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भाषा की दक्षताएँ || लेखन एवं भाव संप्रेषण के आधार || भाषा ज्ञान हेतु अपेक्षित दक्षताएँ || भाषा सीखना एवं सुधार


भाषा की दक्षताएँ || लेखन एवं भाव संप्रेषण के आधार || भाषा ज्ञान हेतु अपेक्षित दक्षताएँ || भाषा सीखना एवं सुधार

उप शीर्षक:
शिक्षा में भाषा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। बिना भाषा के शिक्षा प्राप्त करने में काफी मुश्किलें आती हैं। भाषा शिक्षा का माध्यम होती है।

शिक्षा में भाषा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। बिना भाषा के शिक्षा प्राप्त करने में काफी मुश्किलें आती हैं। भाषा शिक्षा का माध्यम होती है। भाषायी कौशलों को हासिल कर प्राथमिक स्तर पर पढ़ने वाले बच्चे भाषा पर पकड़ बनाते हैं और अन्य विषयों को सीखने-समझने लगते हैं।
हिन्दी भाषा की 4 मूल दक्षताएँ हैं।
(1) सुनना।
(2) बोलना।
(3) पढ़ना।
(4) लिखना।

इसके अलावा भी अन्य महत्वपूर्ण दक्षताएँ हैं।
(5) विचारों का बोधन।
(6) व्यवहारिक व्याकरण।
(7) स्व-अधिगम- सरल चित्र, शब्दकोष का उपयोग।
(8) भाषा प्रयोग -
शिष्टाचार, विनम्रता।
(9) शब्द भण्डार - प्राथमिक स्तर पर 1500 शब्दों से प्रारंभ कर लगभग 5000 शब्द का ज्ञान होना और उनका अर्थ ग्रहण करना चाहिए।

लेखन एवं भाव संप्रेषण के आधार

भाषा लेखन एवं भाव संम्प्रेषण के आधार हैं- 'वर्ण', 'शब्द', और 'वाक्य'। बालक प्राथमिक स्तर पर क्रमशः 'वर्ण' (अक्षर), 'शब्द' तथा 'वाक्यों' की रचना के बारे में धीरे-धीरे सीखते हैं। बालक जो कुछ भी बोलते हैं या अपने भावों प्रकट करते हैं उन्हें लिपिबद्ध करने के लिए वर्ण, शब्द एवं वाक्यों की ही भूमिका होती है।

भाषा ज्ञान हेतु अपेक्षित दक्षताएँ

(1) उच्चारण (वर्तनी) एवं लेखन पर ध्यान।
(2) शब्द बोध, वाक्य रचना।
(3) रचना कौशल।
(4) अभिव्यक्ति की क्षमता।
(5) सुनी हुई बात को समझकर अपने शब्दों में कहना।
(6) भाषायी कौशलों सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखने में निपुणता।
(7) सृजनशीलता।
(8) साहित्य में रूचि।
(9) सद्‌वृत्तियों (नैतिक मूल्यो) का होना।
(10) व्यवहारिक जीवन में दक्षता।

हिन्दी भाषा एवं इसका शिक्षा शास्त्र के इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें।
1. भाषा सीखना और ग्रहणशीलता - भाषा और मातृभाषा क्या हैं? परिभाषाएँ
2. भाषा शिक्षा शास्त्र, बालकों को भाषा सिखाने हेतु महत्वपूर्ण तथ्य

भाषा सिखाने हेतु महत्वपूर्ण बातें -

(i) शिक्षक को सरल एवं आकर्षक चित्त होना चाहिए।
(ii) बालक शिक्षक के प्रति आकर्षित हों।
(iii) बालक में भय, निराशा या चिन्ता समाहित न हों।
(iv) बालकों को अभिव्यक्ति का अवसर देना चाहिए।
(v) बच्चों को अधिकाधिक रूप से सक्रीय रखा जाये।
(vi) शिक्षक द्वारा बालकों को प्रोत्साहित करते हुए प्रशंसा किया जाना चाहिए।
(vii) समस्त बच्चों को खेल एवं गतिविधियों में भाग लेने का अवसर मिलना चाहिए।
(viii) वाणी-दोष वाले बालकों को बोलते समय प्रोत्साहित करते हुए समर्थन देना चाहिए। उनका अन्य बच्चों के साथ समन्वय बनाना चाहिए। अन्य बच्चे ऐसे बच्चों को न चिढ़ाये इसका विशेष ध्यान देना चाहिए।
(ix) शिक्षक के सांवेगिक रूप से अपने आप में नियंत्रित होना चाहिए।
(ix) प्राथमिक स्तर के बालकों को कठोर अनुशासन में नहीं बाँधना चाहिए क्योंकि बच्चे ऐसे बंधन का अनुभव करते हैं जिससे उनका सीखना प्रभावित होता है।
(xi) शिक्षक को बालकों के साथ दोस्ताना व्यवहार करना चाहिए।
(xii) शिक्षक को बालकों की मातृभाषा का ज्ञान होना चाहिए जिससे शिक्षक बालकों के मनोभावों को अच्छी तरह समझ सकें।
(xiii) विद्यालय में बाल सभा, पहेलियाँ, अन्त्याक्षरी, तुकबन्दी, वार्तालाप आदि द्वारा शिक्षण पर बल दिया जाना चाहिए।
(xiv) कक्षा में गतिविधि आधारित शिक्षण करेंI
(xv) कक्षा में सबकी सहभागिता सुनिश्चित करें।
(xvi) शुद्ध उच्चारण, लेखन पर अधिक बल दिया जावे।
(xvii) बच्चों को भी श्यामपट पर लिखने का अवसर दिया जाना चाहिए।
(xvii) व्याकरण की जानकारी आवश्यक रूप से दी जानी चाहिए।
(xix) हिन्दी के मानक शब्दों के प्रयोग पर बल दिया जाते।
(xx) स्वतंत्र अभिव्यक्ति और लेखन के लिए कहानी, वार्तालाप, कविता/गीत गायन आदि गतिविधियों को अपनाते हुए बच्चों के प्रोत्साहन दें।

बालकों का भाषा सीखना एवं भाषा सुधार

हम प्राय: देखते हैं कि बालक प्रारंभ में अनुकरण करके ही भाषा सीखते हैं परन्तु मानक भाषा में अपनी मातृभाषा के शब्द मिलाकर बोलता है या पूरा-पूरा वाक्य नहीं बोल पाता। शिक्षक को छात्र द्वारा बोले गये वाक्यों या शब्दों में सुधार किया जाना आवश्यक होता है। धीरे-धीरे बालक भाषा के शब्दों में सुधार करके शुद्ध भाषा बोलना सीख जाता है।
प्रारंभिक दौर में बालक इस प्रकार के वाक्यों को बोलता है जैसे-
'मै खेलूंगा' को 'मैं खेल'
तुम्हारा क्या नाम है?' को 'तुम्हा का नाम हे।
शिक्षक इसमें क्रमिक रूप से सुधार करता है। बालक शब्दों को भी प्रारम्भ शुद्ध रूप से नहीं बोल पाता जैसे- 'पेड़' को 'पेर', 'तलवार' को 'तलवाल' बोलता है। शिक्षक द्वारा धीरे-धीरे उनमें अभ्यास कराकर सुधार किया जा सकता है।

Click below link to read about pedagogy of Language
1. What are language and mother tongue? Definitions
2. Language learning tendencies - Curiosity, Simulation and Practice, Pedagogy of Language


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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope the above information will be useful and important. )
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लेखक
(Writer)
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