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पाठ - 1 "मेरी भावना" कविता का सारांश एवं भावार्थ, बोध-प्रश्न एवं भाषा अध्ययन (व्याकरण) || जुगलकिशोर "युगवीर"

कविता - "मेरी भावना"

अहंकार का भाव न रक्खूँ,
नहीं किसी पर क्रोध करूँ।
देख दूसरों की बढ़ती को,
कभी न ईर्ष्या भाव धरूँ॥

रहे भावना ऐसी मेरी,
सरल-सत्य व्यवहार करूँ।
बने जहाँ तक इस जीवन में,
औरों का उपकार करूँ।।

मैत्री भाव जगत में मेरा,
सब जीवों से नित्य रहे।
दीन-दुखी जीवों पर मेरे,
उर से करुणा-स्रोत बहे॥

दुर्जन-क्रूर-कुमार्गरतों पर,
क्षोभ नहीं मुझको आए।
साम्यभाव रक्खूँ मैं उन पर,
ऐसी परिणति हो जाए॥

गुणीजनों को देख हृदय में,
मेरे प्रेंम उमड़ आए।
बने जहाँ तक उनकी सेवा,
करके यह मन सुख पाए।।

होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं,
द्रोह न मेरे उर आए।
गुण ग्रहण का भाव रहे नित,
दृष्टि न दोषों पर जाए।।

कोई बुरा कहे या अच्छा,
लक्ष्मी आए या जाए।
लाखों वर्षों तक जीऊँ या,
मृत्यु आज ही आ जाए।।

अथवा कोई कैसा ही भय,
या लालच देने आए।
तो भी न्याय मार्ग से मेरा,
कभी न पद डिगने पाए।।

फैले प्रेंम परस्पर जग में,
मोह दूर पर रहा करे।
अप्रिय कटक कठोर शब्द नहीं,
कोई मुख से कहा करे।।

बनकर सब 'युगवीर' हृदय से,
देशोन्नति रत रहा करें।
वस्तु स्वरूप विचार खुशी से,
सब दुःख संकट सहा करें।।

कविता का सारांश

इस कविता में कवि अपने सद्-व्यवहारों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। वे अपने हृदय में घमंड, क्रोध और ईर्ष्या जैसे दुर्भावों को नहीं रखना चाहते। वे दूसरों का उपकार करते हुए सरल व्यवहार करने, दीन-दुखियों के प्रति करुणा रखते हुए प्राणी-जगत से मैत्री-भाव रखने, अनुकूल या प्रतिकूल व्यवहार के बावजूद सबके प्रति समानता के भाव रखने, गुणवानों का सम्मान एवं सेवाभाव, दूसरों के उपकरों को न भूलने एवं हृदय में दूसरों के प्रति दुर्भावना न लाने, दूसरों के दोषों को छोड़ गुणों को ग्रहण करने, विषम परिस्थितियों में न्याय मार्ग से न हटने, संसार में मोह माया से दूर रहकर परस्पर प्रेंमभाव प्रसारित करने जैसी भावनाओं हेतु प्रार्थना करते हैं। अंत में वे कामना करते हैं की राष्ट्र में रहने वाले सभी लोग देश की उन्नति में लगे रहे और सबको कष्ट सहन करने की शक्ति प्राप्त हो।

कवि जुगल किशोर "युगवीर" का संक्षिप्त परिचय

श्री जुगल किशोर 'युगवीर' का जन्म सरसावा ग्राम जिला सहारनपुर में हुआ था। आपको संस्कृत, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी, हिन्दी भाषाओं का ज्ञान था। बाल्यकाल से ही लेखन क्षमता के धनी थे। 'मेरी भावना' आपकी अद्वितीय कृति है । अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद हो गया है तथा इसे प्रार्थना के रूप में स्वीकार किया गया है।

शब्दार्थ

अहंकार = घमण्ड।
परिणति = परिणाम, बदलाव या परिवर्तन।
देशोन्नति = देश की उन्नति।
स्त्रोत = साधन, उद्गम।
ईर्ष्या = जलन।
दुर्जन = दुष्ट।
द्रोह = बैर।
करुणा = दया।
कटु = कठोर, कड़वा।
क्षोभ = खेद, दुःख।
क्रूर = निर्दयी।
कुमार्गरतों = बुरे रास्ते पर।
कृतघ्न = उपकार न मानने वाले।
युगवीर = युग चलने वाले, विशेष का प्रसिद्ध योद्धा, युग निर्माता।

पंक्तियों का भावार्थ

[1] अहंकार का भाव न रक्खूँ, नहीं किसी पर क्रोध करूँ।
देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईर्ष्या भाव धरूँ॥
रहे भावना ऐसी मेरी, सरल-सत्य व्यवहार करूँ।
बने जहाँ तक इस जीवन में, औरों का उपकार करूँ।।
मैत्री भाव जगत में मेरा, सब जीवों से नित्य रहे।
दीन-दुखी जीवों पर मेरे, उर से करुणा-स्रोत बहे॥

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा भारती' के पाठ 1 'मेरी भावना' पाठ से ली गई हैं। इस कविता के रचनाकार जुगल किशोर 'युगवीर' हैं।
प्रसंग - उक्त पंक्तियों में कवि ईश्वर से स्वयं के सुंदर मन के भावों के साथ सद् व्यवहार लिए कामना करते हैं।
व्याख्या - कवि कामना करते हुए कहते हैं की हे ईश्वर ! कभी भी मेरे मन में घमण्ड का भावना न आये और न ही मैं किसी भी प्राणी पर क्रोध करूँ। दूसरों की उन्नति और विकास को देखकर मुझे प्रसन्नता हो, कभी भी मेरे मन में उनके लिए जलन के भाव न रहें।
कवि आगे कहते हैं कि हे भगवान ! मैं इच्छा है कि मेरे मन में ऐसी भावना हो कि मैं सबके प्रति सत्यता एवं सरलता का व्यवहार करूँ और जहाँ तक मुझसे सम्भव हो सके तो मैं अपने इस जीवनकाल में दूसरों की भलाई में लगा रहूँ।
कवि आगे कहते हैं ईश्वर आपके बनाये हुए सभी प्राणियों एवं पेड़-पौधों (पादपों) से मेरा व्यवहार साख्यभावयुक्त (मित्रवत्) हो। मेरे हृदय से उन दीन-दुखी एवं परेशान प्राणि-मात्र के लिए दया भावना हो। मैं सदैव ऐसे प्राणियों पर दया करता रहूँ।

[2] दुर्जन-क्रूर-कुमार्गरतों पर, क्षोभ नहीं मुझको आए।
साम्यभाव रक्खूँ मैं उन पर, ऐसी परिणति हो जाए॥
गुणीजनों को देख हृदय में, मेरे प्रेंम उमड़ आए।
बने जहाँ तक उनकी सेवा, करके यह मन सुख पाए।।
होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आए।
गुण ग्रहण का भाव रहे नित, दृष्टि न दोषों पर जाए।।

सन्दर्भ - पूर्वानुसार।
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में कविता के रचनाकार ईश्वर से अपने लिए सद्गुणों एवं अच्छी भावनाओं की कामना करते हैं।
व्याख्या - कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे ईश्वर! मेरे भाव सदैव ऐसे रहे कि मुझे दुष्ट, कठोर और बुरे बर्ताव वाले लोगों के कुव्यवहार पर भी दुःख न हो। मेरे हृदय में उनके प्रति ऐसा परिवर्तन हो जाये कि मैं उनके प्रति समभाव (समानता का भाव) रखने लगूँ।
कवि आगे कहते हैं कि जब मैं गुणवान (सज्जन) लोगों को देखूँ तो उन लोगों के लिए मेरे हृदय में प्रेंमभावना जागृत हो। जितना सम्भव हो सके मैं ऐसे गुणीजनों की तन-मन-धन और कर्म वचन से सेवा कर मन में शान्ति प्राप्त कर सकूँ।
कवि आगे कहते हैं, दूसरों के द्वारा मुझ पर किए गए उपकारों को कभी भी न भूलूँ। मेरे मन में किसी के प्रति कभी भी बैर की भावना उत्पन्न न हो। दूसरों के सद्गुणों (अच्छे कार्य-व्यवहार) को सदैव स्वीकार करता रहूँ। उनके अन्दर के विकारों (दोषों) की ओर मेरा ध्यान कभी भी न जाये।

[3] कोई बुरा कहे या अच्छा, लक्ष्मी आए या जाए।
लाखों वर्षों तक जीऊँ या, मृत्यु आज ही आ जाए।।
अथवा कोई कैसा ही भय, या लालच देने आए।
तो भी न्याय मार्ग से मेरा, कभी न पद डिगने पाए।।
फैले प्रेंम परस्पर जग में, मोह दूर पर रहा करे।
अप्रिय कटक कठोर शब्द नहीं, कोई मुख से कहा करे।।
बनकर सब 'युगवीर' हृदय से, देशोन्नति रत रहा करें।
वस्तु स्वरूप विचार खुशी से, सब दुःख संकट सहा करें।।

सन्दर्भ - पूर्वानुसार।
प्रसंग - उक्त पंक्तियों में कवि ईश्वर से हर परिस्थिति (प्रतिकूल या अनुकूल) में धैर्य धारण करने की शक्ति की प्राप्त करने हेतु प्रार्थना करते हैं।
व्याख्या - कवि कहते हैं कि हे ईश्वर! कोई व्यक्ति मुझे अच्छा कहता हो या बुरा कहता हो। मेरे पास धन-दौलत आए या जाये अर्थात में धनवान बनूँ या गरीब। मैं चाहे लाखों वर्षों तक जीता रहूँ या अभी तत्काल ही मेरी मृत्यु हो जाये। इसके अलावा मुझे कोई कैसा भी लोभ दे अर्थात लालच देने का प्रयत्न करे, तो भी हे मेरे ईश्वर ! मुझे ऐसी शक्ति दीजिए, जिससे कि मैं सदैव ही न्याय के मार्ग पर चलता रहूँ, मेरे कदम पीछे न हटे।
कवि आगे कहते हैं इस संसार के समस्त प्राणियों के बीच प्रेम भाव बढ़ता रहे। लोग मोह-माया (लोभ या लालच) सदैव दूर रहें। कोई भी व्यक्ति अपने मुख से दूसरों के लिए भी अप्रिय, कड़वे अर्थात कठोर वचन न बोले।
कवि ईश्वर से कामना करते हुए आगे कहते हैं कि सभी व्यक्ति अपने मन में दृढ़ संकल्पित होकर इस युग के योद्धा (युगवीर) बन जायें और अपने राष्ट्र की उन्नति में अपना योगदान दें। सभी लोग दुःखों (पीड़ाओं) और संकटों को वस्तुस्वरूप अर्थात आने जाने वाला मानकर उन्हें जीवन का ही एक अंग स्वीकार कर खुशी-खुशी से सहन करना सीख लें।

बोध प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
(क) हमें जीवों के प्रति किस तरह की भावना रखनी चाहिए?
उत्तर - हमें जीवों के प्रति मित्रता एवं दया की भावना रखनी चाहिए।

(ख) 'मेरी भावना' कविता में कवि ने किन-किन पर साम्यभाव रखने की बात कही है?
उत्तर - इस कविता में कवि ने दुष्ट, निर्दयी व कुमार्गरतों (गलत रास्ते पर चलने वालों) के प्रति साम्यभाव रखने की बात कही है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित भाव जिस पंक्ति में आए हों, उस पंक्ति को लिखिए और सुनाइए।
ईर्ष्या, करुणा, लालच, कृतघ्न।
उत्तर - (क) 'ईर्ष्या' - देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईर्ष्या भाव धरूँ।
(ख) 'करुणा' - दीन-दुखी जीवों पर मेरे, उर से करुणा-स्रोत बहे।
(ग) 'लालच' - अथवा कोई कैसा ही भय, या लालच देने आए।
(घ) 'कृतघ्न' - होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरें उर आए।

प्रश्न 4. कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
कविता का सार - प्रारंभ में कविता के नीचे सारांश दिया गया है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1. निम्नलिखित अशुद्ध शब्दों की वर्तनी शुद्ध करके लिखिए।
इष्या, स्त्रोत, दुजर्न, परिणती, द्रष्टी।
उत्तर -
अशुद्ध - शुद्ध
इष्या - ईर्ष्या
स्त्रोत - स्रोत
दुजर्न - दुर्जन
परिणती - परिणति
द्रष्टी - दृष्टि

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों का अर्थ लिखकर अन्तर स्पष्ट कीजिए।
भाव - भव
रात - रत
बैर - बेर
गृह - ग्रह
उत्तर - (क) भाव = मूल्य, कीमत।
भव = संसार, जगत।
दोनों शब्दों में अन्तर - 'भाव' का अर्थ होता है किसी वस्तु का मूल्य या उसकी कीमत, जबकि 'भव' का अर्थ है यह संसार।
(ख) रात = रात्रि।
रत = किसी कार्य में लगा हुआ।
दोनों शब्दों में अन्तर - 'रात' का प्रयोग रात्रि के समय के लिए किया जाता है, जबकि 'रत' का अर्थ होता है किसी कार्य में लगा हुआ।
(ग) बैर = द्रोह या द्वेष।
बेर = एक फल।
दोनों शब्दों में अन्तर - 'बैर' शब्द का प्रयोग द्रोह या द्वेष के लिए किया जाता है, जबकि 'बेर' एक छोटा खाद्य-फल है।
(घ) गृह = निवास स्थान या घर।
ग्रह = आकाशीय पिण्ड जैसे - बुध, शुक्र आदि।
दोनों शब्दों में अन्तर - 'गृह' का अर्थ घर से है, जबकि 'ग्रह' का प्रयोग विशालकाय आकाशीय पिण्डों यथा- पृथ्वी, शनि, बृहस्पति इत्यादि के लिए किया जाता है।

प्रश्न 3. वर्ग पहेली में से नीचे दिए गए शब्दों के विलोम शब्द छाँटकर लिखिए -
उपकार, कुमार्ग, कृतघ्न, जीवन, अन्याय, दुःख।
उत्तर -
शब्द - विलोम शब्द
अपकार - उपकार
सुमार्ग - कुमार्ग
कृतघ्न - कृतज्ञ
जीवन - मृत्यु
अन्याय - न्याय
दुःख - सुख

प्रश्न 4. नीचे लिखे शब्दों को ध्यान से पढ़िए और जिन वर्णों की आवृत्ति हुई है उसे लिखिए।
उत्तर -
सरल, सत्य - 'स'
क्रूर, कुमार्ग - 'क'
गुण, ग्रहण - 'ग'
दीन, दुखी - 'द'
रत, रहा - 'र'

कक्षा 7 हिन्दी के इस 👇 पाठ को भी पढ़े।
1. 'मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है।'

कक्षा 8 हिन्दी के इन 👇 पाठों को भी पढ़ें।
1. पाठ 2 'आत्मविश्वास' अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण)
2. मध्य प्रदेश की संगीत विरासत पाठ के प्रश्नोत्तर एवं भाषा अध्ययन
3. पाठ 8 अपराजिता हिन्दी (भाषा भारती) प्रश्नोत्तर एवं भाषाअध्ययन
4. पाठ–5 'श्री मुफ़्तानन्द जी से मिलिए' अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं भाषा अध्ययन)
5. पाठ 7 'भेड़ाघाट' हिन्दी कक्षा 8 अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण)
6. पाठ 8 'गणितज्ञ ज्योतिषी आर्यभट्ट' हिन्दी कक्षा 8 अभ्यास (प्रश्नोत्तर और व्याकरण)
7. पाठ 10 बिरसा मुण्डा अभ्यास एवं व्याकरण
8. पाठ 11 प्राण जाए पर पेड़ न जाए अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण)
9. पाठ 12 याचक एवं दाता अभ्यास (बोध प्रश्न एवं व्याकरण)

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)
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