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विकास का अधिगम से सम्बंध || Relation of Development to Learning || For CTET and TET exam

सीखने का विकास से सीधा सम्बंध होता है। जो व्यक्ति जितना अधिक सीखता है उतना ही अधिक विकसित कहा जाता है। आयु जैसे-जैसे बढ़ती है, बालक अनुभवों के साथ अपने व्यवहारों में परिवर्तन एवं परिमार्जन करता है। वस्तुत: इसे ही सीखना कहते हैं।

सीखने की क्रिया किसी विशेष आयु वर्ग से सम्बंधित नहीं होती है। हालांकि मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं में विकास की गति असमान होती है परन्तु किसी भी अवस्था में सीखने की प्रक्रिया रुकती नहीं है। शैशवावस्था में शिशु कई प्रकार के शारीरिक, अवबोधक, भावनात्मक तथा सामाजिक कौशल सीखने के साथ ही उसमें व्यक्तित्व, विचार करने, आपसी सम्बंध को पहिचानने, भाषा विकास आदि की भी नींव पड़ने लगती है। विकास की बाल्यावस्था में बालक में विभिन्न आदतों व्यवहार, रूचि एवं इक्छाओं के प्रतिरूपों का निर्माण होने लगता है। वह विभिन्न प्रकार की जान‌कारियों को तर्क और विचार के आधार पर सीखने लगता है। उसमें अपने पूर्व अनुभवों को स्मरण रखने की योग्यता उपलब्ध हो जाती है। शैक्षिक विकास से दृष्टिकोण से यह अवस्था किसी अन्य अवस्था की में अधिक श्रेष्ठ होती है। विकास क्रम तुलना की किशोरावस्था में सीखने का विस्तार तर्क आधारित होता है। इस अवस्था में चंचलता समाप्त होकर ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता विकसित हो जाती है।

इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें।
1. बाल विकास क्या है इसकी अवधारणा एवं परिभाषाएंँ
2. बाल विकास की विशेषताएंँ
3. विकास के अध्ययन की उपयोगिता- बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र
4. बाल विकास के अध्ययन में ध्यान रखे जाने वाली प्रमुख बातें
5. गर्भावस्था एवं माता की देखभाल
6. शैशवावस्था- स्वरूप, महत्वव विशेषताएँ

विकास व अधिगम में सम्बंध

बालविकास और अधिगम एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बगैर दूसरा अपूर्ण है। यदि एक बालक शारीरिक रूप से वृद्धि कर रहा है परन्तु वह जीवन के लिए उपयोगी व्यवहारों एवं जीवन जीने की कला नहीं सीख पाता तो उसे विकास की सच्ची अवधारणा नहीं कहा जा सकता। बालक अपनी आयु के अनुसार अधिगम के उपागमों को प्राप्त करता है। शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था यहाँ तक की वृद्धावस्था में भी व्यक्ति का अधिगम स्तर भिन्न भिन्न होता है। अधिगम के बगैर विकास सम्भव नहीं है। आयु के साथ-साथ व्यक्ति अपने अनुभवों के आधार पर सीखता रहता है।

जन्म के तुरन्त बाद से ही बालक कुछ न कुछ सीखना आरंभ कर देता है जिससे उसमें शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक परिवर्तन होने लगते हैं। वास्तव में सीखना किसी स्थिति के प्रति एक सक्रिय प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ही व्यक्ति के व्यवहार में प्रगतिशील परिवर्तन होते रहते हैं। प्रत्येक किया एक अनुभव प्रदान करती है और अनुभव व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाता है। सीखना अर्थात् अधिगम के बगैर विकास सार्थक एवं फलदादी नहीं हो सकता।

इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें।
1. विकास के स्वरूप
2. वृद्धि और विकास में अंतर
3. बाल विकास या मानव विकास की अवस्थाएँ
4. बाल्यावस्था स्वरूप और विशेषताएँ
5. किशोरावस्था- किशोरावस्था की विशेषताएँ

विकास के साथ अधिगम कैसे?

बच्चों को किसी भी विषय की शिक्षा देते समय उनके मानसिक स्तर का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। शैशवकाल से ही बच्चों की शिक्षा प्रारम्भ हो जाती है। चूँकि शैशवकाल प्रारम्भिक अवस्था होती है। इस अवस्था में सर्वप्रथम शिशु की जिज्ञासाओं को उचित प्रकार से तृप्त किया जाना चाहिए। साथ ही साथ उसे खेलने के भरपूर अवसर प्रदान करते हुए रचनात्मक खिलौने प्रदान किया जाना चाहिए। शैशव अवस्था खेल- खेल में सिखाये जाने की अवस्था है। उस पर अंकुश या नियंत्रण लगाना उसके समुचित विकास को प्रभावित करता है, अत: पूर्ण स्वतन्त्रता के साथ उसका अधिगम किया जाना चाहिए। माता-पिता एवं शिक्षक अपने शिक्षार्थी अर्थात बच्चें के साथ स्नेह, सहानुभूति एवं सहयोगात्मक रवैये से अपने बच्चों को सिखायें, जिससे उनका उचित विकास के साथ समुचित अधिगम भी हो सके। बालक की शिक्षा का सही रूप उसकी बाल्यावस्था से आरंभ होता है। इस अवस्था में प्रत्येक बालक विद्यालय जाने लगता है अत: इस समय बालक का अधिगम अत्यन्त सोच-समझकर किया जाना चाहिए। इस अवस्था में बालक के अन्दर अनेक तार्किक जिज्ञासाएँ जन्म लेती हैं। उसकी जिज्ञासाओं को उनके मानसिक स्तरानुसार समाधान करना श्रेयस्कर होता है। इसी तरह किशोरावस्था तूफान एवं अन्तर्द्वन्द्व का काल होता है, इस समय उचित मार्गदर्शन व दिशानिर्देश देना आवश्यक होता है। इसी के साथ विभिन्न सामुहिक गतिविधियाँ एवं कलात्मक कार्य का आयोजन किशोरों के लिए अनिवार्य हो जाता है।

इस तरह हम देखते हैं कि विकास का अधिगम से बहुत ही गहरा सम्बंध होता है। आयु के साथ अधिगम की तीव्रता व उसका तरीका दिया होता है। अलग अलग आयु स्तर पर अलग- अलग ढंग से अधिगम कराया जाना माता-पिता व शिक्षक का दायित्व है।

इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें।
1. बहुभाषिकता क्या है
2. संप्रेषण क्या है
3. शिक्षा मनोविज्ञान- प्रकृति और उद्देश्य
4. समाजीकरण का अर्थ
5. POCSO act क्या है

इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें।
1. उद्योतन सामग्री क्या होती है
2. किशोरावस्था का स्वरूप
3. प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था काल
4. अधिगम क्या है? अधिगम की परिभाषाएँ एवं विशेषताएँ

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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