संख्या पद्धति - एक करोड़ तक की संख्याएँ, दस लाख एक की संख्याओं का विस्तारित रूप व स्थानीय मान || TET and CTET exams
संख्यांकन पद्धति क्या है?
संख्यांकन पद्धति वह है जिसमें संख्याओं को कुछ निर्धारित नियमों के अन्तर्गत सीमित प्रतीकों के समूह के उपयोग द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। जिन विशिष्ट प्रतीकों, चिह्नों से संख्याएँ प्रदर्शित की जाती है वे उस प्रणाली के अंक कहलाते हैं।
देवनागरी लिपि (हिन्दी) के अंक - ०, १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९ हैं।
हिन्दू-अरबी संख्यांकन प्रणाली के अंक - 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9
टीप - हिन्दू- अरबी संख्याकन प्रणाली विश्व भर में प्रचलित है।)
रोमन संख्या पद्धति - रोमन संख्याकन पद्धति से केवल सात मूल प्रतीक है- I, V, X, L, C, D, M, इनमें
I = 1
V = 5
X = 10
L =50
C = 100
D = 500
M = 1000 होता है।
रोमन संख्यांकन पद्धति में संख्या लिखने के नियम
I, X, C और M चिह्नों की पुनरावृत्ति की जाती है, किंतु कोई की चिह्न तीन से अधिक बार दोहराया नहीं जाता। छोटे मान वाला चिह्न यदि बड़े मान वाले चिह्न के बायीं ओर लिखते हैं तो उसे बड़े मान वाले चिह्न (संख्या) में से घटा दिया जाता है। किंतु जब छोटे मान वाले चिन्ह को बड़े मान वाले चिह्न के के दायीं ओर लिखते हैं तो उसे बड़े मान वाले चिह्न (संख्या) से जोड़ दिया जाता है। रोमन लिपि में स्थानीय मान की अवधारणा नहीं है। शून्य का प्रयोग सर्वप्रथम भारत में ही किया गया था।
हिन्दू- अरेबिक संख्यांकन पद्धति
इस पद्धति में इनमें प्रयुक्त अंकों की उत्पत्ति भारत में हुई। भारत से अरब होते हुए से अंक धीरे-धीरे यूरोप पहुँचे। यूरोपियों ने इन्हें अरबी अंक कहा क्योंकि उन्हें ये अंक अरबी लोगों से मिले किंतु स्वयं अरब के लोगों ने इन्हें हिन्दू अंक कहा। इस प्रकार यह संख्या पद्धति 'हिन्दू-अरेबिक' संख्या पद्धति कहलाती है। (पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा लिखी गई पुस्तक 'द डिस्कवरी ऑफ इंडिया' पुस्तक का अंश, 3 पृष्ठ 3174 में)
स्थानीय मान
जब इकाईयाँ दस हो जाती हैं तो उसे एक दहाई कहा जाता है, इसी प्रकार जब दहाईयाँ दस से जाती है तो सैकड़ा कहते हैं और दस सैकड़ों को हज़ार कहते हैं। एक अंक की सबसे बड़ी संख्या 9 में 1 जोड़ने पर 10 प्राप्त होता है, जो दो अंकों की सबसे छोटी संख्या है। दो अंको की सबसे बड़ी संख्या 99 में 1 जोड़ने पर 100 प्राप्त होता है इसी प्रकार से तीन अंकों की सबसे बड़ी संख्या 999 में 1 जोड़ने पर 1000 प्राप्त होता है।
स्थानीयमान तालिका
संख्याओं को स्थानीयमान तालिका में लिखने की प्रणाली की खोज भारत में हुई। शून्य की खोज के बारे में ऐतिहासिक तथ्य यह प्रकट करते हैं कि यह ईसवी सन् के बहुत पहले से भारतीय शून्य के बारे में जानते थे। शून्य तथा स्थानीयमान इस संख्या पद्धति की विशेषता है। इनकी सहायता से इस दस अंकों की सहायता से कोई भी संख्या सरलता से लिखी आ सकती है।
करोड़ तक की स्थानीय मान सारणी
करोड | लाख | हजार | इकाई |
---|---|---|---|
द. क. एवं करोड़ | द. ला. एवं लाख | द. ह. एवं हजार | सै. , द. , इ. |
10,00,00,000 व 1,00,00,000 | 10,00,000 व 1,00,000 | 10,000 व 1000 | 100 एवं 10 व 1 |
टीप - किसी भी संख्या में अंक 0 का स्थानीय मान सदैव शून्य होता है।
संख्याओं का विस्तारित रूप
स्थानीय मान सारणी के माध्यम से किसी भी संख्या का विस्तारित रूप लिखा जा सकता है। हम संख्या विस्तार बाँयी ओर से अंक लेकर करते हैं, जो अंक जिस स्थान पर है उसे लिखकर उसके आगे जितने अंक हैं उतने ही शून्य लिख देते हैं। फिर + का चिन्ह लगाकर अगले अंक को लिखकर जितने अंक शेष हो उतने शून्य लगा देते हैं। पुनः + चिन्ह लगाकर आगे का अंक लिखकर शून्य बढ़ा देते हैं। यही प्रक्रिया इकाई के स्थान तक पहुँचकर की जाती है। इस तरह दी गई संख्या का विस्तारित रूप लिखा जाता है। यही क्रिया इकाई की तरफ से प्रारंभ करके भी लिखी जा सकती है।
उदाहरण- 3,58,92,617 = 3,00,00,000+50,00,000+8,00000+90,000+2,000+600+10+7
संख्याओं में तुलना एवं तुलना के नियम
हमें पता है 9, 5 से बड़ी संख्या है जिसे हम 9 > 3 से प्रदर्शित करते हैं।
नियम-
(i) यदि दो संख्याओं में अंको को संख्या असमान हो तो जिस संख्या में अधिक अंक होते हैं वह संख्या बड़ी होगी।
(ii) यदि दो संख्याओं में अंकों की संख्या समान हो तो-
○ हम बायीं ओर के अंकों की तुलना करते हैं। उनमें बड़े अंक वाली संख्या बड़ी होगी।
○ यदि उन संख्याओं में सबसे बायीं ओर के अंक समान हैं तो हम उसके दायीं ओर वाले अंकों की तुलना करते हैं।
हम चिह्न < (छोटा है) एवं > (बड़ा है) का प्रयोग संख्याओं की तुलना में करते हैं। यह हमेशा ध्यान दिया जाये कि हमेशा नोंक छोटी संस्था की ओर और खुला भाग बड़ी संख्या की ओर होना चाहिए।
सम एवं विषम संख्याएँ
(1) दो-दो की जोड़ियाँ मिलाने पर जो संख्याएँ प्राप्त होती हैं, वे सम संख्याएँ होती हैं।
(2) जिन संख्याओं के इकाई के स्थान पर 2, 4, 6, 8 तथा 10 होता है वे सम संख्याएँ होती हैं।
(3) हम कह सकते हैं कि जिन संख्याओं में 2 का पूरा-पूरा भाग चला जाता है या 2 से विभाजित हो जाती हैं वे सम संख्याएँ होती हैं।
(4) जिन संख्याओं की दो-दो की पूरी-पूरी जोड़ियाँ नहीं बनती है, वह विषम संख्याएँ होती हैं।
(5) जिन संख्याओं के इकाई के स्थान पर 1, 3, 5, 7, 9 होता है वे विषम संख्याएँ होती हैं।
(6) जिन संख्याओं में 2 का पूरा-पूरा भाग नहीं जाता है अर्थात जो 2 से पूरी तरह विभाजित नहीं होती हों वे विषम संस्याएँ होती हैं।
क्रम रसूचक संख्याएँ
गणन संख्याएँ संग्रह की कुल संख्या को प्रदर्शित हैं जबकि क्रम सूचक संख्या वस्तु की निश्चित किसी स्थान (प्रारंभिक स्थान) से स्थिति को प्रदर्शित करती है। गणन संख्याओं पर गणितीय संक्रियाए। (जोड़ना, घटाना आदि) की जाती हैं।
जबकि क्रम सूचक संख्याओं के साथ ऐसी संक्रियाएँ नहीं की जाती।
उदाहरण - पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवाँ ----------- दसवाँ --- उनचासवाँ ---- सौंवाँ आदि क्रम सूचक संख्याएँ हैं।
संख्या रेखा
एक ऐसी सरल रेखा जिस पर समान दूरी पर निशान लगाकर जब क्रमागत संख्याओं को प्रदर्शित करते हैं, उसे संख्या रेखा कहते हैं।
(गणन संख्याएँ एवं क्रम सूचक संख्याएँ दोनों को ही संख्या रेखा पर प्रदर्शित किया जा सकता है।)
―|――|――|――|――|――|―
....0......1........2.......3.......4........5
संख्याओं का घटता क्रम एवं बढ़ता क्रम
(1) संख्याओं को घटते क्रम में लिखने के लिए पहले बड़ी संख्या लिखते हैं, उसके बाद ठीक छोटी, शेष बची संख्याओं में यही क्रम दोषराते हैं।
(2) संख्याओं को बढ़ते क्रम में लिखने के लिए सबसे पहले सबसे छोटी संख्या लिखते हैं उसके बाद उससे बड़ी यही क्रम आगे भी दोहराते हैं।
संख्याओं का निकटतम निकटन
हम अपने दैनिक जीवन में कई बार ऐसी संख्याओं का प्रयोग करते हैं, सामान्यतः हम वस्तुओं की सही संख्या के बारे में बातें करते हैं, लेकिन कभी-कभी उन संख्याओं के लगभग आंकलन की जानकारी भी प्राप्त करते हैं। ऐसी स्थिति में हम दी गई संख्या का आवश्यकतानुसार दस, सौ या हजार के निकटतम कर लेते हैं।
निकटतम निकटन प्राप्त करने हेतु महत्वपूर्ण नियम
(1) यदि इकाई के स्थान का अंक 5 से छोटा है तो हम संख्या का निकटन नीचे की ओर करते हैं। इसके लिए दहाई के अंक को ज्यौ का त्यौं लिखकर इकाई के स्थान पर शून्य लगा देते हैं।
(2) यदि इकाई के स्थान का अंक 5 या 5 से बड़ा है तो दहाई के अंक में एक जोड़कर लिखते हैं तथा इकाई के स्थान पर शून्य लिखते हैं।
(3) इसी प्रकार दहाई के अंक तथा सैकड़े के अंकों के आधार पर दहाई व सैकड़े के अंकों को भी लिखते हैं।
उदाहरण 4256 का निकटतम निकटन
दहाई अंक तक = 4260
सैकड़ा अंक तक = 4300
हजार अंक तक = 4000
संख्याओं में अल्पविराम का प्रयोग
किसी भी संख्या को लिखते समय अलग-अलग खण्डों के लिए अल्प विराम (,) का प्रयोग करते हैं। अल्प विराम दायें से बाएँ लगाते हैं। पहला सैकड़े के बाद फिर हजार खण्ड के बाद फिर लाख खण्ड के बाद क्रमशः इसी तरह आगे बढ़ाते जाते हैं।
अंकों का स्थानीय एवं अंकीय (जातीय) मान
किसी संख्या में जो अंक जिस स्थान विशेष जैसे इकाई, दहाई या सैकड़ा .... आदि के स्थान पर है तो उसका स्थानीयमान उसके स्थान के मान से दहाई या सैकड़े या हजार में होता है। जैसे 4332 में 4 हजार के स्थान पर है इसका स्थानीय मे मान 4000 होगा।
किसी अंक का अंकीय या जातीय में वही अंक
का मान रहता है जो उसका वास्तविक मान है जैसे उपरोक्त संख्या में या जातीय या अंकीय मान 4 ही होगा।
इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें।
1. गणित शिक्षण से चिंतन एवं तर्कशक्ति का विकास करना
2. गणित अध्यापन के प्रमुख उद्देश्य, चिंतन शक्ति का विकास
वैकल्पिक प्रश्नोत्तरी
टीप - निम्न प्रश्नों के लिए उत्तर सीट नीचे दी गई है।
[I] कक्षा- तीन की गणित पुस्तक में शिक्षण संकेत- के अन्त लिखा गया है कि - "शिक्षक तालिका (901 से 1000 तक की संख्याएँ) भरवाते समय संख्याओं को लिखने के साथ-साथ पढ़ने के लिए प्रेरित करें।"
यह संकेत बताता है कि-
(i) शिक्षक लापरवाह जिन्हें सूचित करना आवश्यक है।
(ii) बच्चे लापरवाह होते हैं अतः शिक्षक को बताना ही पड़ेगा।
(iii) शिक्षक तालिका भराते समय पढ़ने को नहीं बोलते।
(iv) शिक्षक के लिए मात्र संकेत है ताकि बच्चे संख्याएँ पढ़ना भी सीख जायें।
[II] दो संख्याओं के बीच तुलना करते समय आप बच्चों को बतायेंगे कि-
(i) जिस संख्या के अंकों का मान बड़ा होगा वही बड़ी संख्या होगी।
(ii) जिस संख्या में अधिक अंक होंगे वही बड़ी संख्या होगी।
(iii) जिस संख्या में ज्यादा नौ होंगे वहीं बड़ी संख्या होगी।
(iv) उपरोक्त सभी कथन गलत है।
[III] यदि दो संख्याओं में अंकों की संख्या समान है तो शिक्षक द्वारा बच्चों को बताना होगा कि तुलना करते समय -
(i) दायीं तरफ के अंकों की तुलना कर छोटी या बड़ी संख्या बतायेंगे
(ii) बायीं तरफ के अंकों की तुलना कर छोटी या बड़ी संख्या बतायेंगे।
(iii) बीच के अंकों की तुलना कर छोटी या बड़ी संख्या बतायेंगे।
(iv) उपरोक्त सभी कथन असत्य है।
[IV] 'यदि तीन अंकों वाली दो संख्याओं में बायीं ओर के अंक समान हैं, तब उनकी तुलना हेतु अपने विद्यार्थियों के बताना होगा कि
(i) मध्य वाले अंकों की तुलना करके छोटी या बड़ी संख्या बतायें।
(ii) अंत वाले अंकों की तुलना करके छोटी या बड़ी संख्या बतायें।
(iii) मध्य एवं अंत वाले दोनों अंकों की तुलना करके छोटी या बड़ी संख्या बतायें।
(iv) उपरोक्त सभी कथन सत्य हैं।
[V] कक्षा- 3 री की गणित पुस्तक में एक प्रश्न दिया है कि
"947 एवं 749 में बड़ी संख्या पर गोला लगाओ।"
यह प्रश्न देने के पीछे बच्चों की किस दक्षता का
मूल्यांकन करना है?
(i) उन्हें छोटी बड़ी संख्याओं की तुलना के नियम पता है या नहीं।
(ii) उसे गिनती आती है या नहीं।
(ii) उसे 1000 तक की संख्याओं का ज्ञान है या नहीं।
(iv) उपरोक्त सभी कथन सत्य है।
[VI] प्राथमिक स्तर पर बच्चों को आरोही क्रम व अवरोही क्रम का ज्ञान कराया जाता है। इसका मूल कारण किस दक्षता का बच्चे में विकास करना होता है?
(i) संख्याओं की समझ।
(ii) संख्यात्मक मान।
(iii) अंकों का स्थानीय मान।
(iv) छोटी या बडी संख्या बताने की समझ।
[VII] कक्षा तीन की गणित पुस्तक में किसी प्रश्न में इस तरह दिया है-
(i) 8, ---, 10 (ii) ---, 50, 51 (iii) 44, 45, -----
उपरोक्त खाली स्थानों में दो संख्याओं के बीच की/पहले की/ बाद की संख्या को भरिए।
उक्त प्रकार के रिक्त स्थानों में बच्चों में मुख्य रूप से किस दक्षता का विकास करना होता है?
(i) संख्याओं का ज्ञान।
(ii) क्रमगत संख्या ज्ञान।
(iii) छोटी बडी संख्या का ज्ञान।
(iv) स्थानीय मान का ज्ञान।
[VIll] एक बच्चा कक्षा तीन में संख्या 715 को 700 + 100 + 500 लिखकर विस्तार करता है। इसका अर्थ है कि-
(i) विद्यार्थी को गिनती पढ़ाने की आवश्यकता है।
(ii) स्थानीय मान पढ़ाने की आवश्यकता है।
(iii) संख्याओं का जातीय मान पढ़ाने की आवश्यकता है।
(iv) छोटे या बड़े अंकों की पहिचान कराना आवश्यक है।
[IX] संख्या 35,98,706 में अंक 5 के स्थानीय एवं जातीय भाव का अंतर होगा।
(i) 5,99,994
(ii) 4,99,995
(iii) 4,89,995
(iv) 4,99,994
[X] कक्षा-3 के बच्चों को सम व विषम संख्याओं के ज्ञात कराने के लिए सर्वोत्तम विधि होगी।
(i) कंकड, बीज या काँच की गोलियों के दो-दो के जोड़े बनाने की विधि से समझायें।
(ii) जिस संख्या में दो का भाग चले जाता है वे सम संख्याएँ होती है, समझायें।
(iii) गिनती में 1 के बाद 2 से एक- एक अंक छोड़कर दूरी संख्याएँ विषम है, समझाएँ।
(iv) गिनती लिखकर एक, तीन पाँच ----- को काट दें, फिर शेष बची संख्या सम हैं, समझाएँ।
[XI] गणितीय संक्रियाएँ नहीं की जा सकती हैं।
(i) गणन संस्थाओं पर।
(ii) क्रम सूचक संख्याओं पर।
(ii) दोनों पर संक्रियाएँ की जा सकती हैं।
(iv) उपरोक्त सभी कथन गलत है।
[XII] संख्या रेखा होती है-
(i) एक सरल रेखा जिस पर संख्याएँ अंकित करते हैं।
(ii) एक सीधी रेखा जिस पर क्रमागत संख्याएँ अंकित करते हैं।
(iii) एक सीधी रेखा जिस पर समान दूरी पर निशान लगाकर क्रमागत संख्याओं को प्रदर्शित करते हैं।
(iv) उपरोक्त सभी कथन गलत हैं।
[XIII] देवनागरी लिपी में अंक नौ लिखा जाता है।
(i) 9
(ii) ९
(ii) दोनों तरह।
(iv) दोनों तरह से नहीं।
[XIV] रोमन संख्यांकन पद्धति में मूल प्रतीकों की संख्या है।
(i) 7
(ii) 8
(iii) 9
(iv) 10
[XV] रोमन लिपि में अंकों का दोहराव किया जा सकता है-
(i) I, V, X, L, C, D, M
(ii) I, X, C, M
(iii) I, V, X, M
(iv) I, X, L, C, D, M
[XVI] चार अंकों की संख्या में किसी स्थान पर 0 दिया हुआ है तो उसका स्थानीमान होगा -
(i) इकाई, दहाई या सैकडे का मान।
(ii) 0, 10, 100, 1000
(iii) केवल 0 ही होगा।
(iv) उपरोक्त सभी गलत हैं।
[XVII] कक्षा चार में गणित की पुस्तक में निम्न शिक्षण टीप दी गई हैं-
"विद्यार्थियों को अबाकस के द्वारा कई संख्याओं के अंकों के स्थानीय मान समझायें। किसी संख्या को विस्तारित रूप में -लिखना, विस्तारित रूप से संख्या बनाने का पर्याप्त अभ्यास करवायें। स्थानीय मान हेतु तीलियों का भी प्रयोग करें।"
उपरोक्त शिक्षण संकेत से स्पष्ट है कि -
(i) श्यामपट का प्रयोग करना होगा।
(ii) शिक्षक को सहायक शिक्षण सामग्री का प्रयोग करना होगा।
(iii) गिनती के चार्ट का प्रयोग करना होगा।
(iv) उपरोक्त सभी कार्य करना अनिवार्य होगा ताकि बच्चे अच्छी तरह समझ सकें।
[XVIII] हिन्दू- अरेबिक संख्यांकन पद्धति को मुख्य विशेषता है-
(i) बड़ी से बड़ी संख्या लिखी जा सकती है।
(ii) शून्य तथा स्थानीय मान इस पद्धति की विशेषता है।
(iii) उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं।
(iv) उपरोक्त दोनों कथन गलत हैं।
[XIX] कक्षा 5 वीं के बच्चों को एक प्रश्न दिया गया है-
नीचे लिखी संख्याओं का हिन्दू अरेबिक संख्या पद्धति में लिखिए-
(1) LXXX (2) XXIX (3) XIX ---------
उपरोक्त अभ्यास कार्य से बच्चे में दक्षता का विकास होगा।
(i) रोमन संख्यांकन पद्धति का ज्ञान की।
(ii) हिन्दू-अरबी संख्यांकन पद्धति का ज्ञान की।
(iii) रोमन एवं हिन्दू अरबी संख्यांकन पद्धति के ज्ञान की।
(iv) रोमन एवं हिन्दू-भरबी अंको के ज्ञान की।
[XX] संख्या 4256 में दस के निकटतम निकटन वाली संख्या होगी।
(i) 4000
(iij 4300
(iii) 4250
(iv) 4260
[XXI] निकटतम निकटन द्वारा संख्या ज्ञान हो जाता है।
(i) लगभग आकलन।
(ii) निश्चित वास्तविक संख्या।
(iii) आकलन संभव नहीं।
(iv) उपरोक्त सभी सत्य हैं।
[XXII] अंकों में लिखी संख्या को विद्यार्थियों द्वारा शब्दों में लिखने को कहा जाता है -
ऐसा विद्यार्थियों में किस दक्षता के विकास हेतु कहा जाता है?
(i) संख्याओं को पढ़ पाने की दक्षता।
(ii) अक्षरों एवं शब्दों के ज्ञान को दक्षता।
(iii) संख्याओं में स्थानीय मान की दक्षता।
(iv) संख्याओं में जातीय मान की दक्षता।
[XXIII] प्राथमिक कक्षाओं में गणित विषय में विभिन्न प्रकार के पैटर्न दिये होते हैं, जिन्हें देखकर आगे की क्रियाविधि पूरी करने को निर्देशित किया जाता है। इससे बच्चे में दक्षता का विकास होता है।
(i) ज्ञान
(ii) कौशल
(iii) समझ
(iv) उपरोक्त सभी
उत्तर शीट
[I] (iv) शिक्षक के लिए मात्र संकेत है ताकि बच्चे संख्याएँ पढ़ना भी सीख जायें।
[II] (ii) जिस संख्या में अधिक अंक होंगे वही बड़ी संख्या होगी।
[III] (ii) बायीं तरफ के अंकों की तुलना कर छोटी या बड़ी संख्या बतायेंगे।
[IV] (i) मध्य वाले अंकों की तुलना करके छोटी या बड़ी संख्या बतायें।
[V] (iv) उपरोक्त सभी कथन सत्य है।
[VI] (ii) संख्यात्मक मान।
[VII] (ii) क्रमगत संख्या ज्ञान।
[VIII] (ii) स्थानीय मान पढ़ाने की आवश्यकता है।
[IX] (ii) 4,99,995
[X] (i) कंकड, बीज या काँच की गोलियों के
दो-दो के जोड़े बनाने की विधि से समझायें।
[XI] (ii) क्रम सूचक संख्याओं पर।
[XII] (iii) एक सीधी रेखा जिस पर समान दूरी पर निशान लगाकर क्रमागत संख्याओं को प्रदर्शित करते हैं।
[XIII] (ii) ९
[XIV] (i) 7
[XV] (ii) I, X, C, M
[XVI] (iii) केवल 0 ही होगा।
[XVII] (ii) शिक्षक को सहायक शिक्षण सामग्री का प्रयोग करना होगा।
[XVIII] (iii) उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं।
[XIX] (iv) रोमन एवं हिन्दू-भरबी अंको के ज्ञान की।
[XX] (iv) 4260
[XXI] (i) लगभग आकलन।
[XXII] (i) संख्याओं को पढ़ पाने की दक्षता।
[XIII] (iii) समझ
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1. संविदा शाला वर्ग 3 का 2005 प्रश्न पत्र डाउनलोड करें
2. संविदा शाला वर्ग 2 का 2005 का प्रश्न पत्र डाउनलोड करें
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