन कह सकता है। क्योंकि अर्थमिति सिद्धांतों का आधार ही गणित है।

गणित का सौन्दर्य तथा सत्य— 1+1 = 2 सदैव सत्य था, वर्तमान में सत्य है एवं भविष्य में सदैव सत्य रहेगा युद्ध गणित सदैव विचारों से संबंधित होता है। प्रोफेसर हार्डी के अनुसार गणित विचार जगत का क्षेत्र है इसलिए सुन्दर है। गणितीय सौन्दर्य के उदाहरण कई जगह मिलते हैं जैसे– त्रिभुज के तीनों कोणों का योग दो समकोण होता है। एकाएक विश्वास नहीं होता। इसे सिद्ध करने पर हो गणितीय सौन्दर्य एवं सत्यता की अनुभूति होती है।

गणित अध्यापन के उद्देश्य

किसी विषय के अध्यापन के सामान्य एवं विशिष्ट उद्‌देश्यों का निर्धारण शिक्षा के व्यापक उदेश्यों, विषय की प्रकृति, समाज का द‌र्शन एवं राष्ट्रीय आवश्यकताओं तथा समस्याओं को ध्यान में रखकर किया जाता है।

उद्‌देश्य निर्धारण के आधार— (1) राष्ट्रीय एवं सामाजिक उद्देश्य।
(2) विषय-सामग्री की विशेषताएँ।
(3) उद्‌देश्यों की व्यावहारिकता एवं वस्तुनिष्ठता।
(4) शिक्षार्थी की योग्यता एवं उनकी आयु।
(5) शिक्षार्थी का मनोविज्ञान,रूचियाँ एवं आवश्यकताएँ।
(6) उद्देश्यों को कक्षा की परिस्थितियों में प्राप्त करने की संभावनाएँ।
(7) उद्देश्यों का व्यवहारगत परिवर्तनों में स्पष्ट संबंध।
(8) उद्देश्यों को प्राप्त करने की विधियों का ज्ञान।

उपरोक्त आधारों को दृष्टिगत रखते हुए गणित अध्यापन के निम्नांकित उद्देश्यों को निरूपित किया जा सकता है।

(1) विद्यार्थी को दैनिक जीवन, घर तथा व्यापार मे समस्याओं के समाधान के लिए गणितीय क्षमता प्राप्त करने में सहायता देना।
(2) अन्य विषयों को समझने के लिए गणितीय आधार प्रदान करना।
(3) गणितीय अवधारणाओं का दैनिक जीवन में अनुप्रयोग।
(4) गणितीय सिद्धांतों को प्रयोग में लाकर समस्याओं के सही हल प्राप्त करने की क्षमता।
(5) मानसिक एवं अनुशासनात्मक गुणों तथा मूल्यों का विकास करने की क्षमता।
(6) एकाग्रता की शक्ति का विकास।
(7) आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता का विकास।
(7) कमबद्ध‌ता से कार्य करने की आदत का विकास करना।
(8) नवीन अनुसंधान के लिए गणितीय क्षमताओं का विकास।
(10) समानता, समरूपता तथा नियमितता आदि महत्वपूर्ण सामाजिक मूल्यों का विकास।
(11) सांस्कृतिक मूल्यों का विकास।
(12) सृजनात्मकता का विकास।
(13) तर्क शक्ति एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास।
(14) नैतिक मूल्यों का विकास।
(15) तकनीकि युग की जटिलताओं को समझने के लिए गणितीय अवधारणाओं एवं क्षमताओं का विकार।

उपरोक्त उदेश्यों की पूर्ती के लिए गणित का अध्ययन किया जाता है। क्योंकि इस वैज्ञानिक एवं तकनीकि युग में मनुष्य के जीवन का प्रत्येक क्षण गाणित के किसी न किसी पक्ष से संबंधित होता है। गणित के बिना जीवन की गुणवत्ता एवं प्रगति की कल्पना करना सम्भव नहीं है।

वैकल्पिक प्रश्नोत्तरी

टीप― उत्तर शीट नीचे देखें।
(1) गणित को सम्राट एवं सेवक के रूप में जाना जाता है क्योंकि—
(i) यह कठिन है इसलिए सम्राट है फिर भी हमारी सेवा करती इसलिए सेवक है।
(ii) गणित के बगैर (अनुमति बिना) कुछ कर सम्भव नहीं इसलिए सम्राट एवं जीवन में पग-पग पर हमारी सहायता करती है इसलिए सेवक है।
(iii) गणित के बगैर किसी भी विषय का ज्ञान अर्जन सम्भव नहीं है इसलिए यह सम्राट है एवं इसकी सहायता से सारे विषयों का ज्ञान संभव है इसलिए सेवक है।
(iv) सेवक व सम्राट विरोधाभाषी शब्द है अतः यह गुण गणित में नहीं है।

(2) गणितीय ज्ञान की आवश्यकता पड़‌ती है।
(ⅰ) विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी में।
(ⅱ) भूगोल एवं खगोलीय ज्ञान में।
(iii) विभिन्न प्रकार के आविष्कारों मे
(iv) उपरोक्त सभी में

(3) भारत में गणित का विकास (उदय) माना जाता है।
(i) ईसा से 500 वर्ष पूर्व
(ii) ईसा से 1500 वर्ष पूर्व
(iii) ईसा के 500 वर्ष बाद
(ⅳ) ईसा के 1500 वर्ष बाद

(4) भारत में ज्योतिष विद्या, नक्षत्र विद्या, राशि विद्या में किस विषय का सबसे अधिक योगदान है।
(i) गणित
(ii) विज्ञान
(iii) भूगोल
(iv) उपरोक्त सभी।

(5) हींगवान नामक विद्वान ने कहा है कि "गणित मानव सभ्यता का प्रतिबिंब है" इसका अर्थ है कि
(i) गणित के बिना मानव विकास संभव नहीं है।
(ii) समाज विकास का अर्थ गणितीय ज्ञान की वृद्धि है।
(iii) गणित का योगदान सराहनीय है।
(iv) जीवन के हर क्षेत्र में गणित उपयोगी है।

(6) गणित को बालकों के पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाना चाहिए क्योंकि—
(i) गणित विकास की कुंजी है।
(ii) गणित पढने वाले बुद्धिमान बनते है।
(iii) गणित एक सरल विषय है।
(iv) गणित सभी विषयों से महत्वपूर्ण है।

(7) गणित की मानसिक अनुशासनात्मक उपयोगिता होती है क्योंकि—
(i) यह अनुशासन का पाठ पढ़ाता है।
(ii) यह मानसिक सोच में वृद्धि करता है।
(iii) क्रमबध्द तरीके से काम करने के गुण का विकास करता है।
(iv) उपरोक्त में से कोई नहीं।

(8) जीवन के प्रत्येक क्षेत्र जैसे लेन देन, व्यापार, कृषि, तर्क संगत वा‌र्तालाप आदि गणित निम्न में से किस उपयोगिता को प्रदर्शित करता है।
(ⅰ) व्यावसायिक
(ii) व्यवहारिक
(iii) सास्ंकृतिक
(iv) नैतिक।

(9) गणित अध्यापन के उद्देश्य का आधार नहीं है—
(i) व्यवहारिकता
(ii) राष्ट्रीय व सामाजिक
(iii) शिक्षार्थी को योग्यता
(iv) उपरोक्त में कोई नहीं।

(10) गणित अध्यापन का उद्देश्य होना चाहिए—
(ⅰ) सृजनात्मकता का विकास
(ii) व्यवहारगत परिवर्तन
(iⅱ) क्रमबद्धता की आदत
(iv) उपरोक्त सभी।

(11) प्राथमिक स्तर पर गणित में बच्चों, कौन से अधिगम स्तर को बढ़ाया नहीं जा सकता।
(ⅰ) संख्यात्मक योग्यता
(ⅱ) मानसिक तर्क शक्ति
(iii) वैज्ञानिक शोध का दृष्टिकोण
(iv) उपरोक्त में सभी सत्य है।

(12) एक बालक द्वारा गणित की किसी समस्या को हल करने पर उसमे ------ गुण का विकास हो सकता है।
(i) आत्मविश्वास
(ⅱ) दृढता
(iii) आगे बढ़ने की ललक
(iv) सभी

(13) प्राथमिक स्तर के पाठ्यक्रम मे गणित की कौ‌नसी विषय वस्तु नहीं रखी जानी चाहिए—
(i) मापन
(ⅱ) ज्यामितीय आकृतियाँ
(ⅱi) क्षेत्रमिति
(iv) उपरोक्त सभी।

(14) प्राथमिक स्तर पर गणित के पाठ्यक्रम चयन में ध्यान रखा जाना चाहिए —
(i) बच्चों के मानसिक स्तर का
(ⅱ) शिक्षक के मानसिक स्तर की
(iii) दोनों के मानसिक स्तर का
(iv) उपरोक्त में से कोई कथन सही नहीं है।

उत्तर शीट

(1) का (ii) गणित के बगैर कुछ कर पाना संभव नहीं इसलिए सम्राट एवं जीवन में पग पग पर हमारी सहायता करती है इसलिए सेवक है।
(2) का (iv) उपरोक्त सभी में।
(3) का (ii) ईसा से 1500 वर्ष पूर्व।
(4) का (i) गणित
(5) का (ii) समाज विकास का अर्थ गणित की ज्ञान की वृद्धि है।
(6) का (i) गणित विकास की कुंजी है।
(7) का (iii) क्रमबद्ध तरीके से काम करने के गुण का विकास करता है।
(8) का (ii) व्यवहारिक।
(9) का (iv) उपरोक्त में कोई नहीं।
(10) का (iv) उपरोक्त सभी।
(11) का (iii) वैज्ञानिक शोध का दृष्टिकोण
(12) का (iv) सभी।
(13) का (iii) क्षेत्रमिति
(14) का (i) बच्चों के मानसिक स्तर का।

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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