पाठ 9 रम्मो और कल्लो - पाठ का सारांश एवं सम्पूर्ण पाठ || अभ्यास- बोध प्रश्न || Path 9 Rammo aur Kallo
पाठ का सारांश
रधिया बाबूजी के घर काम करती थी। उसकी दोनों बेटियाँ रम्मो और कल्लो कभी-कभी उसके साथ बाबूजी के घर काम पर आ जाया करती थीं। वे बाबूजी के घर मन लगाकर काम किया करती थीं। एक दिन बाबूजी के मन में रम्मो और कल्लो के प्रति अपनी पुत्रियों का भान हुआ और उन्होंने रधिया से उन्हें पढ़ाने की बात कही। समझाइश के बाद रधिया और उसका पति कन्हैयालाल मान गए। बाबूजी ने उन्हें पहले घर पर ही दोपहर में पढ़ाया। बाद में उन्हें विद्यालय में दाखिला दिला दिया। वे दोनों बहनें बड़ी होनहार थी। उन्होंने अच्छे अंकों से सारी कक्षाओं को पास कर लिया। आगे की पढ़ाई के लिए बाबूजी ने उनकी मदद करते हुए शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय में प्रवेश दिलवा दिया। उन्होंने अपनी लगन और मेहनत से प्रशिक्षण पूरा कर लिया और उन्हें दीदी (शिक्षिका) की नौकरी भी मिल गई।
एक दिन ऐसा भी आया जब बाबूजी को एक डाक मिली जिसमें रमावती और कलावती (रम्मो और कल्लो) के विवाह का निमंत्रण मिला। बाबूजी परिवार सहित विवाह समारोह में सम्मिलित हुए और उन्हें खूब आशीर्वाद दिया।
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सम्पूर्ण पाठ
रधिया हमारे घर की सफ़ाई करती थी। कभी वह सफ़ाई करने आती तो कभी उसकी दोनों लड़कियों में से कोई एक। एक का नाम था रम्मो और दूसरी का नाम था कल्लो। कभी-कभी वे दोनों साथ भी आ जातीं। वे तीनों सफ़ाई का काम बड़ी लगन से करती थीं। ऐसा लगता था कि वे हमारे घर को अपना घर मानकर सफ़ाई करती हैं। बच्चों में भी उनके प्रति अपनापन था। वे रधिया को आन्टी कहते थे और रम्मो और कल्लो को दीदी।
रम्मो की उम्र चौदह वर्ष थी और कल्लो की बारह वर्ष। पढ़ाई-लिखाई उन्होंने बिल्कुल नहीं की थी बस माँ को काम में सहायता करतीं और अपने घर का काम-काज करतीं।
एक दिन सफ़ाई करने दोनों बहनें आईं। मुझे उनमें अपनी पुत्रियों का भास हुआ। सोचने लगा कि क्या इनका सारा जीवन यों ही व्यतीत होगा ? क्या ये पढ़-लिख नहीं सकतीं?
मैंने रम्मो से पूछा, "रम्मो बिटिया, तुमने पढ़ाई-लिखाई नहीं की ?"
"नहीं बाबूजी, हमारे परिवार में लड़कियों को पढ़ने कोई नहीं भेजता। हाँ, लड़के ज़रूर थोड़ा-बहुत पढ़ लेते हैं।"
"क्या तुम पढ़ना-लिखना चाहोगी? क्या तुम्हारा मन विद्यालय जाने को होता है?"
"होता है, पर क्या करें बाबूजी। अगर हम विद्यालय जाने लगेंगीं तो माँ का काम कौन करेगा ? वैसे, हमारे मोहल्ले में बच्चे दिन भर खेलते रहते हैं, वे पढ़ने नहीं जाते।"
"क्या मैं तुम्हारी माँ से इस बारे में बात करूँ?"
"कर लीजिए, बाबू जी।" दूसरे दिन जब रधिया सफ़ाई करने आई तो मैंने उससे पूछा–
"रधिया, तुमने अपनी लड़कियों को पढ़ाया-लिखाया नहीं?"
"बाबूजी, यदि सब लोग पढ़ने लगेंगे तो आप लोगों के घर का काम कौन करेगा? पढ़ाने-लिखाने से क्या फ़ायदा? काम तो इन्हें यही करना है, बाबूजी।"
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"यही काम करना है। तुम्हारा मतलब गुज़ारे के लिए पैसा कमाना है। सो पढ़-लिखकर पैसा कमाने के लिये ये कुछ और भी काम कर सकेंगी। फिर यह काम करने की क्या ज़रूरत है ?"
"यह बात तो ठीक है, बाबूजी। पर हमें तो इनकी शादी-ब्याह करना है। जब ये पढ़ जाएँगी तो हमारी जाति में इनके लिए पढ़ा-लिखा लड़का कहाँ से मिलेगा ?
"अच्छा, ऐसा करो कि रविवार के दिन काम से निपटकर तुम दोनों मेरे पास आओ तो बैठ कर बातचीत करेंगे।"
अगले रविवार को दोपहर बाद रम्मो और कल्लो को लेकर रधिया मेरे पास आई। वे तीनों साफ़-सुथरे कपड़े पहने हुई थीं। मैं उन्हें एक दम पहचान नहीं पाया। मेरे मुँह से निकल गया–
"अरे! यह रधिया है! देख रधिया, ये लड़कियाँ भी कैसी अच्छी लग रही हैं। कैसी समझदार मालूम होती हैं।" कुछ मिनट बाद मेरी बेटी चाय और बिस्कुट लेकर आ गई।
फिर, उसने, रम्मो, कल्लो और मैंने साथ-साथ चाय पी और बिस्कुट खाए।
अब रधिया का मन थोड़ा आश्वस्त हुआ। मैंने रधिया से बातचीत प्रारंभ की।
"रधिया, तुम इन लड़कियों को विद्यालय क्यों नहीं भेजती हो?"
"क्या करेंगी ये विद्यालय जाकर, मुझे इनके विद्यालय जाने से काम की कठिनाई होगी। मैं आधा काम कर पाऊँगी। मेरी आमदनी आधी रह जाएगी और मेरे घर भी छूट जाएँगे। फिर, इतनी बड़ी लड़कियों को विद्यालय में जगह कौन देगा ? इनके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है।"
“रधिया, तुम्हारी दोनों कठिनाइयाँ दूर हो जाएँगी। अभी वर्ष भर इन्हें मैं पढ़ाऊँगा। ये काम करके दोपहर के बाद मेरे पास आ जाया करेंगीं। ये मेरी बेटियों की तरह हैं। जैसे तुम हमारे घर की सफ़ाई मन लगाकर करती हो, वैसे मैं इन्हें पढ़ाऊँगा और तुमसे कुछ नहीं लूँगा। इनकी किताबों और कापियों पर जो खर्च होगा वह मैं करूंगा। सुबह को ये तुम्हारे साथ काम करेंगी और दोपहर बाद मेरे पास पढ़ने आएँगी।"
रधिया में आत्मविश्वास आया। रम्मो और कल्लो में अच्छी तरह जीवन-यापन की इच्छा ने जन्म लिया। रधिया ने अपने पति से अनुमति लेकर रम्मो और कल्लो को पढ़ने के लिये मेरे पास भेजना प्रारंभ कर दिया। सुबह को वे माँ के काम में सहायता करतीं और दोपहर बाद मेरे पास पढ़ने आतीं। मैंने उन्हें समझाया तुम उन बच्चों से अच्छे हो जो केवल पढ़ते हैं और माता-पिता के काम में सहायता नहीं करते। जिस लगन से तुम घरों की सफाई करती हो वैसी ही लगन से अपनी पढ़ाई करो।
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वे दोनों मेरे पास वर्ष भर पढ़ने आती रहीं। उन्होंने बहुत लगन से पढ़ाई की और एक ही वर्ष में कक्षा आठ के स्तर तक पहुँच गई। मैंने उनसे कक्षा आठ की परीक्षा दिलवाई। दोनों परीक्षा में उत्तीर्ण हो गईं। रम्मो ने प्रथम श्रेणी के अंक प्राप्त किए और कल्लो द्वितीय श्रेणी के अंकों से उत्तीर्ण हुई।
अब उनकी पढ़ाई करने की इच्छा और तीव्र हो गई। उन्होंने उसी विद्यालय में कक्षा नौ में प्रवेश लिया। रम्मो को सौ रूपये महीने की छात्रवृत्रि भी मिल गई। सौ रूपये मासिक पर रधिया ने अपनी एक सहायक रख ली और रम्मो और कल्लो को नियमित रूप में विद्यालय भेजना प्रारम्भ कर दिया। रम्मो और कल्लो ने उसी विद्यालय में पढ़कर अगले वर्ष बोर्ड की कक्षा दस की परीक्षा पास कर ली – रम्मो ने प्रथम श्रेणी में और कल्लो ने द्वितीय श्रेणी में, पर कल्लो ने रम्मो से खेल में बाजी मार ली थी। विद्यालय की अध्यापिकाएँ उन्हें प्यार करती थीं। बहुत सी लड़कियाँ उनकी सहेलियाँ बन गई थीं। तीज-त्यौहार पर वे एक दूसरे के घर भी आती-जाती थीं।
रधिया और उसके पति कन्हैया पुत्रियों के उत्तीर्ण होने पर खुशी से फूले नहीं समाए। वे सब मिठाई लेकर आए और दोनों परिवारों ने साथ-साथ मिठाई खाई। कन्हैया ने मेरे पैर छुए और बोला -'बाबू जी, ये लड़कियाँ आपकी हैं। अब बताइए, इन्हें आगे क्या कराना है?"
मैंने उन्हें रम्मो और कल्लो को अध्यापिका बनाने की सलाह दी। वे मान गए। समय आने पर मैंने रम्मो और कल्लो के प्रार्थना पत्र शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय में दिलवा दिए। थोड़ा-सा प्रयास करना पड़ा, पर दोनों को वहाँ प्रवेश मिल गया, रम्मो को परीक्षाफल के आधार पर और कल्लो को परीक्षाफल और खेलों के प्रमाण-पत्रों के आधार पर। यह प्रशिक्षण दो वर्ष का था। वे उसमें इतनी व्यस्त हो गईं कि उसके बाद उनसे मेरी भेंट नहीं हुई। यदा-कदा रधिया से उनके बारे में पूछ लेता था। रधिया यही कहती-"बाबूजी, आपने उनका जीवन ही बदल दिया। अब इनकी शादी आप ही करना।" मैं उसे तसल्ली देता रहता और कहता– "रधिया, तुमने उनका जीवन बदला है, मैंने नहीं।"
रम्मो और कल्लो ने प्रशिक्षण समाप्त कर लिया। उन्हें नौकरी भी जल्दी मिल गई और वे दीदी बन गई।
एक दिन शाम को जब मैंने अपनी डाक देखी तो उसमें रमावती और कलावती के विवाह का निमंत्रण प्राप्त हुआ। यह निमत्रंण राधिका रानी और कन्हैयालाल की ओर से था। मुझे यह समझते देर नहीं लगी कि रमावती और कलावती हमारी रम्मो और कल्लो हैं और राधिका रानी हमारी रधिया है। मैंने सपरिवार रम्मो और कल्लो के विवाह में भाग लिया और जी भर कर उन्हें आशीर्वाद दिया।
लेखक
डॉ. कृष्णगोपाल रस्तोगी
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लेखक परिचय – डॉ. कृष्णगोपाल रस्तोगी
डॉ. कृष्णगोपाल रस्तोगी का जन्म 01 जुलाई 1928 बदायूँ (उ.प्र.) में हुआ। आपने भाषा विज्ञान, मनोभाषा विज्ञान, हिन्दी व्याकरण आदि विषयों पर शोधपरक कार्य किया है, आपके अनेक कहानी संग्रह तथा अनेक शोध प्रपत्र तथा लेख प्रकाशित हो चुके हैं। हिन्दी व्याकरण पर अनेक पुस्तकों का प्रणयन आपने किया है आपका हिन्दी के अलावा अंग्रेजी व तमिल भाषा पर भी समान अधिकार है।
अभ्यास
बोध प्रश्न
1. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए–
फायदा = लाभ।
निरादर = अपमान, बेईज्ज़ती।
आश्वस्त = विश्वास में लेना।
गुजारे = व्यतीत किए।
स्तंभित = आश्चर्य चकित।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
(क) रधिया की लड़कियों के क्या नाम हैं?
उत्तर – रधिया की लड़कियों के नाम रम्मो और कल्लो हैं।
(ख) रम्मो और कल्लो ने पढ़ाई-लिखाई क्यों नहीं की थी ?
उत्तर – रम्मो और कल्लो ने अपनी माँ के काम में हाथ बँटाने और उनके परिवार में लड़कियों को पढ़ाने का रिवाज न होने के कारण पढ़ाई-लिखाई नहीं की थी।
(ग) बाबूजी दोनों बहनों को क्यों पढ़ाना चाहते थे ?
उत्तर – बाबूजी को उन दोनों बहनों में अपनी पुत्रियों का आभास हुआ और उन्होंने सोचा क्या इनका जीवन यूँ ही बीत जाएगा? इसीलिए उनका जीवन सुधारने के लिए वे उन्हें पढ़ाना चाहते थे।
(घ) रधिया लड़कियों को क्यों नहीं पढ़ाना चाहती थी?
उत्तर – रधिया के परिवार में लड़कियों को पढ़ाने का रिवाज नहीं था। इसके अलावा वह अपने काम में सहायता और अधिक आमदनी के लिए लड़कियों को नहीं पढ़ाना चाहती थी।
(ङ) बाबू जी ने लड़कियों को पढ़ाने-लिखाने में किस प्रकार सहायता की?
उत्तर – बाबूजी ने लड़कियों को पढ़ाने के लिए दोपहर के समय को चुना और प्रति दिवस फुर्सत के समय उन्हें पढ़ाते हुए आठवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कराई। बाद में उनका प्रवेश विद्यालयों में कराकर उनकी पढ़ाई पूरी कराने में सहायता की।
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(च) रम्मो और कल्लो को शिक्षक प्रशिक्षण संस्था में किस आधार पर प्रवेश मिला?
उत्तर – शिक्षक प्रशिक्षण संस्था में रम्मो को परीक्षाफल के आधार पर और कल्लो को परीक्षाफल और खेलों के प्रमाण-पत्रों के आधार पर प्रवेश मिला।
(छ) पढ़ाई करते हुए भी हम घर के कामों में किस प्रकार मदद कर सकते है ?
उत्तर – पढ़ाई करते हुए भी हम घर के छोटे-छोटे कामों जैसे– पानी पिलाना, दुकान से सामान खरीद कर लाना, पानी भरना, पशुओं को चारा डालना आदि कामों में मदद कर सकते हैं।
(ज) बाबूजी ने दोनों लड़कियों का जीवन किस प्रकार बदल दिया?
उत्तर – बाबूजी ने दोनों लड़कियों को घर पर पढ़ाकर बाद में विद्यालय में दाखिला दिलवाया और उनकी पढ़ाई पूरी करवाई। इसके पश्चात शिक्षक प्रशिक्षण संस्था में प्रवेश दिलवाकर उनके दो साल का कोर्स पूरा करवाया, जिससे में बाद में दीदी (शिक्षिका) बन पाई। इस तरह से बाबू जी ने उनके जीवन को बदल दिया।
3. निम्नलिखित कथन किसने किससे कहें हैं?
(अ) 'क्या तुम पढ़ना-लिखना चाहोगी?"
– बाबूजी ने रधिया से कहा।
(ब) "पढ़ाने-लिखाने से क्या फायदा ? काम तो इन्हें यही करना है ?"
– रधिया ने बाबूजी से।
4. निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए–
(क) बच्चों में भी उनके प्रति अपनापन था।
(ख) पढ़-लिखकर रम्मो का नाम रमावती और कल्लो का नाम कलावती हो गया।
(ग) "रधिया तुम इन लड़कियों को स्कूल क्यों नहीं भेजती हो ?"
(घ) दोनों परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई।
इस पाठ के भाषा अध्ययन (व्याकरण) के लिए नीचे की लिंक पर क्लिक करें।
पाठ 9 'रम्मो और कल्लो' भाषा भारती कक्षा- 5 भाषा अध्ययन (व्याकरण), अकर्मक एवं सकर्मक क्रिया
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3. छंद किसे कहते हैं? मात्रिक - छप्पय एवं वार्णिक छंद - कवित्त, सवैया
4. काव्य गुण - ओज-गुण, प्रसाद-गुण, माधुर्य-गुण
5. अलंकार – ब्याज-स्तुति, ब्याज-निन्दा, विशेषोक्ति, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण, यमक, श्लेष
6. रस के अंग – स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव, संचारी भाव
7. रसों का वर्णन - वीर, भयानक, अद्भुत, शांत, करुण
8. काव्य के भेद- श्रव्य काव्य, दृश्य काव्य, प्रबंध काव्य, मुक्तक काव्य, पाठ्य मुक्तक, गेय मुक्तक, नाटक, एकांकी
आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
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