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पाठ 16— श्रम की महिमा सम्पूर्ण कविता एवं व्याख्या | कक्षा 6 हिन्दी विशिष्ट पद्यांशों की संदर्भ व सप्रसंग व्याख्या, प्रश्नोत्तर व भाषा अध्ययन (व्याकरण) | Path 15 Shram ki Mahima

केन्द्रीय भाव— जीवन में केवल दो प्रकार के व्यक्ति असफल होते हैं। एक वे जो केवल सोचते हैं करते नहीं है। और दूसरे वे जो करते हैं किंतु सोचते नहीं है सफल केवल वही होते हैं जो सोच समझकर काम करते हैं गाँधी जी की सफलता का यही मंत्र है। गाँधीजी आत्म निर्भर थे। सेवा को ही ईश्वर मानते थे। ऐसा इसलिये कि सेवा से मनुष्य का स्वभाव निर्मल बनता है।
वे काम को पूजा भाव से करते थे, फिर चाहे सूत कातना हो या अनाज से कंकड बीनना। वस्तुतः कोई काम तुच्छ नहीं होता; यही सन्देश कवि ने प्रस्तुत कविता में दिया है।

संपूर्ण पाठ परिचय

तुम कागज पर लिखते हो
वह सड़क झाड़ता है
तुम व्यापारी
वह धरती में बीज गाड़ता है।
एक आदमी घड़ी बनाता
एक बनाता चप्पल
इसीलिए यह बड़ा और वह छोटा
इसमें क्या बल।
सूत कातते थे गाँधी जी
कपड़ा बुनते थे,
और कपास जुलाहों के जैसा ही
धुनते थे
चुनते थे अनाज के कंकर
चक्की घिसते थे
आश्रम के अनाज याने
आश्रम में पिसते थे
जिल्द बाँध लेना पुस्तक की
उनको आता था
हर काम सफाई से
नित करना भाता था।

ऐसे थे गाँधी जी
ऐसा था उनका आश्रम
गाँधी जी के लेखे
पूजा के समान था श्रम।
एक बार उत्साह-ग्रस्त
कोई वकील साहब
जब पहुँचे मिलने
बापूजी पीस रहे थे तब।
बापूजी ने कहा-बैठिए
पीसेंगे मिलकर
जब वे झिझके
गाँधीजी ने कहा
और खिलकर
सेवा का हर काम
हमारा ईश्वर है भाई
बैठ गये वे दबसट में
पर अक्ल नहीं आई।

भवानी प्रसाद मिश्र— इनका जन्म 1913 में होशंगाबाद जिले के टिगरिया नामक गाँव में हुआ था। ये गांधीजी के विचारों से पूरी तरह प्रभावित थे। इनकी अधिकांश कविताएँ बोलचाल की व्यावहारिक भाषा में हैं। सरलता और स्वाभाविकता के साथ-साथ माधुर्य आपकी भाषा का विशिष्ट गुण है। ' गीत फरोश', ' अंधेरी कविताएँ', 'गाँधी पंचशती', 'बुनी हुई रस्सी' आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।

सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या

पद्यांश(1) तुम कागज पर लिखते हो
वह सड़क झाड़ता है
तुम व्यापारी
वह धरती में बीज गाड़ता है।
एक आदमी घड़ी बनाता
एक बनाता चप्पल
इसीलिए यह बड़ा और वह छोटा
इसमें क्या बल।

शब्दार्थ— बीज गाड़ता = बीज बोता है।
बल = महत्वपूर्ण बात।

सन्दर्भ— प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा- भारती' के 'श्रम की महिमा' शीर्षक कविता से अवतरित हैं। इस कविता के रचयिता कवि 'भवानी प्रसाद मिश्र' हैं।
प्रसंग— काम कोई भी हो, उससे कोई ऊँचा नीचा, छोटा या बड़ा नहीं होता है।

व्याख्या— कवि कहता है कि एक तुम हो, कागज पर लिखते हो और एक वह जो सड़क की सफाई करता है। तुम व्यापार करने वाले हो सकते हो या वह व्यक्ति जो खेतों में बीज बोता है, इसलिए वह किसान है। एक वह व्यक्ति जो घड़ी बनाता है या उसकी मरम्मत करता है, साथ ही वह व्यक्ति जो चप्पल बनाता या उनकी मरम्मत करता है। इस आधार पर कोई छोटा या बड़ा हो सकता है क्या ? अर्थात् नहीं। इस बात में कोई बल नहीं है, अर्थात् यह बात महत्वपूर्ण नहीं है।

पद्यांश (2) सूत कातते थे गांधी जी
कपड़ा बुनते थे,
और कपास जुलाहों के जैसा ही
धुनते थे
चुनते थे अनाज के कंकर
चक्की घिसते थे
आश्रम के कागज याने
आश्रम में पिसते थे
जिल्द बाँध लेना पुस्तक की
उनको आता था
हर काम सफाई से
नित करना भाता था।

शब्दार्थ— चक्की घिसते थे= चक्की चला कर दाना पीसते थे, आटा बनाते थे।
नित = रोजाना।
भाता था =अच्छा लगता था।

सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— महात्मा गाँधी अपने आश्रम में अपने सारे काम अपने हाथ से करते थे।

व्याख्या— गाँधीजी अपने आश्रम में रहते हुए, सूत कातते थे। उससे कपड़ा बुनते थे। साथ ही जुलाहों से भी बढ़िया ढंग से कपास धुनते थे। अनाज में से कंकड़ आदि चुनकर अलग करते और अनाज को साफ करके, अपने आप ही चक्की से आटा बनाते थे। वे पुस्तकों की जिल्द भी बनाना जानते थे। उन्हें प्रत्येक काम सफाई से करना प्रतिदिन ही अच्छा लगता था। कहने का तात्पर्य यह है कि महात्मा गाँधी अपने काम करने के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं रहते थे।

पद्यांश (3) ऐसे थे गाँधी जी ऐसा था उनका आश्रम
गांधी जी के लेखे
पूजा के समान था श्रम।
एक बार उत्साह-ग्रस्त
कोई वकील साहब
जब पहुँचे मिलने
बापूजी पीस रहे थे तब।

शब्दार्थ— लेखे = अनुसार। श्रम = काम करना।
पीस रहें थे = चक्की चलाकर अनाज से आटा बना रहे थे।

सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— गांधीजी श्रम को ही ईश्वर की पूजा मानते

व्याख्या— गांधीजी और उनका आश्रम ऐसा था जिसमें वे परिश्रम को ही ईश्वर की पूजा मानते थे। एक बार कोई वकील साहब उनके पास आश्रम में पहुँचे। वकील साहब बहुत ही उत्साहित थे। जिस समय वे आश्रम में पहुँचे। तब महात्मा गाँधी अनाज को चक्की से पीसकर आटा बना रहे थे।

गद्यांश (4) बापूजी ने कहा-बैठिए
पीसेंगे मिलकर
जब वे झिझके
गांधीजी ने कहा
और खिलकर
सेवा का हर काम
हमारा ईश्वर है भाई
बैठ गये वे दबसट में
पर अक्ल नहीं आई।

शब्दार्थ— झिझके = शर्मिन्दा हुए।
दबसट में = समीप ही।

सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— गाँधीजी ने उन वकील साहब से हँसकर कहा कि भाई आओ, दोनों ही मिलकर चक्की से आटा बनाते हैं।

व्याख्या— वकील साहब उत्साहपूर्वक जोश से भरे हुए,बापूजी से मिलने आश्रम में पहुँचे। तब गाँधीजी ने उनसे कहा, आइए, बैठिए। हम दोनों ही मिलकर अनाज पीसेंगे और आटा तैयार करेंगे। इस पर वकील साहब कुछ झिझकने लगे अर्थात् उन्हें चक्की पीसना एक घृणित-सा काम लगा। इस पर गाँधीजी ने खिलखिलाकर ठहाका भरते हुए (जोर से हँसते हुए) कहा कि हे भाई ! सेवा में कोई भी किया गया हमारा काम, ईश्वर ही होता है। इसे सुनते ही वह वकील महोदय भी समीप बैठ गए लेकिन गाँधीजी द्वारा कही गई बात समझ नहीं सके। उनकी बुद्धि ने काम नहीं किया अर्थात् गाँधीजी के कहे हुए शब्दों के अर्थ को वे समझ नहीं सके।

अभ्यास

प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए—
(क) धरती में बीज बोता है—
(i) लोहार
(ii) किसान
(ⅲ) जमीदार
(iv) सफाईकर्मी।
उत्तर—(ii) किसान

(ख) सूत कातकर कपड़ा बुनता है—
(i) बढ़ई
(ii) कुम्हार
(iii) जुलाहा
(iv) व्यापारी
उत्तर—(i) बुनकर

(ग) बापूजी से मिलने पहुँचे—
(i) शिक्षक
(ii) वकील
(iii) डॉक्टर
(iv) मुखिया।
उत्तर—(ii) वकील

(घ) बापूजी पूजा के समान मानते थे—
(i) भाषण देना
(ii) श्रम करना
(iii) लेख लिखना
(iv) घूमना
उत्तर—(ii) श्रम करना।

प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—
(क) किसान धरती में बीज गाड़ता है।
(ख) गाँधीजी अनाज से कंकड चुनते थे।
(ग) गाँधीजी को काम सफाईसे करना भाता था।
(घ) गाँधीजी कपास जुलाहो के जैसा ही धुनते थे।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए—
(क) "इसलिए यह बड़ा और वह छोटा" पंक्ति से कवि का क्या आशय है?
उत्तर— कवि का इस पंक्ति से आशय यह है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी काम को करने से छोटा या बड़ा नहीं होता है।

(ख) आश्रम के कार्य गाँधीजी स्वयं क्यों करते थे?
उत्तर— गाँधीजी आश्रम के कार्य स्वयं ही करते थे क्योंकि उनके लिए श्रम करना (कार्य करना) ही ईश्वर की पूजा करने के समान था। गाँधीजी की यही विचारधारा थी, यही उनका दर्शन था।

(ग) 'ऐसे थे गाँधीजी' सम्बोधन में कवि का संकेत क्या है ?
उत्तर—'ऐसे थे गाँधीजी' सम्बोधन में कवि का संकेत इस बात की ओर है कि श्रम को ही गाँधी ईश्वर मानते थे। कर्म करना ईश्वर की पूजा करना है। वे आश्रम के हर कार्य को चाहे सूत कातना हो, अनाज से कंकड़ अलग करना हो, कपास धुनना हो, चक्की पीसना हो, कपड़ा बुनना हो-स्वयं किया करते थे।

(घ) गाँधीजी ने सेवा के काम को ईश्वरीय कार्य क्यों माना है ?
उत्तर— काम करने के पीछे जो भावना है, वह सेवा की है. सेवा किसी भी जीव की क्यों न हो, वह तो सेवा का कार्य। सेवा में समर्पण, त्याग और निष्ठा का भाव होता है। इसलिए सेवा का कार्य ईश्वरीय माना गया।

(ङ) इस कविता से आपको क्या सीख मिलती है?
उत्तर— इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने सभी कार्य अपने हाथ से करने चाहिए। काम करने से कोई भी व्यक्ति नीचा-ऊँचा अथवा बड़ा या छोटा नहीं होता है। काम करने के पीछे सेवा की भावना होती है। सेवा का कार्य ही ईश्वर की पूजा है।

(च) गाँधीजी छोटे से छोटे कार्य को भी महत्व क्यों देते थे?
उत्तर— छोटे से भी छोटा कार्य भी महत्वपूर्ण होता है। इस कार्य के करने के पीछे सेवा की भावना होती है। उस सेवा में ईश्वर की सेवा छिपी है। इसलिए गाँधीजी छोटे से छोटे कार्य को भी महत्व देते थे। प्रत्येक छोटे कार्य से ही बड़े कार्य को करने का मार्ग खुलता है। काम करने की भावना पुष्ट होती है।

प्रश्न 4. निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए—
(क) 'सेवा का हर काम, हमारा ईश्वर है भाई।'
उत्तर- (भाव)— सेवा में कोई भी किया गया हमारा काम, ईश्वर ही होता है।
(ख) 'एक आदमी घड़ी बनाता, एक बनाता चप्पल।'
इसीलिए यह बड़ा, और वह छोटा, इसमें क्या बल।'
उत्तर- (भाव)— एक वह व्यक्ति जो घड़ी बनाता है या उसकी मरम्मत करता है, साथ ही वह व्यक्ति जो चप्पल बनाता या उनकी मरम्मत करता है। इस आधार पर कोई छोटा या बड़ा हो सकता है क्या? अर्थात् नहीं। इस बात में कोई बल नहीं है, अर्थात् यह बात महत्वपूर्ण नहीं है।
(ग) "ऐसे थे गाँधीजी, ऐसा था उनका आश्रम, गाँधीजी के लेखे पूजा के समान था श्रम।'
उत्तर(भाव)— गाँधीजी और उनका आश्रम ऐसा था जिसमें वे परिश्रम को ही ईश्वर की पूजा मानते थे।

भाषा की बात

प्रश्न 1 निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए—
सड़क, घड़ी, आश्रम, ईश्वर। उत्तर— अपने अध्यापक महोदय की सहायता से शुद्ध उच्चारण करना सीखिए और अभ्यास कीजिए।

2 निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी शुद्ध कीजिए—
(i) पूस्तक, (ii) जूलाहो, (iii) इश्वर, (iv) ऊतसाह।
उत्तर— (i) पुस्तक
(ii) जुलाहों
(iii) ईश्वर
(iv) उत्साह।।

प्रश्न 3. (अ) स्तम्भ में तद्भव और (ब) स्तम्भ में उनके तत्सम शब्द दिए गए हैं, उन्हें सम्बन्धित शब्द से जोड़िए—
'अ'——————'ब'
(क) दूध———————दुग्ध
(ख) घर ——————गृह
(ग) सूरज——————सूर्य
(घ) मुँह———————मुख
(ङ) दाँत———————दंत
(च) आग——————अग्नि।

प्रश्न 4 स्तम्भ 'क' में दिए गए मुहावरों को स्तम्भ 'ख' के गलत क्रम में रखे उनके अर्थ से सही क्रम में मिलाइए—
उत्तर— 'क —————————'ख'
(अ) चक्की पीसना———————(iv) कड़ी मेहनत करना
(ब) कागज काले करना—————(iii) व्यर्थ प्रयास करना
(स) अक्ल ठिकाने आना——-——(ii) बात समझ आना
(द) हाथ बढ़ाना ————————(i) मदद के लिए आगे आना।

प्रश्न 5. दी गई वर्ग पहेली में गांधीजी के जीवन से जुड़े पाँच वस्तुएँ हैं उन्हें छाँटकार अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए—
उत्तर—(1) चश्मा, (2) लाठी, (3) खादी की धोती, (4) घड़ी (5) चरखा।

प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए—
उत्तर—(i) व्यापारी— व्यापारी देश-विदेश को माल भेजते हैं और मँगाते हैं।
(ii) कपड़ा— जुलाहे कपड़ा बुनते हैं।
(iii) आदमी— आदमी अपना काम स्वयं करता है।
(iv) चक्की— चक्की से अनाज पीसा जाता है।

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3. हड़प्पा सभ्यता कक्षा 6 सामाजिक विज्ञान

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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