लेखक परिचय - आचार्य रामचंद्र शुक्ल, उषा प्रियंवदा, उदय शंकर भट्ट, डॉ. रघुवीर सिंह, शरद जोशी, रामनारायण उपाध्याय
लेखक परिचय- आचार्य रामचंद्र शुक्ल
रचनाएँ- निबंध- चिंतामणि भाग 1 एवं भाग 2,
बुद्ध चरित, हिंदी साहित्य का इतिहास
भाषा- साहित्यिक-दृष्टि से शुक्ल जी की भाषा अत्यंत परिष्कृत और संस्कृतनिष्ठ है। जिसमें उर्दू, फारसी के शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। आपके अप्रतिम प्रतिभा-कौशल के दर्शन आपके मनोवैज्ञानिक और विचारात्मक निबंधों में सहज रूप में हो जाते हैं। मनोवैज्ञानिक निबंधों में मनोविकारों की आपने बड़ी की सूक्ष्म विवेचना की है। भय, क्रोध, उत्साह इत्यादि आपके इसी श्रेणी के निबंध हैं।
शैली- शुक्ल जी के निबंधों में भारतीय और पाश्चात्य निबंध शैलियों का समन्वय है। शुक्ल जी ने प्रमुख रूप से समीक्षात्मक, सूत्रात्मक एवं वर्णनात्मक शैली को अपनाया है। रचनाओं में मर्यादित हास्य-व्यंग का प्रयोग हुआ है। भावों के अनुकूल भाषा की कसावट एवं विषय का समुचित निर्वाह और प्रतिपादन प्रभावी बन पड़ा है। 'हिंदी साहित्य का इतिहास' आचार्य रामचंद्र शुक्ल की अमर-कृति है, जो हिंदी साहित्य के इतिहासकारों के मार्गदर्शन और अभिप्रेरण का अक्षय स्त्रोत है।
साहित्य में स्थान- रचनाशीलता और क्रियाशीलता से सजे आपके व्यक्तित्व और कृतित्व की हिंदी जगत में विशिष्ट छाप है। आधुनिक निबंध साहित्य में शुक्ल जी युग प्रवर्तक साहित्यकार हैं। वे मौलिक चिंतक, गंभीर विचारक और समालोचक के रूप में चिर-स्मरणीय रहेंगे।
लेखक परिचय- उषा प्रियंवदा
रचनाएँ- रुकोगी नहीं राधिका (उपन्यास), जिंदगी और गुलाब (कहानी), फिर बसंत आया (कहानी)
भाषा- उषा प्रियंवदा ने सरल, सुस्थिर, संयत एवं बोधगम्य खड़ी बोली का प्रयोग किया है। लघु वाक्य-विन्यास, कहावतों तथा मुहावरों का प्रयोग भाषा का सरल रूप है। शब्दों के सामासिक प्रयोग से उषा प्रियंवदा के साहित्य की भाषा में कसावट विद्यमान रहती है। विदेशी रहवास ने उनके स्वदेश चिंतन को तुलनात्मक बोध प्रदान किया। वे स्वदेश की संस्कृति, परिवार, कुटुंब और समाज के लय-ताल में भली प्रकार रमती लगती है।
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शैली- उषा प्रियंवदा जी की शैली भावात्मक, विवरणात्मक तथा व्यंगात्मक है। उनके उपन्यासों में विवरण शैली के दर्शन होते हैं, तो कहानियों में भावात्मकता तथा व्यंग्य परिलक्षित है। उनकी सहज कथन शैली तथा यथार्थ चित्रण बेजोड़ है। भावुकता, माधुर्य और प्रवाह उनकी शैली की विशेषता है। उनके व्यंग्य चुटीले व सार्थक हैं, जिनमें विदेशी शब्दों की सहायता से पीड़ा व कराहट का अनुभव होता है। इस प्रकार उनकी शैली वर्ण्य विषय के सर्वथा अनुकूल है।
साहित्य में स्थान- आयातित सांस्कृतिक चिंतन और व्यक्ति के अस्मिता बोध ने मानव मूल्यों की किस तरह अनदेखी की है, यह उनकी कथा स्मृतियों की निजी पहचान है।
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लेखक परिचय- उदय शंकर भट्ट
रचनाएँ- समस्या का अंत (एकांकी), परदे के पीछे (एकांकी), अभिनव एकांकी, चार एकांकी
भाषा- उदय शंकर भट्ट जी ने अपने साहित्य सृजन में सरल, स्थिर व चुलबुली बोधगम्य भाषा का प्रयोग किया है। भावों व पात्रों के अनुसार उनकी भाषा का रूप बदलता रहता है। उनकी भाषा में उर्दू के शब्दों का बाहुल्य है। संस्कृत शब्दावली का प्रयोग यत्र-तत्र दिखाई पड़ता है। संवाद सरल व छोटे-छोटे वाक्यों वाले हैं। भट्ट जी का सम्यक्-ज्ञान उनके ऐतिहासिक, पौराणिक व सामाजिक नाटकों में किए गए प्रयोगों से प्राप्त होता है।
शैली- भट्ट जी की लेखन-शैली की एक विशेषता प्रश्नों के माध्यम से भावाभिव्यक्ति है। कहीं-कहीं वाक्य सूक्ति का-सा आभास कराते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भट्ट जी की भाषा सरल व शैली व्याख्यात्मक है। युग की प्रवृत्तियों और सामाजिक परिवर्तनों से उन्होंने सदैव संगति बनाए रखी। यह परिदृश्य उनके पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटकों में भी देखा जा सकता है, जहाँ वे युग के अनुरूप मान्यताओं और चरित्र-सृष्टियों की रचना करते हैं।
साहित्य में स्थान- वीडियो से प्रसारण की दृष्टि से उनके गीत-नाट्य अत्यधिक सफल हुए। साहित्य के प्रमुख लेखकों में आपका उल्लेखनीय स्थान है।
लेखक परिचय- शरद जोशी
रचनाएँ- जीप पर सवार इल्लियाँ (व्यंग्य), एक था गधा (व्यंग्य नाटक), अंधों का हाथी (व्यंग्य नाटक)
भाषा- शरद जोशी की भाषा अत्यंत सरल व सहज है। उनकी भाषा में प्रभाव है। शब्दों का चयन सटीक है। स्थान-स्थान पर मुहावरों एवं हास-परिहास का हल्का स्पर्श देकर उन्होंने रचना को अधिक रोचक बनाया है। शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली में सहजता है। देशज व विदेशी शब्दों के प्रयोग से भाषा बोधगम्य बन गई है। शरद जी व्यंग्य के भाषागत सौंदर्य को अपनी छोटी-छोटी उक्तियों के माध्यम से प्रभावशाली बनाने में सफल रहे हैं। उनकी भाषा में सरसता के साथ-साथ चुटीलापन भी दृष्टिगोचर होता है।
शैली- शरद जी की शैली मुख्य रूप से हास्य-व्यंग प्रधान है। उन्होंने सामाजिक विडंबनाओं और उसके अंतर्विरोधों को आधार मानकर व्यंग्य किये हैं। वे अपनी चमत्कारिक उत्प्रेक्षाओं से व्यंग्य की सर्जना करते हैं। भेंटवार्ता जैसे प्रसंगों पर संवाद शैली में गुदगुदाने वाला हास्य और उसके परोक्ष में छिपा व्यंग्य, श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था। उनकी आलोचनात्मक शैली भी व्यंग से पूर्ण है। वे राजनीतिज्ञों की आलोचना में भी व्यंग्य करने से नहीं चूकते। उनके हर व्यंग्य में ओज का पुट मौजूद मिलता है। इसलिए बुद्धिजीवी उनके तक, शब्द-शैली, भाषा-शैली और विचारों की पकड़ का लोहा मानते हैं।
साहित्य में स्थान- आपने फिल्म तथा दूरदर्शन के लिए मुंबई में रहकर सर्जनात्मक लेखन भी किया। हिंदी साहित्य में अप्रतिम व्यंग्यकार के रूप में आपका महत्वपूर्ण स्थान है।
लेखक परिचय- डॉ. रघुवीर सिंह
रचनाएँ- शेष-स्मृतियाँ, सप्तदीप, बिखरे फूल, जीवनकण।
ये सभी साहित्यिक कृतियाँ हैं।
भाषा- डॉ. रघुवीर सिंह की भाषा सरल, स्पष्ट और सुबोध है। यद्यपि भाषा में संस्कृतनिष्ठता दृष्टिगत होती है, तथापि यथावसर विषयानुकूल उर्दू शब्दों के प्रयोग से भी परहेज नहीं किया गया है। यही कारण है कि विषय-प्रतिपादन में प्रवाह और प्रभावोत्पादकता आ गई है। भाषा ललित हो गई है जो सहज ही पाठक को भाव-प्रवण और संवेदनशील सहयात्री बना लेती है। सौंदर्य में हार्दिक रमणीय के कारण ही उनमें कहावतों, मुहावरों का समावेश हो गया है और अभिव्यक्ति में काव्य की सी भावुकता अनुप्राणित है।
शैली- डॉ. रघुवीर सिंह की शैली की प्रमुख विशेषता रोचकता, चित्रात्मकता, भावुकता तथा अलंकार योजना है। उन्होंने भावात्मक, चित्रात्मक, अलंकारिक, विचारात्मक एवं वर्णनात्मक शैली को अपनाया है। गंभीर विषयों की विवेचना में संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का सहारा लिया है। आपके निबंधों में सजीवता तथा प्रभावोत्पादकता है। उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति इत्यादि अलंकारों का प्रयोग दर्शनीय है। उन्होंने एक चित्रकार की भाँति अपने भावों को पाठक के समक्ष रखा है। आपने विभिन्न शैलियों का प्रयोग किया है जिससे भाषा काव्यात्मक एवं सरस हो गई है।
साहित्य में स्थान- डॉ. रघुवीर सिंह हिंदी साहित्य में ऐतिहासिक निबंधकार के रूप में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
लेखक परिचय- रामनारायण उपाध्याय
रचनाएँ- कथाओं की अंतर्कथाएँ (संस्मरण), हम तो बाबुल तोरे बाग की चिड़िया, चतुर चिड़िया
भाषा- रामनारायण उपाध्याय जी की भाषा लोकभाषा है। लेकिन संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली में विदेशी शब्दों का प्रयोग हुआ है। साथ ही साधारण बोलचाल के आंचलिक शब्दों का प्रयोग भाषा को मधुरता देता है। कहीं-कहीं वाक्यों में सूत्रता आ जाती है। अधिकतर वाक्य छोटे व विचारपूर्ण हैं। इस प्रकार उनकी भाषा प्रवाहपूर्ण तथा बोधगम्यतापूर्ण है। वैयक्तिक विशेषताओं के दर्शन आपकी रचनाओं में सहज ही हो जाते हैं। आपकी रचनाओं में गूढ़ विषयों की व्यापकता समाहित है।
शैली- उपाध्याय जी की शैली में विविधता है। निबंधों में उन्होंने आत्मपरक शैली को अपनाया है। लोक साहित्य में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। इस शैली की भाषा सरल व प्रवाहपूर्ण है। अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए उन्होंने यत्र-तत्र सूत्रात्मक शैली को अपनाया है। व्यंगात्मक निबंधों में व्यंग्यात्मक शैली को अपनाया तो संस्मरणों में भावात्मक शैली को। इस प्रकार लेखक ने समय के अनुसार विविध शैलियों का प्रयोग करके अपने साहित्य का कलेवर सजाया है। उनके साहित्य सृजन में संपूर्ण निमाड़ी लोक-साहित्य पर समग्र लेखन है।
साहित्य में स्थान- उपाध्याय जी की वाणी, वेश और आचरण-व्यवहार में जहाँ गांधीवादी जीवन और विचार प्रत्यक्ष होते थे; वहीं ग्राम और ग्राम्य संस्कृति मूर्तिमान होती थी।
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2. वर्ण क्या हैं वर्णोंकी संख्या
3. वर्ण और अक्षर में अन्तर
4. स्वर के प्रकार
5. व्यंजनों के प्रकार-अयोगवाह एवं द्विगुण व्यंजन
6. व्यंजनों का वर्गीकरण
7. अंग्रेजी वर्णमाला की सूक्ष्म जानकारी
आशा है, लेखक परिचय से संबंधित यह जानकारी परीक्षापयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
धन्यवाद।
RF Temre
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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