
आप क्या जानते हैं? योजक चिह्न (-) का प्रयोग क्यों और कहाँ होता है? || Yojak chinha ka prayog
योजक चिह्न : (-) कोष्ठक में लगे चिह्न को योजक चिह्न कहते हैं। जब दो या दो से अधिक शब्दों का सम्बन्ध प्रकट किया जाता है, वहाँ योजक चिह्न (-) लगाया जाता है। इसे संयोजक चिह्न भी कहते हैं।
योजक चिह्न के प्रयोग–
1. दो शब्दों के बीच में 'और' शब्द के स्थान पर-
यथा - माता-पिता
माता और पिता
2. दो शब्दों के बीच 'का' के स्थान पर-
यथा - राज-गृह
राजा का घर
3. पुनरुक्त शब्दों के बीच
यथा - बार-बार
शब्द का दोहराव
4. दो शब्दों के बीच 'न' आने पर-
यथा - कोई-न-कोई
दो समान शब्दों के बीच 'न' के प्रयोग
5. तुलना के लिए सा, सी, से आने पर-
यथा - फूल-सी
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5. अलंकार – ब्याज-स्तुति, ब्याज-निन्दा, विशेषोक्ति, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण, यमक, श्लेष
6. रस के अंग – स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव, संचारी भाव
7. रसों का वर्णन - वीर, भयानक, अद्भुत, शांत, करुण
8. काव्य के भेद- श्रव्य काव्य, दृश्य काव्य, प्रबंध काव्य, मुक्तक काव्य, पाठ्य मुक्तक, गेय मुक्तक, नाटक, एकांकी
9. अकर्मक और सकर्मक क्रियाएँ, अकर्मक से सकर्मक क्रिया बनाना
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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
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R. F. Tembhre
(Teacher)
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