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विषयवस्तु विवरण

पाठ 4 'राष्ट्रीय एकीकरण' | कक्षा 8 नागरिक शास्त्र (सामाजिक विज्ञान) प्रश्नोत्तर

राष्ट्रीय एकीकरण राष्ट्र के अस्तित्व का आधार है। राष्ट्रीय एकीकरण क्या है, इसे समझने के लिए राष्ट्र क्या है, यह समझना आवश्यक है। राष्ट्र, राज्य का पर्यायवाची नहीं है। राष्ट्र एक निश्चित जाती भी नहीं है। मोटे तौर पर राष्ट्र किसी निश्चित भूभाग में निवास करने वाले, भौगोलिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक इकाई के निवासियों की अनुभूतियों से युक्त सामूहिक चेतना का नाम है। इस रूप में राष्ट्र एक भावनात्मक इकाई है और राष्ट्रीय एकीकरण उसके अस्तित्व की महत्वपूर्ण शर्त है।

राष्ट्रीय एकीकरण क्या है?

राष्ट्रीय एकीकरण का अभिप्राय है राष्ट्र में रहने वाले निवासियों के बीच जाति, पंथ, क्षेत्र और भाषा का भेदभाव किए बिना उनमें परस्पर सामान अनुभूतियों और सुख दुख की एकता की भावना का होना। राष्ट्रीय एकीकरण मूलतः राष्ट्र में भावनात्मक एकीकरण है। राष्ट्र के निवासियों के मन में व्याप्त एकता की भावना राष्ट्रीय एकीकरण का आधार है। राष्ट्रीय एकीकरण नागरिकों के विचार, व्यवहार और संकल्प से उत्पन्न होता है। एक नागरिक के नाते प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह उन शक्तियों और विचारों का विरोध करें और उसका सामना करें जो राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को कमजोर करती है तथा ऐसे कार्य करें जिससे राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय एकीकरण मजबूत होता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

प्राचीन भारत में राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या कभी नहीं रही। समय-समय पर कुछ लोग और जातीय समुदाय बाहर से अवश्य भारत आते रहे हैं तथा अधिकांश लोगों ने वापस न जाकर भारत को ही अपना घर बना लिया, वे भारतीय संस्कृति और समाज के अंग बन गए हैं। वे यहांँ घुल मिल गए। उनकी भाषा उनके रीति रिवाज, उपासना पद्धति और जीवन शैली भारतीय समाज में धीरे-धीरे समा गई। इस प्रक्रिर से यहाँ का समाज और संस्कृति और भी समृद्ध हुई। जब हम भारतीय संस्कृति की बात करते हैं तब उसका अर्थ किसी एक पंथ अथवा किसी समुदाय विशेष की संस्कृति नहीं अपितु समूचे भारत वर्ष की संस्कृति से है।

प्राचीन समय में राष्ट्रीय एकीकरण को मजबूत करने की दृष्टि से अनेक कार्य सहज ही किए जाते रहे। इनमें सबसे बड़ा कार्य था भारतीयों में भ्रमण करने की प्रवृत्ति को विकसित करना। प्राचीन समय से ही देश के एक स्थान से लोग दूसरे स्थानो पर श्रद्धा भक्ति के से आते जाते रहे हैं। इसमें चारों धामों बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम् और द्वारिका की यात्रा का काफी योगदान है। इसी प्रकार प्रति तीसरे वर्ष क्रमशः चार अलग-अलग स्थानों में लगने वाले महाकुंभ में आम जनता का पहुँचना भी राष्ट्रीय एकीकरण में सहायक रहा है। इन व्यवस्थाओं ने सभी भारतीयों के मन में एकता की भावना को विकसित किया।

राष्ट्रीय एकीकरण का स्वरूप

राष्ट्रीय एकीकरण का स्वरूप दो प्रकार का होता है। एक स्वरूप वह है जो एकरूपता पर आधारित है अर्थात भाषा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, पंथ उपासना पद्धति। राष्ट्रीय एकीकरण का दूसरा स्वरूप है ऊपरी तौर से दिखने वाली बहुरूपता के बावजूद आंतरिक रूप से एकता का होना। अर्थात राष्ट्र में रहने वाले लोगों की भाषा रहन-सहन रीति-रिवाज पंथ आदि अलग-अलग हो सकते हैं, तथापि सभी का राष्ट्रीय हितों के संबंध में समान दृष्टिकोण और सोच है। राष्ट्रीय मुद्दों पर जैसे राष्ट्रीय एकता अखंडता, संप्रभुता के संबंध में सभी की अनुभूति और सोच समान है।

भारत के संदर्भ में यदि राष्ट्रीय एकीकरण की बात करें तो यहां दूसरे प्रकार का राष्ट्रीय एकीकरण देखने को मिलता है। भारत एक विशाल देश है, जो आकाश में रूस को छोड़कर लगभग यूरोप के बराबर है। जनसंख्या की दृष्टि से इसका विश्व में दूसरा स्थान है। यहाँ 250 से अधिक भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती है। 22 भाषाओं को संविधान में राष्ट्रीय भाषाओं के रूप में अधिसूचित किया गया है। पंथ और उपासना पद्धति की दृष्टि से भारत में विश्व से लगभग सभी पंथ और उपासना पद्धतियाँ पाई जाती है। यहांँ हिंदुओं के अलावा मुस्लिम, ईसाई, फारसी, सिक्ख और कई धर्म के मानने वाले रहते हैं स्वाभाविक है कि उनमें वेशभूषा खान-पान गहने के तौर तरीके और उपासना पद्धतियों का अन्तर है, पर इसके बावजूद सभी में राष्ट्रीय हितों को लेकर एकता है। इसी को "अनेकता में एकता" कहा गया है। राष्ट्रीयता की भावना हमारी एकता को शक्ति प्रदान करती है। इसीलिए भारतवासी कहते हैं-
[श्रीनगर हो या गुआहाटी, अपना देश, अपनी माटी।]

राष्ट्रीय एकीकरण में सहायक तत्व

भारत की एकता एवं अखण्डता को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए समय-समय पर अनेक प्रयास हमारे राष्ट्र नायकों ने किए हैं। भारतीय संविधान में ऐसे आदर्शो और सिद्धांतों का समावेश किया जिसमें भारत की एकता शक्तिशाली होती है। यह सिद्धांत भारत की एकता और अखंडता के लिए आवश्यक है, ये हैं- लोकतंत्र ,मौलिक अधिकार ,मौलिक कर्तव्य, एकीकृत न्याय व्यवस्था ,पर निरपेक्षता ,समान राष्ट्रीय प्रतीक और राष्ट्रीय पर्व आदि। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि सरकार का गठन करते हैं। ये प्रतिनिधि जनता की इच्छा अनुसार कार्य करता है, क्योंकि जनता ही इन्हें चुनावों में चुनकर भेजती है।

1. सामान मौलिक अधिकार-

भारतीय संविधान में 6 मौलिक अधिकारों का प्रावधान है। ये मूल अधिकार भारतीय नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से प्राप्त है। नागरिकों के कल्याण एवं सर्वांगीण विकास हेतु मूल अधिकार महत्वपूर्ण है। नागरिकों को विकास के अवसर प्रदान करने लिए मौलिक अधिकारों में समानता स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय आदि का प्रावधान है इन संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत समाज के कमजोर वर्गो अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को संरक्षण प्राप्त है। प्रत्येक समुदाय को अपने धर्म एवं भाषा आदि की स्वतंत्रता प्राप्त है। नीति निर्देशक सिद्धांत भी निर्धनों, शोषितों और समाज के कमजोर वर्गों के हितों की पूर्ति के उपाय करने के लिए सरकार का मार्ग निर्देशन करते हैं।

2. समान मौलिक कर्तव्य-

मौलिक कर्तव्यों का भी भारतीय संविधान में उल्लेख है। भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान और उनके आदर्शों संस्थाओं राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। सभी नागरिकों को भारत की एकता और अखंडता हेतु राष्ट्र की सेवा को सदैव तत्पर रखना चाहिए तथा बंधुत्व की भावना का निर्माण और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करें। भारत में लोकतंत्र और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का दायित्व न्यायपालिका का है। भारत में संघ अथवा केंद्र और राज्यों के कानूनों को लागू करने के लिए इकहरी न्याय व्यवस्था है। भारत की न्यायपालिका का स्वरूप एकीकृत है और उसका गठन एक पिरामिड़ के रूप में होता है।

3. पंथनिरपेक्ष-

हमारे संविधान ने भारत को एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया है। प्रत्येक धर्म के अनुयायी को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। सरकार किसी धर्म के प्रति भेदभाव नहीं करेगी।

4. समान प्रतीक चिन्ह-

भारत के संविधान में राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह को भी अपनाया गया है, जो समस्त नागरिकों को आदर्श एवं निष्ठा के लिए प्रेरित करते हैं। जैसे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा, राष्ट्रीय गान जन गण मन, राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम, राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चिन्ह आदि राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह राष्ट्रीय भावना का बल प्रदान करते हैं और एकता की स्थापना करते हैं जो राष्ट्रीय एकीकरण में सहायक है।

5. पर्यटन और राष्ट्रीय एकीकरण-

प्रारंभ से ही पर्यटन राष्ट्रीय एकीकरण का प्रमुख सहायक तत्व रहा है। इतने विशाल देश को समझने में और सभी में एकता का भाव जागृत करने में पर्यटन सहयोगी होता है। पर्यटन से हम एक दूसरे के निकट आते हैं एक दूसरे की विशेषता और समस्याओं को समझते हैं जिसके कारण समान भाव, विचार और दृष्टिकोण विकसित होता है। पर्यटन देश की संस्कृति को, आर्थिक और औद्योगिक विकास को तथा विकास के नए आयामों को समझने में सहायक होता है।

हमारा देश फूलों की एक माला के समान है। इस माला में अनेक रंग और महक वाले फूल एक धागे में पिरोए गए हैं। इसका सरल अर्थ है कि हम एक सूत्र में बँधकर इस राष्ट्र में मिलजुलकर आपसी सौहार्द एवं प्रेम के साथ रहते हैं। हमारी राष्ट्रीयता की भावना इसे एक समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र का स्वरूप प्रदान करती है।

राष्ट्रीय एकीकरण में बाधक तत्व

पहले बताया जा चुका है कि प्राचीन भारत में राष्ट्रीय एकीकरण की कोई समस्या नहीं थी, पूरा देश एकता के सूत्र में बँधा था। देश में अलगाव की प्रवृत्ति को विकसित करने की दिशा में सोचा समझा पहला कदम 19 वीं सदी में उस समय उठाया गया जब यहाँ पर प्रजाति सिद्धांत प्रचारित किया जाने लगा और उसके आधार पर भारत में रहने वाले को अलग-अलग रखने के प्रयत्न किए गए हालांकि अब इन बातों का प्रभाव कम होने लगा है तथापि वर्तमान समय में राष्ट्रीय एकीकरण में बाधा पहुंचाने वाले कई तत्व विद्यमान है। हमारे समाज में व्यक्तिगत हित के लिए कुछ लोग इन्हें बढ़ावा देते हैं। कभी-कभी लोग अपने धर्म अपनी जाति भाषा अथवा क्षेत्र के मामलों में अधिक भावुक हो जाते हैं। इससे समाज में तनाव अथवा संघर्ष की स्थिति बन जाती है यह स्थिति देश की एकता को कमजोर कर अखंडता के लिए खतरा पैदा करती है। राष्ट्रीय एकीकरण के बाधक तत्व इस प्रकार है-

1. सांप्रदायिकता-

सांप्रदायिकता शब्द संप्रदाय से बना है। सांप्रदायिकता का अर्थ है, ऐसे भावनाएं व क्रियाकलाप जो अपने संप्रदाय और उसकी विशेषताओं को तो श्रेष्ठ समझे तथा दूसरे के संप्रदाय और विश्वासों को हीन समझे। ऐसा दृष्टिकोण अपने धर्म अथवा संप्रदाय के आधार पर किसी समूह विशेष के हितों पर बल देता है और उन हितों को राष्ट्रीय हितों के ऊपर समझता है।

2. भाषावाद-

भारत में अनेक भाषाएं और बोलियां बोली जाती है। यह स्वाभाविक है कि हमें अपनी मातृभाषा और बोली से प्रेंम हो। हम दैनिक क्रियाकलापों में इनका प्रयोग करें। किसी क्षेत्र के अधिकांश व्यक्ति केवल अपनी मातृभाषा को ही समझ पाते हैं। इसलिए प्रत्येक क्षेत्रीय भाषा को संबंधित राज्य की राजभाषा के रूप में मान्यता प्रदान की जाती है। यह लोकतंत्र की भावना के अनुकूल भी है। मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा देना अधिक सरल एवं उपयोगी होता है। किसी भाषा को सरकारी कार्यों और शिक्षा के माध्यम से रूप में प्रयोग करने के उस भाषा का भी विकास होता है।

कई बार भिन्न भाषायी प्रश्न पर देश में सामाजिक तनाव पैदा हो जाता है। असुरक्षा की भावना से ग्रस्त होकर भी भिन्न भाषायी समूह अपने भाषायी हितों को राष्ट्रहित से अधिक प्राथमिकता देने लगते हैं। वे अपनी मातृभाषा से प्रेम और दूसरी भाषाओं के प्रति संकीर्णता और घृणा की भावना रखने लगते हैं। इस प्रकार की प्रवृत्ति राष्ट्रीय एकता को कमजोर करती है। हमें मातृभाषा के साथ-साथ अन्य भाषाओं के प्रति भी सम्मान का भाग रखना चाहिए।

3. जातिवाद-

हमारी प्राचीन वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी। जातिवाद राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में बहुत बड़ी बाधाहै। जाति ऐसी इकाई है, जिसके सदस्य आपस में ही शादी विवाह और खान-पान के नियमों में बँधे रहते हैं। जाति से सदस्य जातीय बंधनों को तोड़ नहीं पाते, अतः वे समाज में व्यापक भूमिका नहीं निभा पाते। कालांतर में यह व्यवस्था वंशानुगत हो गई तथा जाति धर्म के स्थान पर जन्म से जोड़ दी गई। इसमें बहुत से दोष आ गए। जाति प्रथा के प्रमुख दोष इस प्रकार हैं-
क. जाति व्यवस्था समाज को उच्च और निम्न वर्ग में बाँटती है।
ख. उच्च जातियां छोटी जातियों का शोषण करती है।
ग. जातिगत भेदभाव कठोर हो जाते हैं।
घ. जातियों का दबाव राजनीति को प्रभावित करता है।
जाति प्रथा से देश की एकता और आर्थिक प्रगति में बाधा आती है।
जातीय भेदभाव के विरुद्ध समय-समय पर समाज सुधारक को द्वारा आवाज उठाई गई और सुधार के प्रयास किए गए। इनमें प्रमुख हैं-
[संत रामानंद, महात्मा कबीर, श्री चैतन्य महाप्रभु, राजाराम मोहन राय, श्री ईश्वर चंद्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधी एवं डॉ भीमराव अंबेडकर आदि।]

वर्तमान में शिक्षा के प्रासार, विज्ञान एवं औद्योगिक विकास तथा शहरीकरण के जाति व्यवस्था के बंधन हुए हैं। भारत के संविधान में छुआछूत एवं जातिगत भेदभाव को गैर कानूनी घोषित किया गया है। राज्य द्वारा किसी जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव का व्यवहार नहीं किया जाता है। जातिवाद राष्ट्रीय एकता एक प्रमुख बाधा है।

4. आंतकवाद-

आतंकवाद विश्व के समक्ष आज एक गंभीर चुनौती है। यह लोकतंत्र व मानवता के विरुद्ध अपराध है। यह एक क्रूरतापूर्ण नरसंहार का स्वरुप है। आंतकवादी विचारधारा के लोग भय व आतंक के द्वारा अपने विचार मनवाना चाहते हैं। धार्मिक कट्टरता से प्रेरित हो लोग निर्दोष व्यक्तियों की जान लेने के लिए मरने मारने की घटनाएं में भाग लेते हैं। इन घटनाओं से वे अलगाव चाहते हैं। वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हिंसा का सुनियोजित प्रयोग आंतकवाद है।

आतंकवादी हिंसा में विश्वास रखते हैं और विध्वंसात्मक कार्यवाहियाँ करते हैं, इससे देश को भारी क्षति पहुंची है। आतंकवादी यह सोचते हैं कि जनता कभी ना कभी उनके मत का समर्थन करेगी अतः ये हिंसक अलोकतांत्रिक व अनैतिक साधनों का प्रयोग धर्म की आड़ में भी करना न्यायसंगत मानते हैं। वर्तमान में आतंकवाद हमारी राष्ट्रीय एकता को खंडित करने का निरंतर प्रयास कर रहा है।

5. पृथकतावाद-

क्षेत्रवाद की अति आक्रामक अवस्था पृथकतावाद को जन्म देती है। देश के अलग होकर अपना स्वतंत्र राज्य बनाने की मांग करना पृथकतावाद है। कई जाती और भाषा के लोग यहाँ रहते हैं। कभी-कभी अपनी उपेक्षा महसूस करने पर ये पृथक राज्य बनाने की मांग करने लगते हैं। प्रायः सीमावर्ती राज्यों में इस प्रकार की प्रवृत्ति पायी जाती है। जिसके दुष्परिणाम से पृथकतावाद की भावना प्रबल होने लगती है इस भावना को देश की अस्थिरता में रुचि रखने वाली बाहरी ताकतों द्वारा भड़ाकाया जाता है। देश के अंदर रहने वाले कुछ लोग भी अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए इस प्रकार की भावनाओं का प्रयोग करते हैं। राष्ट्र विरोधी और कट्टरपंथी लोग तो हिंसक साधनों एवं आंतकवादी तरीकों तक का प्रयोग करने लगते हैं। पृथकतावाद की प्रकृति राष्ट्रीय एकता के लिए गंभीर चुनौती है। सामाजिक न्याय विकेंन्द्रीकृत एवं संतुलित विकास से पृथकतावाद की भावना को सामाप्त किया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प चुनकर लिखिए-
1. राष्ट्रीय एकीकरण में नागरिकों के मन में कौन सी भावना व्यक्त रहती है-
क. राष्ट्रीयता की भावना
ख. धार्मिक भावना
ग. जातीयता की भावना
घ. उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर- क. राष्ट्रीयता की भावना
2. संविधान में कितनी भारतीय भाषाओं को अधिसूचित किया गया है-
क. 14
ख. 18
ग. 22
घ. 26
उत्तर- ग. 22 रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. भारतीय संविधान में 6 मौलिक अधिकारों का प्रावधान है।
2. अशोक चिन्ह हमारा राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह है।
3. प्राचीन काल में वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी।
4. भारत का विभाजन सन 1947 ई. में हुआ।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

1. राष्ट्रीय एकीकरण का अर्थ क्या है?
उत्तर- राष्ट्रीय एकीकरण का अर्थ राष्ट्र में रहने वाले निवासियों के बीच जाति, पंथ, क्षेत्र और भाषा का भेदभाव किए बिना सुख-दुख की एकता की भावना का होना है।
2. पंथ निरपेक्षता से क्या आता है?
उत्तर- पंथ निरपेक्षता का आशय प्रत्येक धर्म के अनुयाई को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देने व किसी धर्म के प्रति भेदभाव न करने से हैं।
3. 'विविधता में एकता' का क्या अर्थ है?
उत्तर- विविधता में एकता से अभिप्राय लोगों में वेशभूषा खाना-पीना, रहने के तौर तरीके और उपासना पद्धतियों में अंतर होने के बावजूद सभी में राष्ट्रीय हितों को लेकर एकता का होना है।

लघु उत्तरीय प्रश्न-

1. जाति प्रथा के प्रमुख दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- जाति प्रथा के प्रमुख दोष इस प्रकार हैं-
अ. जाति व्यवस्था समाज को उच्च और निम्न वर्ग में बाँटती है।
ब. उच्च जातियां छोटी जातियों का शोषण करती है।
स. जातिगत भेदभाव कठोर हो जाते हैं।
द. जातियों का दबाव राजनीति को प्रभावित करता है।
इ. जाति प्रथा से देश की एकता और आर्थिक प्रगति में बाधा आती है।

2. हमारे राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह कौन-कौन से हैं?
उत्तर- राष्ट्रीय ध्वज― तिरंगा, राष्ट्रीयगान― जन- गण- मन, राष्ट्रीय गीत― वंदे मातरम, राष्ट्रीय चिन्ह― अशोक चिन्ह आदि

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

1. मौलिक अधिकारों एवं कर्तव्यों पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- मौलिक अधिकार– सामान मौलिक अधिकार- भारतीय संविधान में 6 मौलिक अधिकारों का प्रावधान है। ये मूल अधिकार भारतीय नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से प्राप्त है। नागरिकों को विकास के अवसर प्रदान करने लिए मौलिक अधिकारों में समानता स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय आदि का प्रावधान है इन संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत समाज के कमजोर वर्गो अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को संरक्षण प्राप्त है। प्रत्येक समुदाय को अपने धर्म एवं भाषा आदि की स्वतंत्रता प्राप्त है।
मौलिक कर्तव्य– समान मौलिक कर्तव्य- मौलिक कर्तव्यों का भी भारतीय संविधान में उल्लेख है। भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान और उनके आदर्शों संस्थाओं राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। सभी नागरिकों को भारत की एकता और अखंडता हेतु राष्ट्र की सेवा को सदैव तत्पर रखना चाहिए तथा बंधुत्व की भावना का निर्माण और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करनी चाहिए।

2. पृथकतावाद का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर- देश के अलग होकर अपना स्वतंत्र राज्य बनाने की मांग करना पृथकतावाद है। क्षेत्रवाद की अति आक्रामक अवस्था पृथकतावाद को जन्म देती है। कई जाती और भाषा के लोग यहाँ रहते हैं। कभी-कभी अपनी उपेक्षा महसूस करने पर ये पृथक राज्य बनाने की मांग करने लगते हैं। प्रायः सीमावर्ती राज्यों में इस प्रकार की प्रवृत्ति पायी जाती है। जिसके दुष्परिणाम से पृथकतावाद की भावना प्रबल होने लगती है इस भावना को देश की अस्थिरता में रुचि रखने वाली बाहरी ताकतों द्वारा भड़ाकया जाता है। देश के अंदर रहने वाले कुछ लोग भी अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए इस प्रकार की भावनाओं का प्रयोग करते हैं। राष्ट्र विरोधी और कट्टरपंथी लोग तो हिंसक साधनों एवं आंतकवादी तरीकों तक का प्रयोग करने लगते हैं। पृथकतावाद की प्रकृति राष्ट्रीय एकता के लिए गंभीर चुनौती है।

3. राष्ट्रीय एकीकरण के सहायक तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- राष्ट्रीय एकीकरण के सहायक तत्व इस प्रकार है–
1. सामान मौलिक अधिकार- भारतीय संविधान में छः मौलिक अधिकारों का प्रावधान है। ये मूल अधिकार भारतीय नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से प्राप्त है। इसमें समानता स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय का प्रावधान है।
2. समान मौलिक कर्तव्य- भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान और उनके आदर्शों संस्थाओं राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। सभी नागरिकों को भारत की एकता और अखंडता हेतु राष्ट्र की सेवा को सदैव तत्पर रखना चाहिए और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करनी चाहिए।
3. पंथनिरपेक्ष- हमारे संविधान ने भारत को एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया है। प्रत्येक धर्म के अनुयायी को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। सरकार किसी धर्म के प्रति भेदभाव नहीं करेगी।
4. समान प्रतीक चिन्ह– हमारे राष्ट्रीय चिन्ह― राष्ट्रीय ध्वज– तिरंगा, राष्ट्रीय गान– जन-गण-मन, राष्ट्रीयगीत– वंदेमातरम्, राष्ट्रीय चिन्ह– अशोक चिन्ह आदि है तथा ये राष्ट्रीय भावना व राष्ट्रीय एकीकरण को बल प्रदान करते हैं।
5. पर्यटन- पर्यटन से हम एक-दूसरे के निकट आते हैं। एक-दूसरे की विशेषताओं और समस्या को समझते हैं, जिसके कारण समान भाव, विचार और दृष्टिकोण विकसित होता है।

4. राष्ट्रीय एकता में बाधक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- राष्ट्रीय एकता में बाधक प्रमुख तत्व इस प्रकार हैं–
1. सांप्रदायिकता- सांप्रदायिकता शब्द संप्रदाय से बना है। सांप्रदायिकता का अर्थ है, ऐसे भावनाएं व क्रियाकलाप जो अपने संप्रदाय और उसकी विशेषताओं को तो श्रेष्ठ समझे तथा दूसरे के संप्रदाय और विश्वासों को हीन समझे। सांप्रदायिकता हमारे देश की एकता के लिए मुख्य तक खतरा है।
2. भाषावाद- असुरक्षा की भावना से ग्रस्त होकर भिन्न भाषायी समूह अपने भाषायी हितों को राष्ट्रहित से अधिक प्राथमिकता देने लगे हैं। वे अपनी मातृभाषा से प्रेम और दूसरी भाषाओं के प्रति संकीर्णता और घृणा की भावना रखने लगते हैं। इस प्रकार की प्रवृत्ति राष्ट्रीय एकता को कमजोर करती है।
3. जातिवाद- जाति एक ऐसी इकाई है, जिसके सदस्य आपस में ही शादी विवाह और खान-पान के नियमों में बंधे रहते हैं। वर्तमान में शिक्षा के प्रयास विज्ञान और औद्योगिक विकास तथा शहरीकरण से जाति व्यवस्था के बंधन शिथिल हुए हैं। भारत के संविधान में छुआछूत एवं जातिगत भेदभाव को गैरकानूनी घोषित किया गया है।

आशा है इस पाठ की जानकारी विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण होगी।
धन्यवाद।
RF Temre
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