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एकांकी विधा - एकांकी के प्रकार || नाटक व कहानी से भिन्नता || प्रमुख एकांकीकार तथा उनकी प्रमुख कृतियाँ (Ekanki vidha)

  • BY:
     RF Temre

एकांकी विधा क्या है? नाटक व कहानी से भिन्नता - नाटक और एकांकी के तत्व समान हैं, एकांकी में एक ही अंक, एक घटना, एक कार्य और एक ही समस्या होती है, फिर भी इसे नाटक का लघु रूप नहीं कहा जा सकता है। यह एक स्वतन्त्र विधा है। एकांकी की शैली में संक्षिप्तता एवं गतिशीलता होती है। इसमें लेखक लक्ष्य प्राप्ति की ओर सीधी दौड़ लगाता है। अतः इसमें जीवन का यथार्थ स्वरूप रहता है जो संकलन-त्रय की विशिष्ट चेतनशीलता के बिना संभव नहीं होता। एकांकी और कहानी भी पूर्णतः अलग-अलग विधाएँ हैं। यद्यपि इनमें अनेक समानताएँ हैं फिर भी कहानी केवल पठनीय है जबकि एकांकी पठनीय तथा अभिनेय दोनों है।

एकांकी के तत्व - एकांकी के आठ तत्व माने जाते हैं -
(1) कथा वस्तु
(2) संघर्ष
(3) संकलन-त्रय
(4) पात्र और चरित्र-चित्रण
(5) संवाद या कथोपकथन
(8) अभिनेयता
(7) रंगमंच निर्देश तथा
(8) प्रभाव एक्य।
कुछ विद्वान उपर्युक्त आठों तत्वों को कथा, संवाद और दृश्य विधान के अंतर्गत सभी तत्वों का समावेश कर तीन ही तत्व मानते हैं।

एकांकी के प्रकार - शैली, विषयवस्तु, रचना प्रकार तथा मूल प्रवृत्ति आदि के आधार पर एकांकियों के अनेक प्रकार किए जाते हैं -
1. तकनीक या रचना प्रकार के आधार पर - नौ प्रकार से एकांकी के अंग माने जाते हैं।
1. मोनोप्ले (Monoplay)
2. स्क्रिप्ट (Script)
3. फैंटैसी (Fantasy)
4. रेडियो प्ले (Radio Play)
5. फीचर (Feature)
6. गीत नाट्य (Lyric Drama)
7. ओपेरा (Opera)
8. झाँकी (Tableau) तथा
9. संभाषण (Interpretation)
इनके अतिरिक्त कुछ छाया-रूपक भी होते हैं।

2. मूल प्रवृत्ति के आधार पर - डॉ. सत्येंद्र के अनुसार ये भेद निम्न प्रकार के हैं -
1. आलोचक एकांकी
2. विवेकवान एकांकी
3. भावुक एकांकी
4. समस्या एकांकी
5. अनुभूतिमय एकांकी
6. व्याख्या मूलक एकांकी
7. आदर्श-मूलक एकांकी
8. प्रगतिवादी एकांकी।

3. विषय वस्तु के आधार -
1. सामाजिक
2. राजनैतिक
3. ऐतिहासिक
4. पौराणिक और
5. साहित्यिक आदि
उक्त विषयों की कोई सीमा नहीं होती। अतः वस्तु के आधार पर किया गया वर्गीकरण संख्या की सीमा में बाँधा नहीं जा सकता।

4. संदेश की दृष्टि से - संदेश की दृष्टि से एकांकी के निम्न प्रकार हैं।
(1) आदर्शवादी
(2) यथार्थवादी
(3) प्रकृतवादी, तथा
(4) मनोरंजनवादी आदि भेद किए जा सकते हैं।

5. अभिनेयता के आधार पर - अभिनेयता के आधार पर एकांकी दो प्रकार के होती हैं -
(1) पठनीय और
(2) रंगमंचीय

एकांकी युग विभाजन -

1. आदर्शोन्मुखी रचना युग - भारतेंदु एवं प्रसाद युगीन रचनाएँ।
(सन् 1900 से 1935 तक)
2. सामाजिक जागरण काल-
प्रसादोत्तर रचनाएँ 1986 से 1960 तक।
3. यथार्थोन्मुखी युग - छठे दशक से अब तक।

एकांकी विद्या का प्रारंभ तो भारतेंदु युग से ही माना जाता है, क्योंकि इस समय राष्ट्रीय, सामाजिक, धार्मिक एवं हास्य व्यंग्य युक्त अनेक एकांकी या प्रदर्शन लिखे गए। भारतेंदु जी ने स्वयं 'भारत दुर्दशा' और 'भारत जननी' एकांकी लिखे। लेखकों में श्री राधासरण गोस्वामी ने 'भारत-माता', अमरसिंह राठौर, राधाकृष्ण दास ने 'महारानी पद्मिनी' और 'दुःखिनी बाला', प्रताप नारायण मिश्र ने 'कलि-कौतुक', काशीनाथ खत्री ने 'बाल-विधवा' आदि की रचनाएँ लिखी। इनके अतिरिक्त धार्मिक एकांकी भी लिखे गए जिनमें पौराणिक आख्यानों को अपनाया गया। सामाजिक एकांकियों में यह अत्यधिक लोकप्रिय हुए। इनमें भारतेंदु कृत 'धनंजय विजय', श्रीनिवास दास कृत 'प्रहलाद चरित्र', राधाचरण गोस्वामी कृत 'श्री दामाऔर चंद्रावली', बालकृष्ण भट्ट कृत 'दमयंती स्वयंवर' आदि को विशेष ख्याति प्राप्त हुई। हास्य-विनोद के क्षेत्र में प्रताप नारायण मिश्र रचित 'चौपट-चपेट', काशीनाथ खत्री रचित 'ग्राम पाठशाला' एव 'निकृष्ट नौकरी', रुद्रदत्त शर्मा रचित 'पाखंड मूर्ति' और 'स्वर्ग में सबजेक्ट कमेटी' आदि उल्लेखनीय है।

प्रसाद युग में एकांकी की विद्या अधिक गतिमयता के साथ पुष्पित और पल्लवित हुई। सामाजिक एकांकियों का अधिक सृजन हुआ। प्रसाद जी ने स्वयं अपनी लेखनी चलाई, साथ ही चण्डी प्रसाद हृदयेश, बदरी नाथ भट्ट, पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र', जी. पी. श्रीवास्तव, सुदर्शन तथा रामनरेश त्रिपाठी प्रभूति रचनाकारों न एकांकी लिखे।

प्रसादोत्तर काल में विषय वस्तु एवं एकांकी शिल्प दोनों ही दृष्टियों से नवीन प्रयोग किए गए। पाश्चात्य प्रभाव भी पर्याप्त मात्रा में पड़ा। भुवनेश्वर का 'कारवा' इस श्रृंखला का सुन्दर उदाहरण है।

दूरदर्शन के लिए भी अनेक लेखकों ने रचनाएँ को, जिनका अब परिमार्जन एवं सुसंगठित स्वरूप प्राप्त होने लगा है। वस्तुतः दूरदर्शन हेतु लेखन एक स्वतन्त्र विद्या बनता जा रहा है।

प्रमुख एकांकीकार तथा उनकी प्रमुख कृतियाँ

डॉ. रामकुमार वर्मा - 'पृथ्वीराज की आँखें', 'रेशमी टाई', 'चारुमित्रा', 'सप्तकिरण', 'दीपदान', 'औरंगजेब की आखरी रात', 'उत्सर्ग', 'चंद्रलोक' आदि।

सेठ गोविन्ददास - 'पंचभूत', 'सप्तरश्मि', 'चतुष्पद', 'अष्टदल', 'नवरंग', 'एकादशी' आदि।

उदयशंकर भट्ट - 'विश्वामित्र और दो भाव नाट्य', 'आदिमयुग', 'परदे के पीछे' 'कालीदास' आदि।

हरिकृष्ण प्रेंमी - इनके एकांकी मंदिर और बादल संग्रहों में प्रकाशित हुए हैं।

लक्ष्मीनारायण मिश्र - प्रमुख एकांकी संग्रह - 'अशोकवन', 'कावेरी में कमल', 'बल ही नारी का रंग', 'प्रलय के पंख पर' और 'स्वर्ग में विप्लव'।

उपेंद्रनाथ 'अश्क' - एकांकी संग्रह - 'देवताओं की छाया में', 'तूफान से पहले', 'पर्दा गिराओ', 'पर्दा उठाओ', 'चरवाहे' आदि।

जगदीशचंद्र माथुर - प्रमुख संग्रह - 'भोर का तारा', 'ओ मेरे सपने'।

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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope the above information will be useful and important. )
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
infosrf.com

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