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'हमारे राष्ट्रीय लक्ष्य' इनकी प्राप्ति || लोकतन्त्र एवं नागरिक, वयस्क मताधिकार || नागरिकों के मौलिक एवं मानव अधिकार || मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग

खण्ड 'अ'- राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति
राष्ट्रीय लक्ष्य क्या है?

जिस प्रकार व्यक्ति के जीवन में कुछ लक्ष्य होते हैं, जिनकी प्राप्ति के लिए कार्य करता है, उसी प्रकार राष्ट्र के भी कुछ लक्ष्य होते हैं, जिन्हें सम्मुख रखकर एक राष्ट्र कार्य करता है। देश की प्रगति और समृद्धि राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति और सहायक है। सरकार इन राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विधि (कानून) बनाती है तथा प्रशासनिक व्यवस्थाओं का सुदृढ़ करती है।

हमारा देश प्रजातान्त्रिक देश है। हमारे राष्ट्रीय लक्ष्य हैं-
(i) लोकतन्त्र
(ii) पन्थनिरपेक्षता
(iii) राष्ट्रीय एकता,
(iv) स्वतन्त्रता
(v) समानता
(vi) सामाजिक समरसता
(vii) अंतर्राष्ट्रीय शान्ति और
(viii) संयोग।

राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति

हमें अपने राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति लोकतन्त्र की विधि से करनी है। हमारे देश में संविधान के अनुसार लोकतान्त्रिक शासन पद्धति की स्थापना की गई है‌। इस पद्धति में सरकार का गठन जनता कराती है।

लोकतंत्र

लोकतन्त्र का वास्तविक अर्थ है प्रत्येक व्यक्ति को स्वतन्त्रता के साथ-साथ समान अधिकारों की प्रति हो। समाज के सभी वर्गों को विकास के समान अवसर बिना भेदभाव के उपलब्ध हों।

लोकतान्त्रिक शासन पद्धति में नागरिकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। एक उत्तम सरकार का निर्वाचन करना नागरिकों का कर्तव्य है। प्रत्येक नागरिक को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहना चाहिए, जिससे सरकार जनहित में कार्य कर सकें।

लोकतन्त्र उस शासन प्रणाली को कहते हैं, जिसमें जनता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों को चुनती है और वे प्रतिनिधि जनहित को ध्यान से रखकर कार्य करते हैं तथा शासन का संचालन करते हैं।

नागरिक शास्त्र के इन प्रकरणों👇 को भी पढ़े।
1. भारतीय संविधान के स्रोत
2. भारतीय संविधान का निर्माण
3. भारतीय संवैधानिक विकास के चरण
4. अंग्रेजों का चार्टर एक्ट क्या था
5. अंग्रेजों का भारत शासन अधिनियम
6. अंग्रेज कालीन – भारतीय परिषद् अधिनियम

भारत में लोकतान्त्रिक शासन है। यह जनता के प्रति उत्तरदायी है। प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, लिंग अथवा जन्म स्थान का हो, उसे मत देने अथवा चुनावों में भाग लेने का अधिकार है। हमारे देश की लोकतान्त्रिक सरकार का उद्देश्य लोक कल्याण है।
स्वतन्त्रता, ‌‌समानता और बंधुत्व लोकतन्त्र के मुख्य तत्व हैं, इनके बिना हम लोकतन्त्र की कल्पना भी नहीं कर सकते।

स्वतन्त्रता

व्यक्ति को ऐसे वातावरण और परिस्थितियों की आवश्यकता है, जिसमें रहकर वह अपना विकास समुचित ढंग से कर सके। राज्य उन परिस्थितियों का निर्माण कराता है। राज्य में रहते हुए व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके, इसके लिए उसे स्वतन्त्रता की आवश्यकता है। स्वतन्त्रता का अर्थ कुछ लोग बन्धनों के अभाव से लगाते हैं, यदि स्वतंत्रता को इस अर्थ में लिया तो वह स्वेच्छाचारिता में परिवर्तित हो जाती है। समाज में रहते हुए स्वतन्त्रता पूर्णतः बन्धनों से मुक्त नहीं हो सकती। अतः वास्तविक स्वतन्त्रता अनुचित बन्धनों के स्थान पर उचित बन्धनों की व्यवस्था को स्वीकार करती है। स्वतन्त्रता कई प्रकार की होती है। उसे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, नागरिक स्वतन्त्रता, राजनीतिक स्वतन्त्रता, आर्थिक एवं सामाजिक स्वतन्त्रता और धार्मिक स्वतन्त्रता के रूप में समझ सकते हैं। भारतीय संविधान में उचित प्रतिबन्ध लगाते हुए प्रत्येक नागरिक को अधिकार के रूप में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार, शान्तिपूर्ण सम्मेलन या मीटिंग करने का अधिकार, संघ बनाने की स्वतन्त्रता का अधिकार ,भारत में कहीं भी घूमने की स्वतन्त्रता का अधिकार, निवास करने की स्वतन्त्रता का अधिकार और व्यापार करने की स्वतन्त्रता का अधिकार स्वीकार किया है।

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1. भारतीय संविधान के स्रोत
2. भारतीय संविधान का निर्माण
3. भारतीय संवैधानिक विकास के चरण
4. अंग्रेजों का चार्टर एक्ट क्या था
5. अंग्रेजों का भारत शासन अधिनियम
6. अंग्रेज कालीन – भारतीय परिषद् अधिनियम

समानता

नागरिकों के सम्पूर्ण विकास के लिए राज्य द्वारा समान अवसर उपलब्ध करवाना समानता है। भारत का प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी वंश, जाति, सम्प्रदाय और लिङ्ग अथवा जन्म स्थान का हो कानून के समक्ष समान है।

समानता के प्रकार

सामाजिक समानता।
राजनीतिक समानता।
आर्थिक समासमानत।

समानता का महत्व

1. समानता की स्थिति में भेदभाव का अन्त हो जाता है।
2. स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए सामान्यता आवश्यक है।
3. व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए समानता आवश्यक है।
4. स्वतन्त्र और निष्पक्ष के लिये भी समानता का होना आवश्यक है।

न्याय

न्याय किसी चीज के सही, उचित और तार्किक होने की ओर संकेत करता है। प्रजातान्त्रिक समाज में, न्याय वह स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा होती है और समाज में व्यवस्था बनी रहती है। न्याय का लक्ष्य सम्पूर्ण समाज की भलाई है। न्याय उस सामाजिक स्थिति को कहते हैं जिसमें व्यक्ति के पारस्परिक सम्बन्धों की उचित व्यवस्था की जाती है, जिससे समाज में व्यक्ति के अधिकार सुरक्षित रहें। न्याय की धारणा सत्य तथा नैतिकता के रूप में भी समझी जाती है।हमारा संविधान अपने सभी नागरिकों को सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक न्याय प्रदान करता है। भारत में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्याय व्यवस्था की स्थापना की गई है, जिसके द्वारा कानून के पालन को सुनिश्चित किया गया है।

पन्थ निरपेक्षता

पन्थ निरपेक्षता राज्य सभी व्यक्तियों को पन्थ और मजहबों की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। इसका अर्थ है कि व्यक्तियों को अपने पन्थ और उपासना की स्वतन्त्रता होती है। राज्य धर्म एवं सम्प्रदाय किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। वर्तमान समय में कुछ ऐसे भी राज्य हैं, जो कि किसी पन्थ विशेष को प्रधानता देते हैं। उदाहरण के लिए पाकिस्तान का संविधान उसे 'इस्लामिक गणराज्य' घोषित करता है। हमारे संविधान में घोषित किया गया है कि हमारा राज्य पन्थ-निरपेक्ष है। राज्य ने किसी भी पंथ को मान्यता नहीं दी है। सभी नागरिकों को अपना धर्म-पालन की स्वतन्त्रता है। यह आवश्यक है कि राष्ट्रहित को व्यक्तिगत हित से ऊपर समझाना चाहिये।

अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सहयोग

हमारा एक अन्य राष्ट्रीय लक्ष्य है अन्तराराष्ट्रीय शान्ति व सहयोग। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भारत ने पञ्चशील के सिद्धान्त, गुट निरपेक्षता की नीति तथा नि:शस्त्रीकरण को अपनाया है।

पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने इस संबंध में कहा था - "हम विश्व में सर्वत्र शान्ति चाहते हैं और शान्ति की स्थापना के लिए यदि हम कुछ भी कर सकें, तो उसे करने का भरसक प्रयत्न करेंगे।"

नागरिक शास्त्र के इन प्रकरणों👇 को भी पढ़े।
1. भारतीय संविधान की प्रस्तावना की प्रकृति व महत्व
2. भारत में संविधान सभा का गठन

गुट निरपेक्षता

शान्ति-गुटों या सैनिक गठबन्धनों से पृथकता तथा स्वतन्त्र विदेश-नीति का पालन करना अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र विचार रखना ही गुट निरपेक्षता है।

नि:शस्त्रीकरण

नि:शस्त्रीकरण का अर्थ शास्त्र की दौड़ समाप्त करने अथवा शास्त्रों को कम या समाप्त करने से है। नि:शस्त्रीकरण विश्व शान्ति की स्थापना के लिए आवश्यक है।

आज विश्व के सभी राष्ट्र एक दूसरे पर किसी न किसी प्रकार से निर्भर हैं। आज संचार के साधन इतने विकसित हो गए हैं कि यदि विश्व के किसी भी भाग में कोई घटना घटित होती है तो उसका प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था एवं राजनितिक व्यवस्था पर पड़ता है।

हमारे पड़ौसी देशों और विश्व में जो कुछ घटित होता है उसके प्रति हम उदासीन नहीं रह सकते। हमें अपनी आत्मरक्षा के लिए तैयारी करनी ही होगी और इसके लिए आवश्यक हथियार रहने ही होंगे। यदि हम संसाधनों का अधिकांश भाग अपनी रक्षा पर व्यय करते हैं तो हमारे सामाजिक तथा आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है। अतः आत्मरक्षा के लिए आवश्यक हथियार और आर्थिक विकास दोनों पर पूर्ण और संतुलित ध्यान देने की आवश्यकता है।

हम अंतरराष्ट्रीय शान्ति एवं सहयोग के प्राचीन काल से ही पक्षधर रहे हैं। भारतीय संस्कृति के मूल में सह-अस्तित्व और सहिष्णुता की नीति रही है।

खण्ड 'ब'- लोकतन्त्र एवं नागरिक

लोकतन्त्र शासन का एक प्रकार है। यह एक राजनीतिक आदर्श भी है। लोकतन्त्र बहुमत का शासन मात्र नहीं है वरन् यह इस बात को निर्धारित करने का तरीका है कि कौन लोग शासन करेंगे और किन उद्देश्यों के लिए शासन किया जाएगा। लोकतन्त्र को परिभाषित करते हुए अब्राहम लिंकन ने कहा है कि, "लोकतन्त्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है।" इसे यदि और स्पष्ट किया जाए तो इसका अर्थ होगा- जनता की सरकार अर्थात जनता की ओर से सरकार, जनता के लिए सरकार अर्थात जनहित के लिए कार्य करने वाली सरकार जनता के द्वारा सरकार अर्थात प्रतिनिधिमूलक सरकार। लोकतन्त्र को सभी प्रकार की शासन पद्धतियों में अच्छा माना गया है, क्योंकि इसमें किसी न किसी प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति की सहभागिता होती है।

लोकतन्त्र एवं नागरिक

आदर्श लोकतन्त्र सरकार तभी सम्भव है, जब नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो। नागरिकों को अपने देश या क्षेत्र की समुचित जानकारी रहेगी तो वे सही निर्णय ले सकेंगे। इसलिये नागरिकों को समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन, सर्वजनिक सभाओं तथा अन्य साधनों के माध्यम से जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। लोकतन्त्र के प्रत्येक नागरिक जागरुक और साक्षर होना चाहिए ताकि वह अपने मत का उचित उपयोग कर सके।

नागरिकों को सरकार के क्रिया-कलापों पर विचार-विमर्श और आलोचना करने का अधिकार होता है। उन्हें सरकार की जन-विरोधी नीतियों का विरोध करने का भी अधिकार है। ऐसे लोकतन्त्र जहाँ जनता अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करके भेजती है उसे अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहते हैं। भारत में अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र है।

अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में सभी राजनैतिक दल चुनाव में अपने-अपने प्रत्याशी खड़े करते हैं। वे मतदाताओं को अपनी नीति एवं कार्यक्रम समझाते हैं। राजनीतिक दलों की लोकतन्त्र में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वे जनता और सरकार के बीच एक कड़ी का कार्य करते हैं। वे जनमत का निर्माण भी करते हैं।

नागरिकों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा सरकार का निर्माण किया जाता है। जो दल बहुमत प्राप्त करता है वही सरकार बनाता हैं। जो दल अल्पमत में होता है, वह प्रतिपक्ष दल का कार्य करता है। सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों पर प्रतिपक्ष प्रश्न, उप-प्रश्न पूछकर तथा स्थगन प्रस्ताव लाकर नियन्त्रण रखता है, जिससे सरकार जनता के कल्याण के लिये कार्य करने के लिये बाध्य होती है।

वयस्क मताधिकार

वयस्क मताधिकार को अधिकांश लोकतान्त्रिक राज्यों में स्वीकार किया गया है। यह मताधिकार का सबसे अधिक प्रचलित सिद्धांत है। मताधिकार नागरिकों का एक महत्वपूर्ण अधिकार है। भारत में संविधान द्वारा नागरिकों को मत देने का महत्वपूर्ण अधिकार दिया गया है।हमारे देश में 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने वाले हर नागरिक को मत देने का अधिकार प्राप्त है। लिङ्ग, वर्ग, जाति, पन्थ के भेदभाव के बिना यह अधिकार सबको प्राप्त है। इसे हम सर्वभौम वयस्क मताधिकार कहते हैं। प्रत्येक नागरिक को अपने मत का प्रयोग स्व-विवेक से अवश्य ही करना चाहिये। वयस्क मताधिकार समानता के सिद्धान्त पर आधारित है।

मतदान और उसका महत्व

प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में मतदान का बहुत अधिक महत्व है। मतदान द्वारा मतदाता यह तय करता है कि वह किस प्रकार के प्रतिनिधियों को अपने शासक के रूप में चाहता है। अब तक हमारे देश में संघ सरकार के लिए 17 सामान्य निर्वाचन हो चुके हैं। सार्वभौम वयस्क मताधिकार के द्वारा प्रत्येक वयस्क नागरिक जो 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो, अपने मत का प्रयोग अपनी इच्छा से कर सकता है।

हमारे देश में कुछ नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करते। जिसका मुख्य कारण है जागरूकता की कमी और शिक्षा का अभाव। कुछ नागरिक उदासीनता के कारण मतदान नहीं करते। कुछ सोचते हैं -'मुझे इससे क्या लाभ होगा?' वे यह अनुभव नहीं करते कि चुनाव में मतदान करना उनका अधिकार ही नहीं अपितु कर्तव्य भी है।

जब मतदाता के सामने अनेक प्रत्याशी होते हैं तो उसे उनमें से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है। मतदाता को प्रत्याशी चयन करते समय उनके गुण तथा उनके सामाजिक कार्यों की जानकारी होनी चाहिए। उसे ऐसे व्यक्ति को अपना मत देना चाहिए, जो जनता की भलाई का कार्य निष्ठा से कर सकें।

निर्वाचन के समय राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणा-पत्रों में राजनीतिक दलों के उद्देश्य और कार्यक्रम दिए होते हैं। नागरिकों को चाहिए कि वे ऐसे राजनीतिक दलों के प्रत्याशी को अपना मत दें जो देश की एकता और अखण्डता बनाए रखने और सभी नागरिकों के हितों की रक्षा करने के लिए तत्पर हो। जाति, धर्म या क्षेत्र विशेष की भावनाओं से प्रेरित मतदान लोकतन्त्र और कमजोर बनाता है।

नागरिकों के मौलिक अधिकार

मौलिक अधिकार व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है जिसकी व्यवस्था देश के संविधान के अन्तर्गत की जाती हैं। इन अधिकारों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य हैं। न्यायपालिका संविधान की संरक्षक होती हैं अतः मौलिक अधिकारों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त है।

भारतीय संविधान द्वारा प्रदत 6 मौलिक अधिकार ये हैं-
1. समानता का अधिकार
2. स्वतन्त्रता का अधिकार
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार 5. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

संविधान में नागरिकों के मूल अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्य भी निर्धारित किए गए हैं जिनका पालन करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। जिस प्रकार हम अपने अधिकारों के प्रति सजग रहते हैं, उसी प्रकार हमारा यह कर्तव्य भी है कि हम अपने मौलिक कर्तव्यों के प्रति भी उत्तरदायी रहें। तब ही राष्ट्र का विकास हो सकेगा। संविधान में उल्लेखित मौलिक कर्तव्यों में कुछ कर्तव्य इस प्रकार हैं- भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे। उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे

भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें। देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें। भारत के सभी लोगों की समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करे, जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो। ऐसी प्रथाओं का त्याग कर जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हो, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें आदि।

मानव अधिकार

मानव अधिकार, कानून द्वारा प्रदत्त एवं प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा पोषित वे परिस्थितियाँ हैं, जो मानव के व्यक्तित्व के विकास तथा उसे स्वतन्त्र रूप में अपनी भूमिका निभाने के लिए अनिवार्य हैं। 'मानवाधिकार' अर्थात मानव को प्राकृति से प्राप्त वे अधिकार, जिनका समुचित प्रयोग कर मनुष्य अपने सर्वांगीण विकास की दिशा में आगे बढ़ता है।

मानव अधिकार का क्षेत्र

मानव अधिकार का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के नागरिक, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों का समावेश है। सामान्यतः इन अधिकारों को समझने के लिए इन्हें चार भागों में विभाजित किया गया है-
1. वे अधिकार, जो प्रत्येक मानव के लिए जन्मजात होते हैं और उसके जीवन का अभिन्न अङ्ग बन जाते हैं।
2. वे अधिकार, जो मानव जीवन और उसके विकास के लिए मुख्य अधार होते हैं।
3. वे अधिकार, जिनको पाने के लिए उचित सामाजिक दशाओं अथवा परिस्थितियों का होना अनिवार्य है।
4. वे अधिकार, जो मानव की प्राथमिक आवश्यकताओं व मांगों पर आधारित होते हैं।

मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा

संयुक्त राष्ट्र की मानव अधिकारों की रक्षा करने के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा है, जिसे संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 10 दिसंबर 1948 को पारित किया था। इसलिए प्रतिवर्ष इस घोषणा की वर्षगांठ विश्व के सभी देशों में 10 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाई जाती है। घोषणा पत्र में कहा गया है......
"सभी व्यक्ति जन्म से स्वतन्त्र हैं और अपनी गरिमा एवं अधिकारों के मामलों में बराबर है। इन अधिकारों और स्वतन्त्रताओं को प्राप्त करने में लोगों के बीच नस्ल, वर्ण, लिंग, भाषा, धर्म, राजनैतिक, राष्ट्रीयता अथवा सामाजिक उत्पत्ति, संपत्ति तथा अन्य स्तरों के अधिकार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।"

मानव अधिकार व उनका संरक्षण

शिक्षा के माध्यम से इन अधिकारों को विभिन्न सामाजिक स्तरों तक पहुँचाया जा सकता है। मानव अधिकार के प्रति जागरूकता जगाने में निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं-
1. रैली निकलवाना, मानव श्रृंखला बनाना, अधिकारों के प्रति जागरूकता हेतु अभियान चलना।
2. दूरदर्शन, रेडियो व वीडियो फिल्मों के माध्यम से जानकारी देना।
3. समाचार पत्र, पोस्टर, नारों आदि के द्वारा प्रचार-प्रसार करना।
4. बैठकों व संगोष्ठियों में मानव अधिकार व संरक्षण पर चर्चा आयोजित करना।

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग

मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु हमारे देश में भी मानव अधिकार आयोग का गठन किया गया है। मध्यप्रदेश में मानव अधिकार आयोग का गठन सितंबर 1995 को किया गया। भारतीय संसद द्वारा पारित मानवाअधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अंतर्गत गठित मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग एक स्वतन्त्र एवं स्वायत्तता प्राप्त संगठन है, जिसका उद्देश्य उक्त अधिनियम के वर्णित अधिकारों का संरक्षण करना है। इसके साथ ही साथ, मानव अधिकार संरक्षण, मानव अधिकारों को जन साधारण तक पहुँचने का कार्य भी करता है। मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग का कार्यालय भोपाल में स्थित है‌। जिन लोगों के मानव अधिकारों का हनन होता हो वे आयोग के माध्यम से अपने अधिकारों का संरक्षण कर सकते हैं।

आयोग के पास शिकायत भेजने का तरीका

1. पीड़ित व्यक्ति के द्वारा स्वयं अथवा पीड़ित व्यक्ति की ओर से किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा आयोग को सीधे प्रार्थना पत्र देकर शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। साधारण कागज पर लिखकर सीधे ही आयोग के कार्यालय में शिकायत भेजी जा सकती है।
2. शिकायत दर्ज कराने हेतु वकील की आवश्यकता नहीं है।
3. शिकायत दर्ज कराने हेतु किसी भी प्रकार का प्रपत्र निर्धारित नहीं है और न ही किसी प्रकार का कोई शुल्क लिया जाता है, न ही शिकायत पत्र पर स्टाम्प (टिकट) लगाया जाता है।

लोकतन्त्र की सफलता की आवश्यक शर्तें

हमें अपने लोकतन्त्र की रक्षा करना वह उसे सफल बनाना है लोकतन्त्र की सफलता निम्न बातों पर निर्भर करती है-
1. शिक्षित जनता- लोकतन्त्र में जनसामान्य राजनीतिक प्रक्रिया में सहभागी रहता है। जब तक जन सामान्य राजनीतिक प्रश्नों के भलीभाँति नहीं समझेगा तब तक उसकी सहभागिता न तो प्रभावशाली होगी और न अर्थपूर्ण रहेगी। इसके लिए नागरिकों का शिक्षित होना बहुत आवश्यक है। यह आवश्यक है कि नागरिक स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को समझें और उन पर अपने विचारों को व्यक्त करे। अशिक्षित नागरिक अपने स्व-विवेक से न तो मताधिकार का प्रयोग कर सकता है और न वह राजनितिक और आर्थिक प्रश्नों पर अपनी गंभीर राय दे सकता है। नागरिकों का शिक्षित होना लोकतन्त्र की पहली आवश्यकता है।

2. राजनीतिक जागरूकता- राजनीतिक जागरूकता का अभिप्राय है नागरिकों में राजनीतिक प्रश्नों और मुद्दों की जानकारी होनी चाहिए तथा उन मुद्दों पर राजनीतिक दृष्टि से सोचने और विचार करने की क्षमता होना चाहिए। सरकार के कदम और प्रयत्न किस सीमा तक जनहित को प्रभावित करते हैं तथा किस सीमा तक उनका विपरीत प्रभाव पड़ता है, इसके सम्बन्ध में विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता नागरिकों में होना चाहिए। नागरिकों की विवेकशीलता के अभाव में प्रजातन्त्र, भीड़तन्त्र में बदल जाता है। नागरिकों में इतनी समझ होना चाहिए कि वे स्वतन्त्र विचार विमर्श द्वारा अपने झगड़े सुलझा सकें। राजनैतिक दृष्टि से जागरूक नागरिक अप्रजातान्त्रिक तरीकों का सहारा नहीं लेता।

3. स्वतन्त्र प्रेस- लोकतन्त्र की सफलता के लिए स्वतन्त्र प्रेस का होना आवश्यक है। नागरिकों की स्वतन्त्रता का सरकार द्वारा अतिक्रमण न हो इसके लिए स्वतन्त्र प्रेस का होना अनिवार्य है। स्वतन्त्र प्रेस सरकार के दबाव में आए बिना जनता की माँगों को सरकार के सामने रखती है। जनहित के प्रश्न प्रेस द्वारा उठाए जाते हैं। स्वतन्त्र प्रेस को प्रजातन्त्र का 'चौथा स्तंभ' कहा गया है।

4. सामाजिक और आर्थिक समानता- लोकतन्त्र की सफलता के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता आवश्यक है। समाज में जब तक ऊँच-नीच, गरीब-अमीर और छुआछुत आदि के भेदभाव रहेंगे लोकतन्त्र अच्छी तरह से कार्य नहीं कर सकता। इसी प्रकार आर्थिक असमानता सदैव समाज के विभिन्न वर्गों में पारस्परिक मन-मुटाव को जन्म देगी और इसके कारण असन्तोष में वृद्धि होगी, इसलिए ऐसा समाज चाहिए जिसमें गरीब-अमीर का अन्तर कम हो और सामाजिक आर्थिक दृष्टि से भेदभाव न हो। जाति, बिरादरी की सङ्कीर्णता प्रजातन्त्र के लिए एक बाधा है।

अभ्यास प्रश्न

1. निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प चुनकर लिखिए-
1. हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य है-
(क) लोकतंत्र
(ख) राजतंत्र
(ग) साम्राज्यवाद
(घ) तानाशाही
उत्तर- लोकतन्त्र

2. 'हम विश्व में सर्वत्र शान्ति चाहते हैं' किसने कहा था-
(क) सरदार वल्लभभाई पटेल।
(ख) पंडित जवाहरलाल नेहरू।
(ग) लाल बहादुर शास्त्री।
(घ) महात्मा गांधी।
उत्तर- पण्डित जवाहरलाल नेहरू

3. नि: शास्त्रीकरण क्यों आवश्यक है-
(क) विश्व-शांति की स्थापना के लिए।
(ख) युद्ध के लिए।
(ग) सरकार बनाने के लिए।
(घ) परमाणु शस्त्रों के लिए।
उत्तर- विश्व शान्ति की स्थापना के लिए

4. जाति व धर्म के आधार पर मतदान लोकतन्त्र को-
(क) शक्तिशाली बनाता है।
(ख) कमजोर बनाता है।
(ग) हमारे अधिकार सुरक्षित करता है।
(घ) उपयुक्त तीनों।
उत्तर- कमजोर बनाता है।

5. वयस्क मताधिकार के लिये आयु निर्धारित है-
(क) 14 वर्ष
(ख) 18 वर्ष
(ग) 21 वर्ष
(घ) 25 वर्ष
उत्तर- 25 वर्ष

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. संविधान में कुल 6 मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है।
2. लोकतंत्र जनता का शासन होता है।
3. पन्थ निरपेक्षता में अपने पन्थ की उपासना की स्वतन्त्रता रहती है।
4. गुट निरपेक्षता का अर्थ है सैनिक गठबन्धनों से अलग रहना।
5. लोकतन्त्र के मुख्य तत्व स्वतन्त्रता समानता और बन्धुत्व हैं।

प्रश्न 3. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. स्वतन्त्रता के प्रकार बताइए।
उत्तर- स्वतन्त्रता के निम्न प्रकार हैं।
(i) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता
(ii) नागरिक स्वतन्त्रता
(iii) राजनितिक स्वतन्त्रता
(iv) आर्थिक एवं सामाजिक स्वतन्त्रता
(v) धार्मिक स्वतन्त्रता आदि स्वतन्त्रता के प्रकार हैं।

2. समानता का अर्थ लिखिए।
उत्तर- नागरिकों के सम्पूर्ण विकास के लिए राज्य द्वारा सभी को समान अवसर उपलब्ध कराना ही समानता है।

3. अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र किसे कहते हैं?
उत्तर- ऐसा लोकतन्त्र जहाँ जनता अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करके भेजती है, उसे अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहते हैं। भारत में अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र है।

4. लोकतन्त्र में प्रत्येक नागरिक को साक्षर क्यों होना चाहिए?
उत्तर- लोकतन्त्र में प्रत्येक नागरिक जागरुक और साक्षर होना चाहिए ताकि वह अपने मत का उचित प्रयोग कर सकें।

प्रश्न 3. लघु उत्तरीय प्रश्न-

1. वयस्क मताधिकार का अर्थ लिखिए।
उत्तर- जहाँ पर वयस्क व्यक्ति को मत देने का अधिकार प्राप्त हो उसे वयस्क मताधिकार कहते हैं। हमारे देश में 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने वाले हर नागरिक को मत देने का अधिकार प्राप्त है। यह मताधिकार का सबसे अधिक प्रचलित सिद्धान्त है।

2. हमारे राष्ट्रीय लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर- हमारा देश प्रजातान्त्रिक देश है। अतः लोकतन्त्र, पन्थ-निरपेक्षता, राष्ट्रीय एकता, स्वतंत्रता, समानता, सामाजिक समरसता, अंतर्राष्ट्रीय शान्ति और सहयोग हमारे राष्ट्रीय लक्ष्य।

3. न्याय का वास्तविक अर्थ लिखिए।
उत्तर- न्याय उस सामाजिक स्थिति को कहते हैं, जिसमें व्यक्ति के पारस्परिक सम्बंधों की उचित व्यवस्था की जाती है, जिससे समाज में व्यक्ति के अधिकार सुरक्षित रहें। न्याय की धारणा सत्य और नैतिकता के रूप में भी समझी जाती है।

प्रश्न 5. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. हमें अंतर्राष्ट्रीय शान्ति और सहयोग की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर- विज्ञान ने संसार को आज समेटकर बहुत छोटा कर दिया है। विश्व के किसी भी कोने में होने वाली घटना का प्रभाव आज सम्पूर्ण विश्व के लोगों पर पड़ता है। अतः हम भी केवल तभी शान्ति से रह सकेंगे जब विश्व भर में शान्ति होगी और हम अपने सम्पूर्ण संसाधनों को तभी जनता के हित एवं विकास में लगा सकेंगे जब देश में शान्ति रहने का विश्वास हो। विश्व का लगभग हर एक भाग दूसरे से भौगोलिक रूप से भिन्न है तथा उसकी अपनी विशेषताएँ हैं। अतः विश्व में प्राय: सभी देशों को अपनी आवश्यकताएँ पूरी करने के लिये किसी न किसी तरह एक-दूसरे पर निर्भर करना पड़ता है और इस प्रकार हम आपसी सहयोग द्वारा ही अपने जीवन का आनन्द उठा पाते हैं।

2. लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्तें कौन-सी है?
उत्तर- लोकतन्त्र की सफलता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है-
1. शिक्षित जनता- लोकतन्त्र में जन-सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया में सहभागी रहता है। जब तक जन-सामान्य राजनितिक प्रश्नों को भलीभाँति नहीं समझेगा। तब तक उसकी सहभागिता न तो प्रभावशाली होगी और न अर्थपूर्ण रहेगी। इसके लिये जनता का शिक्षित होना बहुत आवश्यक है। अतः जनता का शिक्षित होना लोकतन्त्र की पहली आवश्यकता है।
2. राजनीतिक जागरूकता- लोकतन्त्र में नागरिकों में राजनितिक प्रश्नों और मुद्दों की जानकारी होनी चाहिए तथा उन मुद्दों पर राजनीतिक दृष्टि से विचार करने की क्षमता होनी चाहिए। नागरिकों की विवेक-शीलता के अभाव में प्रजातन्त्र, भीड़तन्त्र में बदल जाता है।
3. स्वतन्त्र प्रेस- लोकतंत्र की सफलता के लिए स्वतन्त्र प्रेस का होना आवश्यक है। नागरिकों की स्वतन्त्रता का सरकार द्वारा अतिक्रमण न हो इसके लिये स्वतन्त्र प्रेस का होना अनिवार्य है।स्वतन्त्र प्रेस सरकार के दबाव में आये बिना जनता की माँगों को सरकार के सामने रखती है‌।अतः प्रेस को प्रजातन्त्र का चौथा स्तम्भ कहा गया है।
4. सामाजिक और आर्थिक समानता- समाज में जब तक ऊँच-नीच, गरीब-अमीर और छुआछूत आदि के भेदभाव रहेंगे, लोकतन्त्र अच्छी तरह से कार्य नहीं कर सकता। इसी प्रकार, धनिकों का धन और गरीबों की गरीबी लोकतन्त्र को नष्ट कर देगी। अतः लोकतन्त्र की सफलता के लिए सामाजिक और आर्थिक सामानता आवश्यक है।

समाजशास्त्र के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें।
1. राष्ट्रीय महिला आयोग एवं उसके प्रमुख कार्य

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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