
एक शिक्षक के अनुभव की बात—विद्यालय के प्रति अपने बच्चे का भय दूर कैसे करें? || How to overcome your child's fear of school?
अक्सर छोटे बच्चे जिनका नाम विद्यालय में दर्ज कराना हो, उनमें विद्यालय के प्रति भय होता है। इस डर को कैसे दूर किया जाए?
स्वाभाविक रूप से भी देखा जाए तो औसतन बच्चे नए वातावरण से भयभीत रहते हैं। जब कोई बच्चा किसी नए माहौल में जाता है तो अपने आप को समायोजित नहीं कर पाता। इसके अलावा कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि कुछ बच्चे विद्यालय में दर्ज तो होते हैं किंतु उन्हें विद्यालय का भय बना रहता है। ऐसे बच्चे अक्सर विद्यालय जाने के लिए कतराते हैं, रोते हैं या मन से जाना नहीं चाहते हैं। ऐसी स्थिति में क्या किया जाए?
कारण का पता लगाना ― कोई भी बच्चा यदि विद्यालय जाने से कतराता है या उसके मन में भय बैठ गया है, तो इसके कारण का पता लगाना अभिभावक या शिक्षक का परम दायित्व हो जाता है क्योंकि बिना पता लगाए समाधान कर पाना संभव नहीं है। विद्यालय के प्रति बच्चे के मन में भय बैठ जाने के कुछ कारण हो सकते हैं ―
(क) ऐसे बच्चे जिनका नाम दर्ज कराना है के मन में भय के कारण –
(i) स्वयं या अन्य किसी के द्वारा शिक्षक का डर बताना– अक्सर ही यह देखने में आता है समाज की पुरानी परंपराओं एवं विद्यालय में अध्यापन की गुरु-शिष्य परम्परा के आधार पर माता-पिता या परिवार के अन्य लोगों द्वारा बच्चों का हट या जिद करने पर उन्हें विद्यालय के शिक्षक का डर बताया जाता है कि — "जब तक स्कूल जाओगे तब तुम्हें गुरुजी/मास्टर जी वही देखेंगे।" इसके अलावा भी अन्य बच्चों के द्वारा विद्यालय एवं शिक्षक के संबंध में गलत धारणा बच्चे के मन में बैठा दी जाती है।
(ii) बच्चे का अंतर्मुखी होना― कुछ बच्चे स्वाभाविक अंतर्मुखी होते हैं वे किसी से ज्यादा घुलना-मिलना या नई जगह पर जाना पसंद नहीं करते हैं। ऐसी स्थिति में भी पूर्व बच्चों के मन में विद्यालय के प्रति भय व्याप्त रहता है।
(iii) माता-पिता का बच्चे से अतिशय प्रेंम― कभी-कभी बच्चे अपने माता-पिता के द्वारा अतिशय अर्थात आवश्यकता से अधिक प्रेंम किए जाने के कारण बच्चे दूसरों पर विश्वास नहीं करते हैं। इसीलिए विद्यालय जाने में उन्हें भय लगता है। वे सोचते हैं कि पता नहीं विद्यालय में उनके साथ क्या होगा?
(iv) बच्चे की दिव्यांगता ― कुछ बच्चे दिव्यांग अर्थात किसी अंग विशेष में हीन होने के कारण उन्हें विद्यालय के प्रति या अन्य नई जगह के प्रति भय होता है। उक्त के अलावा भी ऐसे बहुत सारे कारक हो सकते हैं जिनकी वजह से बच्चों को विद्यालय से भय लगता है।
भय दूर करने के उपाय― ऐसे बच्चे जिन्हें विद्यालय में दर्ज कराना है और उनके मन में उक्त कारणों में से किसी एक के कारण भय पैदा हुआ है तो कारण का पता लगाकर उनके मन में बैठे इस डर को दूर किया जा सकता है–
(i) बच्चों को कभी भी विद्यालय के शिक्षक या वहाँ के परिवेश से डराना नहीं चाहिए बल्कि शिक्षक और विद्यालय के बारे में अच्छी-अच्छी बातें बच्चों को बतानी चाहिए। हो सके तो विद्यालय में नाम दर्ज कराने के पूर्व अभिभावक स्वयं अपने साथ बच्चे को लेकर विद्यालय जाएँ। शिक्षक और अन्य बच्चों से उसे मिलवाएँ, आपस में बातचीत करने का मौका दें। ऐसा दो से चार बार करने पर निश्चित ही बच्चे के मन से भय दूर हो जाएगा।
(ii) यदि बच्चा अंतर्मुखी होने के कारण दूसरे बच्चों या किसी अन्य से मिलता जुलता नहीं है तो ऐसे बच्चे को अन्य बच्चों के साथ घूमने मिलने या बातचीत करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने चाहिए। अभिभावक को स्वयं साथ में रहकर अन्य बच्चों से बातचीत करने, उनके साथ खेलने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए। इसी तरह से विद्यालय ले जाकर भी अन्य बच्चों के साथ उसे घूमने मिलने का अवसर देना चाहिए।
(iii) निश्चित ही प्रत्येक माता-पिता के लिए संतान सबसे अधिक प्रिय होती है और हर माता-पिता अपने बच्चों से बहुत प्रेंम करते हैं। किंतु प्रेंम का प्रदर्शन इतना अधिक नहीं होना चाहिए जिससे वह अन्य लोगों से मिलना जुलना ही न चाहे या अन्य लोगों से उसे बातचीत करने में भय लगे।
(iv) यदि बच्चा दिव्यांग है और इस कारण उसके मन में भय व्याप्त है। उसके इस डर को निकालने के लिए विद्यालय के परिवेश, आसपास के माहौल एवं उसके गति करने (चलने-फिरने) या विद्यालय जाने के लिए जो आवश्यक उपकरण हो की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि उसे किसी प्रकार का भय न लगे। कुल मिलाकर कारण जो भी हो उसका अभिभावक या शिक्षक को पता लगाना चाहिए एवं आवश्यक उपचार करना चाहिए ताकि बच्चे का मन विद्यालय में लगे और वह पढ़-लिख कर अपने आप को अग्रसर कर सके।
(ख) ऐसे बच्चे जिनका नाम विद्यालय में दर्ज है के मन में भय के कारण― ऐसे बच्चे जिनका नाम विद्यालय में दर्ज है और वे विद्यालय जाने से कतराते हैं या रोने लगते हैं। यदि स्थिति ऐसी तो विद्यालय से भय के कारणों का पता लगाना चाहिए। ऐसे बच्चों के लिए भय के कई कारण हो सकते हैं। हो सकता है बच्चे को विद्यालय के अन्य बच्चे तंग करते हो, परेशान करते हो। या फिर शिक्षक का ही भय हो। होमवर्क की अधिकता हो या उसे कोई बात समझने में कठिनाई होती हो। उसे खेलने कूदने के ज्यादा अवसर न मिलते हों। ऐसे बहुत सारे कारण हो सकते हैं। कारण कुछ भी हो यदि बच्चा विद्यालय जाने से कतराते है तो फिर ऐसे कारणों का पता लगाना शिक्षक और अभिभावक का दायित्व हो जाता है। यदि किसी कारण से बच्चे के मन में भय बैठ गया है तो उसके मन बैठे भय को दूर करें और बच्चों के अनुसार उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए भयमुक्त वातावरण उपलब्ध कराएँ।
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Thank you.
R. F. Tembhre
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