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रामचरितमानस और रामायण किन भाषाओं में लिखी गई हैं || Languages of 'Ramayan' and 'Ramcharitmanas'

इस 👇 बारे में भी जानें।
1. हिन्दू विधि एवं दर्शन क्या है? इसका स्वरूप
2. नित्य स्मरणीय संस्कृत के मन्त्र

'रामायण' और 'रामचरितमानस' महान हिन्दू धर्म-ग्रन्थ हैं। जनमानस में आदर्श स्थापित करने में इन ग्रन्थों की महती भूमिका है। हम सभी जानते हैं 'रामायण' की रचना महर्षि वाल्मीकि तथा 'रामचरितमानस' की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की है। कभी-कभी त्रुटि या बोलचाल में 'रामायण' और 'रामचरितमानस' को एक ही मान लिया जाता है। हम यह कह सकते हैं कि तुलसी रामायण का नाम रामचरितमानस है। भगवान राम के जीवन-चरित्र से सम्बन्धित ये दोनों महा-ग्रन्थ अलग-अलग रचनाकारों में ने अलग-अलग भाषाओं में की है।

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'रामचरितमानस' की भाषा

मानवता के उच्च आदर्शों को प्रदर्शित करने वाले इस ग्रन्थ की रचना 16 वीं सदी में की गई है। ऐसा माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस ग्रन्थ की रचना मूलतः संस्कृत में प्रारम्भ की थी। किन्तु एक घटना के कारण उन्होंने संस्कृत में लेखन कार्य बन्द कर नवीन भाषा का चुनाव किया। वह घटना ऐसी थी कि वे दिन में लेखन कार्य करते और रात्रि को विश्राम करते थे। जब दूसरे दिन पूर्व में लिखी गई जानकारी को देखते तो उनके द्वारा लिखी गई लिखावट अदृश्य हो जाती थी। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है। इसी तारतम्य में एक दिन रात्रि के समय भगवान शिव ने गोस्वामी तुलसीदास जी को यह आदेश दिया कि वे इस ग्रन्थ को संस्कृत में न लिखते हुए एक ऐसी भाषा में लिखे, जिससे की आम जनमानस को आसानी से समझ में आ सके और भगवान राम के आदर्श चरित्र को अपने जीवन में उतार सकें। तब तो तुलसीदास जी को समझ में आया कि ऐसा क्यों हो रहा था। उन्होंने फिर ऐसी भाषा का चुनाव किया जो बहुत ही सरल और जन जन तक व्याप्त थी। उन्होंने अपने ग्रन्थ की रचना के लिए 'अवधी भाषा' (तात्कालिक खड़ी बोली) का चयन किया। हिन्दी की उपभाषाओं मेंं 'अवधी' प्रमुख स्थान रखती है। यह प्राचीन 'अवध प्रान्त' आधुनिक उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र मेंं बोली जाती रही है। अतः यह पूर्वी हिन्दी के अंतर्गत भी आती है। पूर्वी हिन्दी में अवधी, छत्तीसगढ़ी और बघेली भाषाएँ आती हैं।

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इस ग्रन्थ की रचना गोस्वामी जी ने विक्रम संवत् 1631 (1574 ईस्वी) में की थी। रामचरितमानस में कुल सात काण्ड है। ऐसा माना जाता है आठवाँ काण्ड 'लव-कुश' बाद में जोड़ा गया था। इस महाकाव्य में 27 श्लोक, 4608 चौपाइयाँ, 1074 दोहे, 207 सोरठे और 86 छन्द हैं।

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'रामायण' महाग्रन्थ की भाषा

गोस्वामी तुलसीदास रचित 'रामचरितमानस' की रचना के लगभग 3000 साल पहले 'रामायण' महाग्रन्थ की रचना हो चुकी थी। 'रामायण' महाग्रन्थ की रचना महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में की थी। संस्कृत जन-जन की भाषा न होने के कारण तत्कालीन समय में 'रामायण' का इतना प्रचार प्रसार नहीं हुआ। किन्तु गोस्वामी तुलसीदास जी ने जब 'अवधी' भाषा में रामचरितमानस की रचना की तो भगवान राम का जीवन-चरित्र जन-जन के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बना। आज ये दोनों महाकाव्य मानव समुदाय को आदर्श जीवन की प्रेरणा देते हुए श्रद्धा की भावना से भर देते हैं।

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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