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सूर्यनमस्कार- क्रियाविधि, श्वास, मंत्र, चित्र एवं लाभ | Suryanamaskar- Methodology, Breathing, Mantra, Pictures and Benefits.


सूर्यनमस्कार- क्रियाविधि, श्वास, मंत्र, चित्र एवं लाभ | Suryanamaskar- Methodology, Breathing, Mantra, Pictures and Benefits.

उप शीर्षक:
यहाँ 'सूर्य नमस्कार' की समस्त स्तिथियाँ, उनकी क्रियाविधि, श्वास की स्थिति, मंत्रोच्चार, चित्र एवं उसके लाभ बताए गए हैं।

कार्यालय, योग विभागाध्यक्ष शासकीय योग प्रशिक्षण- मध्यप्रदेश (भोपाल) के द्वारा जारी 'सूर्य नमस्कार' की समस्त स्तिथियाँ, उनकी क्रियाविधि, श्वास की स्थिति, मंत्रोच्चार, चित्र एवं उसके लाभ बताए गए हैं, जिन्हें यहाँ पर क्रमशः प्रस्तुत किया जा रहा है।

टीप (Note) - सूर्य नमस्कार की सभी स्थितियों एवं चित्र के लिए अंत में डाउनलोड ऑप्शन से PPT डाउनलोड करें ।

स्थिति क्रमांक -1 प्रार्थना की मुद्रा –

(i) क्रिया विधि - प्रार्थना की मुद्रा में एड़ी, पंजे मिलाकर सीधे खड़े हो। हाथों को सीने पर स्थापित करें।
(ii) श्वास - सामान्य
(iii) मंत्र - "ऊँ मित्राय नमः" का मानसिक जाप करें।
(iv) लाभ - एकाग्रता आती है एवं मन शांत होता है।

स्थिति क्रमांक 2 - हस्त उत्तानासन

(i) क्रिया विधि - श्वास अंदर भर कर सामने से हाथों को खोलते हुए सिर के ऊपर ले जावे। सिर तथा ऊपरी धड़ को पीछे की ओर झुकाए एवं आकाश की ओर देखें तथा कमर पीछे की ओर झुकाए।
(ii) श्वास - भरते हुए।
(iii) मंत्र - "ऊँ रवये नमः" का मानसिक जाप करें।
(iv) लाभ - पाचन ठीक रहता है। भुजाओं एवं कंधों का व्यायाम होता है।

स्थिति क्रमांक 3 - पादहस्तासन

(i) क्रियाविधि - श्वास छोड़कर, सामने की ओर झुकते जावें दोनों हथेलियों पंजों के अगल-बगल जमीन पर टिकाए। सिर को घुटने से लगावें।
(ii) श्वास - छोड़ते हुए
(iii) मंत्र - "ऊँ सूर्याय नमः" का मानसिक जाप करें।
(iv) लाभ - शरीर को लचीला बनाता है। आमाशय की चर्बी को कम करता है। कब्ज को दूर करने में सहायक है।

स्थिति क्रमांक 4 - अश्वसंचालनासन (विरासन)

(i) क्रिया विधि - बाएँ पैर को अधिकतम पीछे की ओर ले जावें। दायाँ पैर दोनों हाथों के बीच में रखें। बाएँ पैर का घुटना भूमि पर टिकाए तथा दाएँ पैर के घुटने को सीने के सामने रखें तथा एड़ी एवं पंजे जमीन पर एवं दृष्टि आकाश की ओर रखें।
(ii) श्वास - भरते हुए
(iii) मंत्र - "ऊँ भानवे नमः" का मानसिक जाप करें।
(iv) लाभ - आमाशय के अंगों की मालिश कर उसकी कार्यप्रणाली को सुधारता है तथा पैरों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है।

स्थिति क्रमांक 5 - पर्वतासन

(i) क्रियाविधि - श्वास बाहर छोड़कर दाएँ पैर को ऊपर उठाते हुए बाएँ पैर के पास ले जाएंगे। गर्दन एवं सिर दोनों हाथों के मध्य में रहेंगे। नितंब एवं कमर ऊपर उठाकर सिर को झुकाते हुए नाभि को देखें।
(ii) श्वास - छोड़ते हुए।
(iii) मंत्र - "ऊँ खगाय नमः" का मानसिक जाप करें।
(iv) लाभ - हाथों एवं पैरों की मांसपेशियों तथा तंत्रिका को शक्ति देता है। शरीर को लचीला बनाता है।

स्थिति क्रमांक 6 - अष्टांग नमस्कार

(i) क्रियाविधि- हाथों एवं पैरों के पंजों को भूमि पर इस प्रकार झुकायें की दोनों हाथ दोनों पैरों की अंगुलियाँ, दोनों घुटने, छाती तथा ठुड्डी को जमीन को स्पर्श करें। नितंब एवं पेट जमीन से ऊपर रहे।
(ii) श्वास - भरते हुए एवं बाद में सामान्य कर लें।
(iii) मंत्र - "ऊँ पूष्णे नमः" का मानसिक जाप करें।
(iv) लाभ - पैरों एवं भुजाओं की मांस पेशियों को शक्ति देता है। सीने को विकसित करता है।

स्थिति क्रमांक 7 - भुजंगासन

(i) क्रिया विधि - श्वास अंदर भरकर छाती को ऊपर उठाते हुए, कमर से पीछे की ओर झुकते हुए आकाश की ओर देखें। कमर भूमि पर टिकी हो और हाथ एवं पैर सीधे हो।
(ii) श्वास - भरते हुए।
(iii) मंत्र - "ऊँ हिरण्यगर्भाय नमः" मंत्र का मानसिक जाप करें।
(iv) लाभ - बदहजमी एवं कब्ज सहित पेट के सभी रोगों में लाभदायक है। रीढ़ तथा उसकी मांस पेशियों को लचीला बनाती है।

स्थिति क्रमांक 8 - पर्वतासन

(i) क्रिया विधि - नितंब एवं कमर ऊपर उठाकर स्थिति क्र.5 की तरह आकृति बनाकर नाभि को देखेंगे।
(ii) श्वास - छोड़ते हुए।
(iii) मंत्र - "ओम मरीचये नमः" का मानसिक जाप करें। (iv) लाभ - हाथों एवं पैरों की मांसपेशियों तथा तंत्रिकाओं को शक्ति देता है। रीढ़ को लचीला बनाता है।

स्थिति क्रमांक 9 - अश्व संचालनासन (वीरासन)

(i) क्रियाविधि - बाएँ पैर को दोनों हाथों के बीच में लाएँ तथा दाएँ पैर का घुटना जमीन से टिकाएँ। शेष आकृति स्थिति क्रमांक 4 की तरह होगी।
(ii) श्वास - भरते हुए
(iii) मंत्र - "ऊँ आदित्याय नमः" का मानसिक जाप करें।
(iv) लाभ - आमाशय के अंगों की मालिश कर उसकी कार्यप्रणाली को सुधारता है तथा पैरों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है।

स्थिति क्रमांक 10 - पादहस्तासन

(i) क्रियाविधि - दाएँ पैर को बाएँ पैर के पास, दोनों हाथों के बीच में लाएँ तथा सिर को घुटने से लगाएँ। स्थिति क्रमांक 3 की तरह।
(ii) श्वास - छोड़ते हुए।
(iii) मंत्र - "ऊँ सवित्रे नमः" का मानसिक जाप करें।
(iv) लाभ - रीढ़ को लचीला बनाता है। आमाशय की चर्बी को कम करता है। कब्ज को दूर करने में सहायक है।

स्थिति क्रमांक 11- हस्त उत्तानासन

(i) क्रिया विधि - कमर से सीधा होते हुए दोनों हाथों को ऊपर ले जाकर कमर से ऊपर के हिस्से को पीछे झुकाए। स्थिति क्रमांक 2 की तरह।
(ii) श्वास - भरते हुए।
(iii) मंत्र - "ऊँ अर्काय नमः" का मानसिक जाप करें।
(iv) लाभ - पाचन ठीक रहता है। भुजाओं एवं कंधों का व्यायाम होता है।

स्थिति क्रमांक 12 - प्रार्थना की मुद्रा

(i) किया विधि - दोनों हाथों को सीने के सामने लाकर प्रार्थना की मुद्रा बनाएं। स्थिति क्रमांक 1 की तरह।
(ii) श्वास - सामान्य
(iii) मंत्र - "ऊँ भास्कराय नमः" का मंत्र जाप करें।
(iv) लाभ - एकाग्रता आती है एवं मन शांत होता है।

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infosrf.com

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पाठकों की टिप्पणियाॅं (1)

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    (Teacher)

    Bahut achchhi jankari hai ji

    Reply

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