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Sanskrit class 8th द्वितीयः पाठः कालज्ञो वराहमिहिरः Hindi anuwad and Exercise


Sanskrit class 8th द्वितीयः पाठः कालज्ञो वराहमिहिरः Hindi anuwad and Exercise

उप शीर्षक:
संस्कृत कक्षा 8 द्वितीयः पाठः हिन्दी अनुवाद एवं अभ्यास ....... वराहमिहिरस्य जन्म 499 (नवनवत्यधिक चतुश्शतके) ख्रिस्ताब्दे सञ्जातम्।

अस्ति उज्जयिन्याः निकटे ‘कपित्थ’ (कायथा) नामाख्यो ग्रामः। तत्र आदित्योपासकः ‘आदित्यदासः’ नामा कश्चित् विप्रः प्रतिवसति स्म। तस्य गृहे ‘ वराहमिहिरः नामः बालकोऽजायत। वराहमिहिरस्य जन्म 499 (नवनवत्यधिक चतुश्शतके), ख्रिस्ताब्दे सञ्जातम्।।

अनुवाद-

उज्जयिनी के पास ‘कपित्थ’ (कायथा) नामक गाँव है। वहाँ सूर्य का भक्त ‘आदित्यदास’ नामक कोई ब्राह्मण रहता था। उसके घर में ‘वराहमिहिर’ नामक बालक ने जन्म लिया। वराहमिहिर का जन्म 499 (चार सौ निन्यानवे) ईस्वी में हुआ।

बालकः वराहमिहिरः स्वकीयपित्रा एक ज्यौतिष-विद्यामध्यगच्छत्। ततः सः पाटिलपुत्रनगरं गन्या प्रसिद्धखगोलशास्त्रज्ञात् आर्यभट्टात् खगोलशास्त्रस्याध्ययनं कृतवान्।

अनुवाद-

बालक वराहमिहिर ने अपने पिता से ही ज्योतिष विद्या का अध्ययन किया। उसके पश्चात् उन्होंने पाटलिपुत्र (पटना) नगर जाकर प्रसिद्ध खगोलशास्त्री आर्यभट्ट से खगोलशास्त्र (आकाश मण्डल का शास्त्र) का अध्ययन किया।

तदानीम् उज्जयिनी विद्यायाः प्रमुखकेन्द्रमासीत्। उज्जयिन्यां गुप्तवंशस्य संरक्षणे बहुविधकला-विज्ञान-सांस्कृतिककेन्द्रादीनि संरक्षितानि वर्द्धितानि चासन्। अत्र नानादिग्देशेभ्यः विद्वज्जनानां समागमः भवतिस्म अत एव वराहमिहिरोऽपि समाप्याध्ययनम् अस्मिन्नेव नगरे समागतः।

अनुवाद-

उस समय उज्जयिनी विद्या का प्रमुख केन्द्र थी। उज्जयिनी में गुप्तवंश के संरक्षण (देखरेख) में अनेक प्रकार के कला, विज्ञान और सांस्कृतिक केन्द्र आदि संरक्षित और विकसित थे। यहाँ विभिन्न दिशाओं और देशों से विद्वान् लोगों का मेल होता था। इसीलिए वराहमिहिर भी अध्ययन समाप्त करके इसी नगर में आ गये।

वराहमिहिरः देवज्ञः वैज्ञानिकश्चासीत्। सः। गतानुगतिकताया: स्थाने वैज्ञानिकदृष्टिकोणस्य महत्वं प्रतिपादिलवान्। ग्रहनक्षत्रप्रभावाश्रितं फलित-ज्यौतिषं नाम शास्त्रं तस्दा प्रियपतिपााविषयोऽभवत्। तेन कृता कालगणना प्रामाणिकी अस्ति। भारते फलितज्यौतिषस्य प्रथमः आचार्य: वराहमिहिरः एव अस्ति न तत्पूर्वं फलितज्योतिषस्य शास्त्रं प्राप्यते भारते। एष एवं सर्वप्रथमं प्रतिपादितवान् यत् चन्द्रस्त्र प्रकाश: स्वीकीयः नास्ति, अपितु सः सूर्यस्य प्रकाशेन प्रकाशते।

अनुवाद-

वराहमिहिर वेदों के ज्ञाता और वैज्ञानिक थे। उन्होंने गतानुगतिकता (अन्धानुकरण या दूसरों की नकल करना) के स्थान पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण का महत्त्व समझाया। ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव पर आधारित फलित-ज्योतिष (नक्षत्र ग्रहों के अनुसार फल बताने वाली विद्या) नामक शास्त्र उनका प्रिय प्रतिपादन (विचार) किये जाने योग्य विषय हुआ। उनके द्वारा की गयी काल की गणना प्रामाणिक है। भारत में फलितज्योतिष के प्रथम आचार्य वराहमिहिर ही हैं। उनसे पहले भारत में फलितज्योतिष का शास्त्र प्राप्त नहीं होता। इन्होंने ही सबसे पहले समझाया कि चन्द्रमा का प्रकाश अपना नहीं है, बल्कि वह सूर्य के प्रकाश से चमकता है।

वराहमिहिरेण बृहत्संहिता-बृहज्जातकम्-पञ्चसिद्धान्तिका ग्रन्थाः विरचिताः। एतेषु ग्रन्थेषु खगोलविद्यायाः गूढ़तत्त्वानां प्रतिपादनमस्ति। अनेन न केवल खगोलतत्त्वानां निरूपणं कृतम् अपितु पृथिव्याः गोलकत्वम्, गुरुत्वाकर्षणस्य सिद्धान्तम्, पर्यावरणविज्ञानम्, जलविज्ञानम्, भूविज्ञानमपि विस्तरेण विवेचितम्। “पादपाः वल्मीकाश्च अधोभौमिकजलस्थितिं प्रदर्शयन्ति।” इति तस्य कथनमासीत्। आधुनिकवैज्ञानिकाः अपि तानवलम्ब्य अन्वेषणं कुर्वन्ति।

अनुवाद-

वराहमिहिर ने ‘वृहत्संहिता, बृहज्जातकम् और पञ्चसिद्धान्तिका’ ग्रन्थ रचे। इन ग्रन्थों में आकाशमण्डल की विद्या के गहन तत्वों को समझाया गया है। इन्होंने न केवल खगोल तत्त्वों का निरूपण किया बल्कि पृथ्वी के गोल होने का, गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त का, पर्यावरण विज्ञान का जलविज्ञान का और भू-विज्ञान का भी विस्तार से वर्णन किया। “वृक्ष और दीमक भूमि के नीचे जल होना प्रकट करते हैं।” यह उनका कहना था। आधुनिक वैज्ञानिक भी उनका सहारा लेकर खोज करते हैं।

नानादेशेषु परिभ्रमन् स्वकीयज्ञानदीप्त्या दीप्यमानः 587 (सप्तशीत्यधिकं पञ्चशतम्) ख्रिस्ताब्दे सः दिवङ्गतः। स्वकीयविस्तृतज्ञानेन खगोलसदृशं गहनविषयमपि सरलं प्रस्तुतवान्। ज्यौतिषविद्यामहार्णवं तर्तुं तस्य ग्रन्थाः नौकाः इव सन्ति। सः महान् कालज्ञः आसीत्। ज्योतिर्विद्यायां तु वराहमिहिरः तिमिरनाशकः सूर्य इव आसीत्।

अनुवाद-

अनेक देशों में घूमते हुए अपनी ज्ञान की ज्योति से प्रकाशमान वह 587 (पाँच सौ सतासी) ईस्वी में स्वर्गवासी हो गये। अपने विस्तृत ज्ञान से खगोल जैसे गहन विषय को भी सरल कर दिया। ज्योतिष विद्या के महासागर को पार करने के लिए उनके ‘ग्रन्थ नाव के समान हैं। वह महान ज्योतिषी थे। ज्योतिर्विद्या में तो वराहमिहिर अन्धकार का विनाश करने वाले सूर्य के समान थे।

संस्कृत कक्षा 8 के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. वन्दना श्लोकों का हिन्दी अनुवाद (कक्षा 8 वीं) संस्कृत
2. लोकहितम मम करणीयम्- पाठ का हिंदी अनुवाद (कक्षा- 8 वीं) संस्कृत
3. अभ्यास: – प्रथमः पाठः लोकहितम मम करणीयम् (कक्षा आठवीं संस्कृत)

शब्दार्थ-

-

कालज्ञ- ज्योतिषी। अजायत- जन्म लिया। वल्मीका- दीमक। महार्णवम्- महासागर को। गतानुगतिकताया- अन्धानुकरण। तिमिरनाशक- अन्धकार विनाशक। खगोल- आकाशमण्डल। फलितज्यौतिषम्- नक्षत्र ग्रहों के अनुसार फल बताने वाली विद्या।

अभ्यासः

-

प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) वराहमिहिरस्य जन्म कुत्र अभवत्?
उत्तर- कपित्थग्रामे।
(ख) वराहमिहिरस्य पितुः नाम किम्?
उत्तर- आदित्यदासः।
(ग) वराहमिहिरः कस्मात् ज्यौतिषं पठितवान्?
उत्तर- स्वकीयजनकात्।
(घ) वराहमिहिरः खगोलशास्त्रं कस्मात् पठितवान्?
उत्तर- आर्यभट्टात्।
(ङ) वराहमिहिरः अध्ययनं समाप्य कुत्र अगच्छत्?
उत्तर- उज्जयिनीम्।

प्रश्न 2. एकवाक्येन उत्तरं लिखत
(क) वराहमिहिरस्य जन्म कदा अभवत्?
उत्तर- वराहमिहिरस्य जन्म 499 ख्रिस्ताब्दे सजातम्।
(ख) वराहमिहिरः कदा दिवङ्गतः?
उत्तर- वराहमिहिरः 587 ख्रिस्ताब्दे दिवङ्गतः।
(ग) भारते फलितज्यौतिषस्य प्रथमः आचार्यः कः अभवत्?
उत्तर- भारते फलितज्योतिषस्य प्रथमः आचार्यः वराहमिहिरः अभवत्।
(घ) वराहमिहिरेण के ग्रन्थाः विरचिताः।
उत्तर- वराहमिहिरेण बृहत्संहिता-बृहज्जातकम्पञ्च सिद्धान्तिका ग्रन्थाः विरचिताः।
(ङ) पादपाः वल्मीकाश्च किं प्रदर्शयन्ति?
उत्तर- पादपाः वल्मीकाश्च अधोभौमिकजलस्थिति प्रदर्शयन्ति।

प्रश्न 3. उचितशब्देन रिक्तस्थानं पूरयत
(क) वराहमिहिरः अध्ययनं समाप्य उज्जयिनीम् आगतः। (उज्जयिनीम्/पाटलीपुत्र नगरम्)
(ख) आर्यभट्टः खगोलशास्त्री आसीत्। (खगोलशास्त्री/साहित्यशास्त्री)
(ग) बृहज्जातकम् नाम ग्रन्थः वराहमिहिरेण विरचितः। (आर्यभटेन/वराहमिहिरेण)
(घ) कपित्थग्रामः उज्जयिन्याः निकटे अस्ति। (पाटलिपुत्रनगरस्य/उज्जयिन्याः)
(ङ) गुरुवाकर्षणस्य सिद्धान्तं वराहमिहिरेण प्रतिपादितम्।। (आदित्यदासेन/वराहमिहिरेण)

प्रश्न 4. उचितं योजयत अ - ब क. उज्जयिनयाः निकटे- वराहमिहिरः
ख. वराहमिहिरस्य जन्म- 587 ख्रिस्ताब्दे
ग. आदित्यदासस्य पुत्रः- कपित्थग्रामः
घ. अध्ययनं समाप्य वराह- 499 ख्रिस्ताब्दे मिहिरः समागतः
ङ. वराहमिहिरस्य मृत्युः- उज्जयिनीम्
उत्तर-
क. उज्जयिनयाः निकटे - कपित्थग्रामः
ख. वराहमिहिरस्य जन्म - 499 ख्रिस्ताब्दे मिहिरः समागतः
ग. आदित्यदासस्य पुत्रः - वराहमिहिरः
घ. अध्ययनं समाप्य वराह - उज्जयिनीम्
ङ. वराहमिहिरस्य मृत्युः - 587 ख्रिस्ताब्दे

प्रश्न 5. शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-
(क) “पञ्चसिद्धान्तिका” इत्यस्य ग्रन्थस्य रचयिता वराहमिहिरः अस्ति। (आम्)
(ख) बृहज्जातकम् ग्रन्थस्य रचयिता आर्यभट्टः अस्ति। (न)
(ग) आर्यभट्टः खगोलशास्त्री आसीत्। (आम्)
(घ) वराहमिहिरस्य कृता कालगणना प्रामाणिकी अस्ति। (आम्)
(ङ) वराहमिहिरस्य जन्म वर्तमानमध्यप्रदेशराज्ये अभवत्। (आम्)

प्रश्न 6. नामोल्लेखपूर्वकं सन्धिविच्छेदं कुरुत-
(क) आदित्योपासकः
(ख) अस्मिन्नेव
(ग) समाप्याध्ययनम्
(घ) बालकोऽजायत
(ङ) वर्द्धिताश्च
(च) खगोलशास्त्रस्याध्ययनम्
उत्तर-
समस्त पद
(क) आदित्योपासकः
(ख) अस्मिन्नेव
(ग) समाप्याध्ययनम्
(घ) बालकोऽजायत
(ङ) वर्द्धिताश्च
(च) खगोलशास्त्रस्याध्ययनम्

संधि विच्छेद
(क) आदित्य + उपासक
(ख) अस्मिन + एव
(ग) समाप्य + अध्ययनम्
(घ) बालको + अजायत
(ङ) वर्द्धिताः + च
(च) खगोलशास्त्रस्य + अध्ययनम्

संधि नाम
(क) स्वर संधिः (गुणः)
(ख) व्यंजन संधिः
(ग) स्वर संधिः (दीर्घः)
(घ) स्वर संधिः (पूर्वरूपः)
(ङ) विसर्ग संधिः
(च) स्वर संधिः (दीर्घः)

संस्कृत कक्षा-6 के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. प्रथमः पाठः शब्द परिचय (कक्षा 6वीं) संस्कृत
2. स्तुति श्लोकाः हिन्दी अनुवाद (कक्षा- 6) संस्कृत

आशा है, यह पाठ विद्यार्थियों के लिए काफी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगा। विद्यार्थी अपना अध्ययन सतत् रूप से जारी रख पाएंगे।
धन्यवाद।
RF Temre
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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope the above information will be useful and important. )
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
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